क्या आप दृष्टिकोण का अर्थ जानते हैं ? दृष्टिकोण के प्रकार, उपादेयता समग्र जानकारी

  • भौतिक दृष्टिकोण अन्न में पाये जाने वाले विटामिन, पोषक तत्व, घातक तत्व आदि के आधार पर उसका शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव का ही अध्ययन करता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण अन्न की उत्पत्ति से प्राप्ति के आधार पर उसके प्रभाव का विश्लेषण करता है।
  • भौतिक दृष्टिकोण से अन्न चाहे परिश्रम से प्राप्त करें या चोरी से उसका समान प्रभाव ही बताता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण चोरी से प्राप्त अन्न में दोष और उसके दुष्प्रभाव को भी बताता है।
  • भौतिक दृष्टिकोण येनकेनप्रकारेण अन्न प्राप्ति के लिये प्रेरित करता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण अन्न प्राप्ति हेतु भी अनेक निषेध बताता है।
  • भौतिक दृष्टिकोण में संसर्ग के प्रभाव का अभाव होता है, अर्थात एक न्यायाधीश के घर का अन्न हो या एक चोर, हत्यारा आदि के घर का दोनों समान ही होता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से संसर्ग का भी प्रभाव भी पड़ता है, एक न्यायाधीश के घर का अन्न और एक चोर, हत्यारे आदि के अन्न में संसर्ग गुण-दोष भी होता है।

उपरोक्त अंतर को समझने के बाद भौतिक दृष्टिकोण और आध्यात्मिक दृष्टिकोण को और गंभीर समझ प्राप्त होती है। अब भौतिक दृष्टिकोण के दुष्प्रभाव को समझने का प्रयास करेंगे क्योंकि वर्त्तमान युग में आध्यात्मिक दृष्टिकोण को महत्व नहीं दिया जा रहा है भौतिक दृष्टिकोण को ही महत्व देते हुये जनसामान्य को मात्र भौतिकदृष्टि से देखने के लिये प्रेरित किया जा रहा है।

भौतिक दृष्टिकोण के दुष्प्रभाव

भौतिक दृष्टिकोण के दुष्प्रभाव तभी होते हैं जब आध्यात्मिक दृष्टिकोण का अभाव हो जाये। भौतिक दृष्टिकोण नीति-अनीति, सत्य-असत्य, न्याय-अन्याय आदि को महत्व नहीं देता। मात्र शरीरबुद्धि से युक्त होने के कारण येनकेनप्रकारेण शारीरिक सुख-भोग प्राप्ति को महत्व देता है। राजकीय विधि में भी छिद्र ढूंढकर मात्र दण्ड से बचकर निकलने की बुद्धि को जन्म देता है। विगत कुछ दशकों में भौतिक दृष्टिकोण की इतनी वृद्धि हुई है कि उसके दुष्प्रभाव भी स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं :

अपराध : भौतिक दृष्टिकोण में वृद्धि होने के कारण ही दिन-प्रतिदिन अपराध अनियंत्रित रूप से बढ़ता जा रहा है। अपराध पर नियंत्रण हेतु कड़े कानून की अपेक्षा आध्यात्मिक दृष्टिकोण की अधिक आवश्यकता होती है। न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को यह समझते हुये जनसामान्य को मात्र भौतिक दृष्टिकोण संपन्न नहीं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी संपन्न करने का प्रयास करना चाहिये।

भ्रष्टाचार : दिन-प्रतिदिन बड़े-बड़े नेता, अधिकारी भ्रष्टाचार के मामले में बंदी बनाये जाते हैं किन्तु भ्रष्टाचार को नियंत्रित कर पाना संभव नहीं दिख रहा है। भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिये भी भौतिक दृष्टिकोण से ऊपर उठकर आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण संपन्न व्यक्ति भ्रष्टाचार नहीं करेगा और जो कुछ भौतिक दृष्टिकोण रखने वाले शेष व्यक्ति होंगे उनको दण्डित करके नियंत्रित किया जा सकता है।

व्यवहार : आध्यात्मिक दृष्टिकोण हमें यह सिखाता है कि स्वयं के लिये अनपेक्षित व्यवहार दूसरों के प्रति भी न करो किन्तु भौतिक दृष्टिकोण गिरगिट की तरह रंग बदलने का व्यवहार सिखाता है, जिस व्यवहार से भौतिक लाभ प्राप्त हो वही व्यवहार करने को प्रेरित करता है। नेताओं को सार्वजानिक रूप से अपने विचार व्यक्त करने होते हैं, व्यवहार भी सार्वजनिक होता है इसलिये भौतिकवादी नेताओं में व्यवहार परिवर्तन करने की कला विशेष रूप से देखने को मिलता है। एक नेता को मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था।

