नवरात्रि पूजा : छाग बलि विधि और मंत्र – Bali 1

दुर्गा पूजा विधि : छागबलि

सभी मनुष्य को अपनी सद्गति के लिये प्रयास करना अनिवार्य है। जैसे कोई बंदी अपने बंधनमुक्ति का उपाय सोचता है, करता है उसी प्रकार आध्यात्मिक रूप से बंधन में पड़ा हुआ जीव ही किसी देह में स्थित होता है। उस जीव को सद्गति प्राप्त करने के लिये ही मानव देह की प्राप्ति होती है। प्रत्येक मानव की भिन्न प्रकृति होती है कोई सात्विक होता है, कोई राजसिक होता है कोई तामसिक। सात्विक हेतु तो बलि निषिद्ध है किन्तु राजसी और तामसी हेतु नहीं। इस आलेख में नवरात्र में दी जाने वाली छाग बलि की जानकारी दी गयी है साथ ही छागबलि की विधि और मंत्र भी बताया गया है।

मोक्ष प्राप्ति का मुख्य उपाय ज्ञान ही है, ज्ञान का तात्पर्य आत्मज्ञान है। आत्मज्ञानी परमात्म तत्व से मिल जाता है और इसका एक ही उपाय ज्ञान है। ज्ञानमार्ग से जिस परमात्मा का ज्ञान होता है वह निर्गुण ब्रह्म कहा जाता है। ज्ञानमार्ग से भिन्न अन्य दो मार्ग भी हैं जिसमें भक्ति और कर्म या कर्मकांड या उपासना का मार्ग आता है। भक्ति व उपासना मार्ग में निर्गुण ब्रह्म ही सगुण हो जाता है व अनेकानेक मनुष्यों की प्रकृति व प्रवित्ति के अनुकूल नाना रूप धारण करता है। सगुण ब्रह्म में त्रिदेवों के अतिरिक्त पांच मुख्य देवता है – गणेश, विष्णु, शिव, शक्ति और सूर्य।

इन देवताओं के उपासकों के क्षेत्रों का भी विभाजन देखा जाता है। वैसे अनेकों रूपों का तात्पर्य यह है कि जिसकी जो प्रकृति और प्रवृत्ति हो उसके अनुसार अनुकूल देवता को इष्ट बनाकर अपने कल्याण का उपाय करे। सभी सात्विक नहीं होते और वैष्णव नहीं हो सकते। मांसाहारी के लिये एक नियम यह अटल है कि वह पाप करता है और नरक का भागी होता है। किन्तु प्रकृति का करे तो क्या करे ? वैसे मनुष्यों के लिये भी कल्याण का मार्ग है कि जिन देवताओं को बलि प्रदान की जाती है उनकी उपासना करे और भक्षण हेतु नहीं इष्ट के निमित्त बलि प्रदान करे और प्रसाद ग्रहण करे तो उसमें वह पापी नहीं होगा।

किन्तु वर्त्तमान एक ऐसा व्यवहार देखा जा रहा है कि स्वयं को वैष्णव कहने वाले शाक्तों की निंदा करते फिरते हैं, मंदिर-मंदिर जाकर बलिप्रथा को रोकने को ही अपना धर्म समझते हैं। किन्तु ये सिद्ध नहीं किया जा सकता कि बलि शास्त्र विरुद्ध या निषिद्ध कर्म है। धर्म व अध्यात्म के लिये जो शरीर में नेत्र है उसे नेत्र नहीं माना गया है, शास्त्र व सत्संग को नेत्र कहा गया है। शाक्तों के लिये बलि शास्त्रसम्मत है, यदि निषिद्ध है तो वैष्णवों के लिये। वैष्णवों को अपना ज्ञान वैष्णवों में ही बांटना चाहिये शाक्तों के धर्म में बाधा नहीं करनी चाहिये।

