नवरात्रा में जितनी अधिक महत्वपूर्ण शास्त्रोक्त विधि-विधान की होती है उससे अधिक आवश्यकता उस विधि को भी जानने-समझने की होती है क्योंकि अधिकांश सामान्य जन स्वयं ही नवरात्र व्रत, पूजा, उपासना आदि करते हैं। यदि सभी विद्वान ब्राह्मण के द्वारा विधि-पूर्वक कराना चाहें भी तो उतनी संख्या में ब्राह्मण उपलब्ध हो ही नहीं सकते और इसीलिये यह आवश्यक हो जाता है कि जो स्वयं ही करना चाहें उनकी भी एक सामान्य विधि हो जिसमें बिना मंत्रों के भी पूजा आदि की जाय। यहां इसी विषय को समझने का प्रयास किया गया है।
सामान्य जन के लिये दुर्गा पूजा की विधि – durga pujan vidhi 01
ऐसे लोगों को एक बात भली-भांति समझ लेना आवश्यक है कि शास्त्रोक्त विधि-विधान के अनुसार यदि व्रत-पूजा-पाठ आदि करना चाहें तो बिना ब्राह्मण के नहीं किया जा सकता। तथापि सबके लिये ब्राह्मण उपलब्ध हो ही नहीं सकते इस कारण उन लोगों के लिये जो स्वयं ही पूजा आदि करना चाहते हैं उस “सामान्य विधि” की चर्चा आगे की गयी है जिसमें मंत्रों का प्रयोग नहीं है और व्यावहारिक स्थिति के अनुसार विधि बताई जा रही है।
उक्त विधि की मंत्र सहित चर्चा अगले आलेख में की गयी है और जो समंत्र करना चाहें वो समंत्र भी कर सकते हैं। किन्तु यह सामान्य जनों के लिये व्यवहारानुकूल विधि है और जो स्वयं करते हैं उन्हें लाभ मिल सके, उनके लिये नहीं जो विधि-विधान के अनुसार करना चाहते हैं।
- स्वयं ही सामान्य विधि के अनुसार पूजा करनी हो तो कलश स्थापन नहीं होगा, प्रतीकात्मक कर लें तो उसका कोई औचित्य नहीं तथापि यदि रखते भी हैं तो निषेध नहीं क्योंकि “भावे हि विद्यते देवः” द्वारा पुष्टि हो जायेगी।
- स्वयं ही पूजा करने का तात्पर्य है प्रतिमा (यदि पूर्व से हो)/चित्र में पूजा करना, उपवास करना, मंत्रादि जप करना, यदि सप्तशती पाठ कर सकते हों तो पाठ करना आदि।
- स्वयं से पूजा करने पर मंडल (वेदी) आदि की कोई बात नहीं की जा सकती किन्तु अष्टदल की चर्चा होगी और अन्य रंगोली आदि भी बनाये जा सकते हैं।
- इस प्रकार से यदि स्वयं ही कर्मकांड के ज्ञाता नहीं हों और सामान्य पूजन करते हैं तो उसमें हवन नहीं किया जा सकता। तो पुनः प्रश्न उत्पन्न होता है कि कोई विकल्प तो हो, क्या करें फिर ?
दुर्गा पूजा सामग्री
यदि हम सामान्य विधि की भी बात करें जो भावात्मक हो उसमें भी सामग्रियों की तो आवश्यकता होगी ही किन्तु मानसिक पूजा में सामग्रियों की आवश्यकता नहीं होती। मानसिक पूजा उत्तम है किन्तु मानसिक पूजा के लिये भी तो पूजा की विधि का ज्ञान होना आवश्यक होता है। पूजा सामग्रियों की बात करें तो शास्त्रोक्त विधि के अनुसार करें अथवा स्वयं भावात्मक करें सामग्रियों की शुद्धता सुनिश्चित करना यजमान का ही दायित्व होता है। यदि कर्मकांडी ब्राह्मण उपस्थित हों तो उनका भी दायित्व होता है कि यजमान से जहां त्रुटि हुई हो उसका भी निवारण करें।
जब हम शुद्धि की बात करते हैं तब एक ही बिन्दु के माध्यम से समझा जा सकता है कि दुकानों से सामग्रियां क्रय ही न करनी पड़े, सभी व्यवस्था स्वयं ही करें। किन्तु सोच दूषित हो गयी है और पत्र-पुष्प-गंगाजल तक भी दुकानों से क्रय करने लगे हैं जो कि शास्त्रविरुद्ध है। हमारे धर्माचरण का उद्देश्य GDP में योगदान देना नहीं आत्मकल्याण होना चाहिये। आत्मकल्याण उद्देश्य होगा तभी हम शास्त्रोक्त विधियों का पालन कर पायेंगे अन्यथा उल्लंघन ही करेंगे।
