धर्मो रक्षति रक्षितः पूर्ण श्लोक क्या है ? धर्मो रक्षति रक्षितः श्लोक का अर्थ क्या है ? इस लेख में हम इस श्लोक के ऊपर विस्तृत चर्चा करेंगे। क्या आप धर्मो रक्षति रक्षितः पूर्ण श्लोक को जानते हैं ? यह श्लोक किस ग्रंथ का है ? धर्मो रक्षति रक्षितः का क्या अर्थ है ? हम यहाँ इस विषय पर गंभीरता से विचार करेंगे और समझने का प्रयास करेंगे।
धर्मो रक्षति रक्षितः का अर्थ
धर्मो रक्षति रक्षितः का क्या अर्थ है – जो धर्म की रक्षा करता है अर्थात विषम परिस्थितियों में भी धर्म का पालन करता है तो वही पालित या रक्षित धर्म भी पालक की रक्षा करता है।
- लेकिन इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं होता कि धर्म की रक्षा करने वाले की मृत्यु नहीं हो सकती उसके जीवन की रक्षा होगी।
- वर्तमान जीवन और परवर्ती जीवन दोनों में कल्याणकारी होगा यह तात्पर्य होता है।
- स्वधर्मे निधनं श्रेयः – यहां स्पष्ट होता है कि धर्म की रक्षा करते हुये मृत्यु भी हो सकती है।

जब धर्म एवं मृत्यु में से किसी एक का वरण करने का विकल्प हो तो धर्म का वरण करना चाहिये न कि धर्मत्याग करके जीवन – छोड़ो न धर्म अपना चाहे प्राण तन से निकले। जीव के कारण जीवन है और धर्म जीव की रक्षा करता है, धर्म जीव का पतन नहीं होने देता।
- इससे यह भी स्पष्ट होता है कि जीव आधार है कोई एक जीवन नहीं यदि जीव की रक्षा करोगे (पतन से बचाओगे) तो पुनः नया अवसर (दूसरा जीवन, सुख, कल्याण) प्राप्त कर सकोगे और यह रक्षित धर्म के प्रभाव से होगा।
- यदि धर्म का त्याग करके कुछ काल के लिये क्षणभंगुर जीवन बचा भी लो किंतु अंततः पतनोन्मुख ही रहोगे, पतन ही प्राप्ति होगी दूसरा जीवन पाने से पहले कठोर नरक यातना सहनी पड़ेगी।
धर्मो रक्षति रक्षितः पूर्ण श्लोक :