छाग बलि क्या है

छाग मुख्य रूप से बकड़े कहा जाता है। बकड़े की बलि दी जाती है इस कारण जो अश्व चलने में असमर्थ हो उसे भी छाग कहा जाता है अर्थात त्याज्य। इस प्रकार छाग बलि का मुख्य तात्पर्य बकड़े की बलि देना है। व्याख्या करने में शब्दों के जैसे जाल बुने जायें बुनने वाले बुनते ही रहते हैं। देवीपुराण में नवधा बलि का वर्णन है तथापि अज (छाग) और महिष के लिये बलि का अभिप्राय घात ही है :

“बलिं च ये प्रयच्छन्ति सर्वभूतविनाशनम् । तेषां तु तुष्यते देवी यावत्कल्पन्तु शाङ्करम् ॥ नवधा पशुघातं च महिषाजविघातनम् ॥” अर्थात् अज व महिष के अतिरिक्त अन्य पशुओं की हेतु घात के अतिरिक्त बलि की नौ विधियों में से किसी का भी ग्रहण किया जा सकता है।

छाग बलि विधि

बलि देने से पूर्व जो व्यक्ति-समाज आदि बलि प्रदान करते हैं वो बलि के विषय में पर्याप्त शास्त्रोक्त प्रमाण संग्रह करके रखें, अध्ययन करें ताकि यदि कोई (धर्मद्रोही – जो बलि को रोकने के लिये उधम मचाते हैं) रोकने आये तो उसे प्रमाण दे सके न कि बलि से विरत हो जाये, क्योंकि गीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि “स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः” निजधर्म का पालन करते हुये मृत्यु प्राप्त करना भी श्रेयस्कर है किन्तु परधर्म स्वीकार करके जीना भयावह है। जो भी उच्छृंखल रोकने के लिये आता है उससे भी कुछ प्रश्न करे; यथा :

  • महाराज दशरथ शिकार करने क्यों गये थे ? क्या शास्त्रोक्त था ?
  • भगवान श्रीराम मृग का शिकार करने क्यों गये ? क्या वह हिंसा नहीं थी ?
  • बालि ने भगवान राम से प्रश्न किया था कि मैं तो शिकार करने वाला पशु नहीं हूँ अतः ये सिद्ध नहीं होता कि शिकार करने वाले और बलि देने वाले पशुओं के घात में हिंसा नहीं होती ?
  • सदन कसाई के यहां बटखारे के रूप में प्रयुक्त होने वाले शालिग्राम को क्या हिंसा नहीं दिखती थी ?
  • मांसभक्षी सिंह में क्या भगवती को हिंसक पशु नहीं दिखता जो वाहन बनाया ?
  • महाभारत में तो अर्जुन युद्ध से मुंह मोड़ रहा था, क्या युद्ध में हिंसा नहीं होती है जो भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मयुद्ध घोषित करके युद्ध करने के लिये प्रेरित किया ?
  • शास्त्रों में किसके लिये बलि निषेध है और किसके लिये प्रशस्त ?

अर्थात भाव यह है कि बलि देने वाला व्यक्ति-समाज इस विषय पर स्वयं आश्वस्त हो जाये कि बलि शास्त्रोक्त विधि है और शास्त्राज्ञा का पालन करने में अधर्म नहीं होता है। और जो कोई भी धर्मद्रोही-उचक्का रोकने का प्रयास करे उसे शास्त्र के वचनों से ही निरुत्तर करे।

छाग बलि दान के समय अन्य सामग्रियां यथा – पुष्पाक्षत-तिल-चंदन, खड्ग, माला, पञ्चडोर, जल, पात्र और घातक आदि व्यवस्थित करके फिर बलिदान के लिये उत्सुक हो।