अविश्वनीयता : भौतिक दृष्टिकोण की वृद्धि और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के क्षरण का प्रभाव ही है कि आज कोई भी एक-दूसरे का विश्वास नहीं कर सकता। यहां उदहारण नेताओं की नहीं लेंगे वो जगजाहिर ही हैं, पति-पत्नी में विश्वास नहीं होता, पिता-पुत्र में विश्वास नहीं होता, भाई-बहन में विश्वास नहीं होता, मित्र में विश्वास करना तो पैर पर कुल्हाड़ी मारना हो गया है। इसका प्रमाण है धन-नौकरी किसी भी प्रकार के लाभ हेतु कोई भी रिश्ता तोड़ा जाना या हत्या तक कर देना।

जब सभी भौतिक दृष्टिकोण से ही युक्त रहेंगे और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से हीन रहेंगे तो सभी अपराधी-भ्रष्टाचारी ही होंगे फिर कितने को दण्डित किया जा सकता है ? जैसे दो आँखें हैं, जबकि एक आंख से भी देखा जा सकता है फिर भी यदि एक आंख न हो तो उसे हीनांग माना जाता है, उसी प्रकार भौतिक दृष्टिकोण से देखा जा सकता है किन्तु आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी आवश्यक होता है।

निष्कर्ष

इस प्रकार हमने जाना कि दृष्टिकोण के मुख्य रूप से दो ही भेद हैं भौतिक और आध्यात्मिक। भौतिक दृष्टिकोण की वृद्धि से आध्यात्मिक दृष्टिकोण का क्षरण होता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण का क्षरण होने से नीति-अनीति, सत्य-असत्य, न्याय-अन्याय, पुण्य-पाप का अंतर मिट जाता है और भौतिक दृष्टिकोण में वृद्धि होने से शरीर बुद्धि की वृद्धि होती है एवं भौतिक उन्नति प्राप्त करना ही लख्य होता है।

मात्र भौतिक दृष्टिकोण संपन्न व्यक्ति में अन्य कोई विचार करने की अक्षमता उत्पन्न होती है एवं विवेक रूपी नेत्र का अभाव होता है जिस कारण भौतिक उन्नति प्राप्त करने के लिये वह किसी भी सीमा का अतिक्रमण कर सकता है; क्योंकि उसके लिये किसी भी प्रकार की कोई सीमा होती ही नहीं है।

इस प्रकार निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि वर्त्तमान में विज्ञान, आधुनिकता आदि के नाम पर मात्र भौतिक दृष्टिकोण को महत्व देने का प्रयास किया जाने लगा है और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के महत्व को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है जो एक अराजक समाज के निर्माण करने वाला है।

भविष्य के अराजक समाज के प्रति तत्काल सजग होकर भौतिक दृष्टिकोण को अनावश्यक महत्व देने और आध्यत्मिक दृष्टिकोण के त्याग की प्रवृत्ति का त्याग करना आवश्यक है। इसके लिये मात्र शास्त्र पढ़ने वाले ब्राह्मण या कथा वांचने वाले कथावाचक को उत्तरदायित्व नहीं दिया जा सकता। राजकीय रूप से जन-आंदोलन पूर्वक पुनः आध्यात्मिक दृष्टिकोण को भी स्वीकार करना होगा।

दृष्टिकोण
दृष्टिकोण

जन-आंदोलन कहने का तात्पर्य है जो जितना बड़ा नेता, कथावाचक, अभिनेता हो उसकी उतनी बड़ी भूमिका की अपेक्षा है।

F & Q ?

प्रश्न : दृष्टिकोण कितने प्रकार का होता है?
उत्तर : दृष्टिकोण मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है – भौतिक और आध्यात्मिक। समग्र कहकर तीसरा प्रकार कहना समुचित नहीं है।

प्रश्न : विपरीत दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर : विपरीत दृष्टिकोण का तात्पर्य वास्तविकता के विपरीत व्याख्या करना है।

प्रश्न : कौन से दृष्टिकोण सटीक हैं?
उत्तर : दृष्टिकोण के दो प्रकार हैं भौतिक और आध्यात्मिक दोनों सटीक हैं ।

प्रश्न : जीवन में दृष्टिकोण का क्या महत्व है?
उत्तर : हम हमारे दृष्टिकोण के अनुसार ही संसार, व्यक्ति, विषय, वस्तु किसी के बारे में ज्ञान प्राप्त करते हैं।

प्रश्न : दृष्टिकोण परिवर्तन क्या है?
उत्तर : भूत परिवर्तनशील है इस कारण भौतिक दृष्टिकोण भी परिवर्तनशील है। काल के साथ भूत में परिवर्तन होने से भौतिक दृष्टिकोण में भी परिवर्तन हो जाता है। इसी को दृष्टिकोण परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न : व्यक्तिगत दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर : व्यक्तिगत दृष्टिकोण का तात्पर्य है कि एक ही विषय-वस्तु-घटना की व्याख्या अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग प्रकार से करते हैं। सभी व्यक्ति की अलग-अलग व्याख्या उनके व्यक्तिगत दृष्टिकोण के कारण ही होती है।

प्रश्न : भौतिक दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर : भौतिक दृष्टिकोण का तात्पर्य है भूत को समझने-समझाने का प्रयास करना। नश्वर भूत को ही सत्य मानकर जब विचार किया जाता है तो वह भौतिक दृष्टिकोण होता है।

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