क्या आप दृष्टिकोण का अर्थ जानते हैं ? दृष्टिकोण के प्रकार, उपादेयता समग्र जानकारी

1 : भौतिक दृष्टिकोण : इसे सांसारिक दृष्टिकोण भी कहा जा सकता है। भौतिक दृष्टिकोण से किसी विषय-वस्तु के लिये संसार-जीवन में उसके आवश्यकता-उपयोगिता का ज्ञान प्राप्त होता है। भौतिक दृष्टिकोण अधिकांशतः आध्यात्मिक दृष्टिकोण को असिद्ध करने का प्रयास करता है, जब असिद्ध न कर पाये तो स्वयं को अधिक श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास करता है।

भौतिक दृष्टिकोण का सदा यह प्रयास करना ही इस तथ्य की पुष्टि करता है कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी होता है और आध्यात्मिक दृष्टिकोण ही श्रेष्ठ भी होता है। भौतिक दृष्टि का सम्बन्ध भूत से है अतः भूत में परिवर्तन के साथ भौतिक दृष्टिकोण से प्राप्त होने वाले ज्ञान में भी परिवर्तन होता रहता है अर्थात भौतिक दृष्टिकोण परिवर्तनशील होता है।

भौतिक दृष्टिकोण मात्र परिवर्तनशील ही नहीं होता अपितु नश्वर भी होता है क्योंकि भूत स्वयं नश्वर है।

दृष्टिकोण के अनेकों प्रकार जो बताये जाते हैं वो भौतिक दृष्टिकोण के ही प्रकार होते हैं दृष्टिकोण के प्रकार नहीं। जैसे वैज्ञानिक, राजनितिक, सामाजिक, आर्थिक, यथार्थवादी इत्यादि दृष्टिकोण कहे तो जाते हैं किन्तु ये वास्तव में भौतिक दृष्टिकोण के ही उपभेद हैं न कि दृष्टिकोण के भेद। इस प्रकार से भौतिक दृष्टिकोण के भी कई उपभेद होते हैं।

2 : आध्यात्मिक दृष्टिकोण : शरीर के साथ आत्मा का भी अस्तित्व है और आत्मा का अस्तित्व स्वीकारने वाले किसी विषय-वस्तु के वर्त्तमान जीवन के साथ-साथ मरणोपरांत परवर्ती जीवन पर होने वाले प्रभाव का भी ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार आध्यात्मिक दृष्टिकोण का तात्पर्य है किसी विषय-वस्तु का आत्मा-प्रकृति आदि पर होने वाले प्रभाव का ज्ञान प्राप्त करना।

दृष्टिकोण के प्रकार
दृष्टिकोण के प्रकार

आत्मा की सत्ता स्वीकार किये बिना आध्यात्मिक दृष्टिकोण की प्राप्ति संभव नहीं होती। आत्मा नश्वर नहीं है अतः आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी नश्वर नहीं है, आत्मा अपरिवर्तनशील है अतः आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी अपरिवर्तनशील है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण भौतिक दृष्टिकोण की सत्ता को अस्वीकार नहीं करता किन्तु उसकी असत्यता को अवश्य सिद्ध करता है जिससे आध्यात्मिक दृष्टिकोण का श्रेष्ठ होना भी सिद्ध हो जाता है।

भौतिक दृष्टिकोण और आध्यात्मिक दृष्टिकोण में अंतर

  1. भौतिक दृष्टिकोण भूतपरक होता है आध्यात्मिक दृष्टिकोण आत्मपरक।
  2. भौतिक दृष्टिकोण नश्वर होता है, आध्यात्मिक दृष्टिकोण अनश्वर होता है।
  3. भौतिक दृष्टिकोण परिवर्तनशील होता है, आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपरिवर्तनशील होता है।
  4. भौतिक दृष्टिकोण शरीर को साध्य मानता है आत्मा का अस्तित्व को अस्वीकार करता है, आध्यात्मिक दृष्टिकोण शरीर को साधन मानता है और आत्मा को साध्य।
  5. भौतिक दृष्टिकोण सीमित होता है आध्यात्मिक दृष्टिकोण असीमित।

भौतिक दृष्टिकोण और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के उदहारण

यहां भौतिक दृष्टिकोण और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के उदहारण हेतु हम शरीर को ही विषयवस्तु मानकर विचार करेंगे जिससे दोनों का अंतर और भी अधिक स्पष्ट हो जायेगा :

  • भौतिक दृष्टिकोण के द्वारा शरीर ही साध्य प्रतीत होता है और येनकेनप्रकारेण शारीरिक सुख-भोग प्राप्ति के लिये प्रेरित करता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण आत्मा को साध्य और शरीर को साधन मानता है अतः आध्यात्मिक दृष्टिकोण आत्मकल्याण के लिये प्रेरित करता है किन्तु चूंकि शरीर ही साधन है अतः शरीर का संरक्षण करने के लिये भी कहता है।
  • भौतिक दृष्टिकोण किसी विषय-वस्तु के शरीर पर पड़ने वाले दूरगामी प्रभाव को नहीं जान पाता, आध्यात्मिक दृष्टिकोण क्षणिक और दूरगामी प्रभाव दोनों का ज्ञान प्रदान करता है।
  • भौतिक दृष्टिकोण अंतर्द्वंद में ही फंसा रहता है शरीर को सजीव भी कहता है और आत्मा को अस्वीकार भी करता है, आध्यात्मिक दृष्टिकोण अंतर्द्वंद में नहीं फंसता शरीर के भूत और सजीव के जीव दोनों का विचार करता है।
  • भौतिक दृष्टिकोण सजीव में भी परमात्मा के अंश आत्मा को स्वीकार नहीं करता, आध्यात्मिक दृष्टिकोण निर्जीव वस्तु में भी परमात्मा की उपस्थिति सिद्ध स्वीकारता है।

अब हम एक अन्य उदाहरण अन्न पर विचार करेंगे इससे दोनों के बीच का अंतर और भी अधिक स्पष्ट हो जायेगा :

Leave a Reply