छाग को स्नान कराकर अपने वाम भाग में लेकर, माला/पञ्चदोरक आदि से अलंकृत/वेष्टित करके “ॐ छागाय नमः” इस मंत्र से पंचोपचार पूजन करे। छाग का पंचोपचार पूजन करने के उपरांत जल-गन्धपुष्पाक्षतादि संकल्प द्रव्य लेकर संकल्प करे :

संकल्प : ॐ अद्येत्यादि (महासप्तम्यां, महाष्टम्यां/महानवम्यां) तिथौ श्रीदुर्गापूजन दर्शन तर्पण जनितपूर्व पूर्वाधिकरण पुण्याधिकप्राप्तिकामोऽमुं छागं वह्निदैवतं भगवत्याः श्रीदुर्गादेव्याः प्रीतये घातयितुमहमुत्सृज्ये ॥

संकल्प करने के पश्चात छाग के दक्षिण कर्ण में पशुगायत्री व अगला पढ़े :ॐ

ॐ पशुपाशाय विद्महे शिरश्छेदाय धीमहि तन्नश्छागः प्रचोदायात् ॥
ॐ यज्ञार्थे पशवः सृष्टाः स्वयमेव स्वयम्भुवा । अतस्त्वां घायताम्यद्य तस्माद्यज्ञे वधो भव ॥

तत्पश्चात “खड्गाय नमः” मंत्र से खड्ग का पंचोपचार पूजन करे। फिर खड्ग को प्रणाम करते हुये पढ़े :

ॐ असिविंशसिनः खड्गस्तीक्ष्णधारो दुरासदः ॥ श्रीगर्भो विजयश्चैव धर्माधार नमोस्तु ते ।
खड्गायासुरनाशाय शक्तिकार्याय तत्पर । पशुश्छेद्यस्त्वया शीघ्रं खड्गनाथ नमोऽस्तु ते ॥

तत्पश्चात पशु के ग्रीवा/गले में खड्ग का स्पर्श करते हुये अगले मंत्रों को पढ़े :

ॐ यज्ञार्थे पशवः सृष्टा यज्ञार्थे पशुघातनम् । यज्ञस्य मारणे त्वं हि ध्रुवं गन्ता त्रिविष्टपम् ॥
खड्गघातमहदुःखं विनिर्जित्य पशूत्तम । देवीवरप्रसादेन मामात्मनश्व तारय ॥

फिर पशु के गले से बंधन (डोर) व माला आदि खोलकर अगले मंत्रों को पढ़े :

ॐ रक्षार्थं बन्धनस्थोऽसि मुक्तये मोचितो मया । देव्याः प्रीतिं समुत्पाद्य स्वर्गं गच्छ पशूत्तम ॥
इदं देहं परित्यज्य भूत्वा दैववपुर्धरः । मोदस्व प्रमथैः सार्धं यावदिन्द्राश्चतुर्दश ॥

  • तत्पश्चात घातकर्ता “ॐ हैँ” पढ़कर पशु के शिर का छेदन करे।
  • फिर “ॐ ऐँ ह्रीँ कौशिकि समांसरुधिरेणाप्यायताम् ॥” इस मंत्र से मांसरुधिरं अर्पित करे।
  • तत्पश्चात छाग के मस्तक पर दीप स्थापित करके तिल-जल लेकर उत्सर्ग करे : “ॐ एष सप्रदीपच्छागपशुशीर्षबलिः ह्रीं दुर्गायै नमः ॥”

फिर प्रार्थना करे :

ॐ घोरदंष्ट्रे करालास्ये मत्स्यमांसबलिप्रिये । बलिं गृह्ण महादेवि पशुरक्तं समांसकम् ॥
ॐ आहवे रुधिराकांक्षि वर्तिं गृह्ण प्रसीद मे। त्रिनेत्रे विकरालास्ये मुण्डमालाविभूषिते ॥
सर्वासुरकृतान्ते त्वं खड्गखट्वाङ्गधारिणि । महिषध्नि महामाये दैत्यदर्पनिषूदिनि ।
छागलेन बलिं दद्मि गृहाण हरवल्लभे ॥

तत्पश्चात आचारोपलब्ध विधि खड्ग में लगे शोणित बिंदु को ललाट में लगाकर पढ़े : ॐ यं यं स्पृशामि पादेन यं यं पश्यामि चक्षुषा । स स मे वक्ष्यतां यातु यदि शत्रुसमो भवेत् ॥

फिर त्रिकुशा-तिल-जल-दक्षिणा लेकर छागबलि की दक्षिणा करे : ॐ अद्येत्यादि अमुकतिथौ कृतैतत् साङ्ग सायुध सवाहन सपरिवार श्रीभगवत्याः दुर्गादेव्याः प्रीतिकामः छागबलिदान प्रतिष्ठार्थमेतावत् द्रव्यमूल्य क हिरण्यमग्निदैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे ॥

॥इति छाग बलिदानविधिः॥

बलि देने वालों हेतु ध्यातव्य तथ्य

वर्तमान युग में एक उच्छृंखल व्यवहार देखा जा रहा है वो यह है कि कुछ विशेष वर्ग जहां प्राचीन काल से पशुबलि दी जा रही है उन सभी मंदिरों में जाकर रोकते हैं। एवं शास्त्रोक्त तथ्यों से अनभिज्ञ होने के कारण बलिदाता निवृत्त हो जाता है। अतः जो लोग प्राचीन काल से बलि देते आ रहे हैं और जिन मंदिरों में दी जाती है उन सबको इस विषय के प्रति सजग होने की आवश्यकता है। धर्म और अधर्म की सीधी परिभाषा है : “जो शास्त्रों में विहित है उसे करना और जो निषिद्ध है उसका त्याग करना ही धर्म है”

इस परिभाषा से एक व्यक्ति/संप्रदाय हेतु जो धर्म है दूसरे व्यक्ति/संप्रदाय हेतु वह अधर्म हो सकता है। यहां संप्रदाय का तात्पर्य शाक्त, शैव, वैष्णव आदि लेना चाहिये। वैष्णव संप्रदाय के लिये बलि शास्त्र निषिद्ध है अर्थात पाप है, किन्तु शाक्त संप्रदाय हेतु पशुबलि निषिद्ध नहीं विहित है अतः धर्म ही है। और यदि शाक्तों को पशुबलि से रोका जाता है तो यह उनके धर्मपालन में बाधा सिद्ध होता है। यदि किसी को धर्मपालन से रोका जाता है तो यह स्वयं में ही पाप है और ये उन वैष्णवों को विचार करना चाहिये जो मंदिर-मंदिर जाकर रोकते हैं।

यह विचार करने का विषय है कि एक संप्रदाय यदि दूसरे संप्रदाय के धर्मपालन में व्यवधान उत्पन्न करता है तो इसे धर्म कहा जायेगा या अधर्म ?

जिस पशु की बलि दी जाती है उस पशु का भी कल्याण ही होता है जो अन्य विधि से कदापि संभव नहीं है : ॐ रक्षार्थं बन्धनस्थोऽसि मुक्तये मोचितो मया । देव्याः प्रीतिं समुत्पाद्य स्वर्गं गच्छ पशूत्तम ॥ इदं देहं परित्यज्य भूत्वा दैववपुर्धरः । मोदस्व प्रमथैः सार्धं यावदिन्द्राश्चतुर्दश ॥ इस मंत्र से स्पष्ट होता है कि जिस पशु की बलि दी जाती है वह देवयोनि को प्राप्त करता है और स्वर्ग जाता है। और इस प्रकार तो यह पुनीत कार्य ही सिद्ध होता है कि अन्य जीव को भी स्वर्ग प्राप्ति हुआ।

    कूष्माण्ड बलि, कुमारी कन्या पूजन विधि आदि अन्य आलेख में प्रस्तुत किया गया है।

    कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

    Leave a Reply