- चौकी या पट्टा (प्रतिमा/चित्र स्थापित करने के लिये)
- वस्त्र – आसन देने हेतु
- चुनड़ी – चित्र/प्रतिमा को चढाने हेतु (क्षमता के अनुसार साड़ी, शृंगार सामग्री आदि भी)
- खोंयछा सामग्री
- पुष्प, बिल्वपत्र, शमीपत्र, माला (स्वयं व्यवस्था करें)
- पान-सुपाड़ी
- अक्षत
- तिल
- चंदन – घिसने वाली लकड़ी यथा रक्तचंदन और घिसने वाला पत्थर चंडौता
- कुमकुम
- सिन्दूर
- गंगाजल/पवित्र जल
- धुप, धूप जलाने के लिये पात्र, गोयठा आदि
- दीप, बत्ती, घी
- इलेक्ट्रिक लाईट/माचिस
- नैवेद्य – फल, मेवा, बतासा, शक्कर, पेड़ा (स्वयं बनायें)
- कर्पूर
पूर्व दिन की तैयारी
अब हमें नवरात्र के पूर्व दिन की तैयारी और व्यवस्थापन को समझना भी आवश्यक है और आश्विन कृष्ण अमावास्या को ही नवरात्र व्रतोपासना के लिये तैयारी करनी होती है।
पूर्व दिन शारीरिक शुद्धि में पुरुष के लिये क्षौरकर्म, पुरुष-स्त्री सबके लिये गंगास्नान या पवित्र नदियों का स्नान, पूजा गृह की स्वछता, पूजा सामग्री की व्यवस्था, एकभुक्त आदि महत्वपूर्ण विषय हैं। इसके साथ ही ब्राह्मण से अनुमति लेना, विधि और नियमों के बारे में जानकारी लेना आदि भी आवश्यक है। द्विज पुरुष नवीन यज्ञोपवीत, कटिसूत्र भी धारण करें।
यदि घर में कुत्ता रखते हैं तो बाहर करें, कुत्ता घर में रखने वाला पशु नहीं है कुत्ते के दृष्टि में भी दोष होता है, स्पर्श से तो अशुद्धि होती ही है और यदि घर में कुत्ता है तो घर भी अशुद्ध है। यदि घर में बाहरी कुत्ता भी प्रवेश कर जाये तो गृहशुद्धि की जाती है, जिसके घर में ही कुत्ता हो उसके घर में पूजा कैसे हो सकती है।
यह एक सामान्य बात हो गयी है कि पैसे आये नहीं कि पैसे के साथ ही कुत्ते भी घर में आ जाते हैं। पैसे वाले हैं यह दिखाने के लिये कुत्ते भी रखे जाते हैं, गाड़ियों में साथ बैठाकर घुमाते हैं, साथ में सुलाते तक भी हैं। ऐसे कुत्ताप्रेमियों के लिये यहां कोई विधि नहीं बताई गयी है।
दुर्गा पूजा करने की विधि
स्नानोपरांत शुद्ध/पवित्र वस्त्र धारण करके, तिलक लगाकर, शिखा ग्रंथि करके भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर न्यूनतम १० बार गायत्री जप कर लें, गायत्री जप पुरुष ही करें, सूर्य भगवान को अर्घ्य स्त्रियां भी दें। नित्य कुलदेवता आदि का पूजन जिस प्रकार करते हैं कर लें। नैवेद्य के लिये पक्वान्न, पायस आदि निर्माण करके तदनन्तर पूजा की तैयारी करें। नैवेद्य लगाने की सामान्य विधि कुलदेवता पूजन में जिस प्रकार पत्ते पर अर्पित करते हैं उस प्रकार करें। मिथिला में सीड़ा भरना भी कहा जाता है।
स्त्रियों के लिये व्रतादि में शृंगार का निषेध नहीं है तथापि एक तथ्य यह भी है कि मिथिला में शृंगार निषेध का व्यवहार देखने को मिलता है और इसे भी अमहत्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता है क्योंकि धर्म विषयक निर्णय में मिथिला के व्यवहार को भी निर्णायक कहा गया है। जहां शास्त्र वचन प्राप्त न हों अथवा विरोधाभाषी प्रतीत हों वहां मिथिला के व्यवहार से निर्णय ग्रहण करे। तथापि जिस क्षेत्र में हैं वहां शृंगार आदि के निषेध की परंपरा है तो उसी परम्परा का पालन करें और यदि व्यावहारिक निषेध नहीं है तो शृंगार करें।
यदि किसी संस्थाओं द्वारा भ्रमित होकर स्त्री गायत्री जप आदि कर रही हैं तो किसी ऐसे विद्वान ब्राह्मण से परामर्श ले जो ऐसी किसी भी संस्थाओं से किसी प्रकार संबंध न रखते हों। ऐसी संस्थाओं की कोई शास्त्रोक्त मान्यता नहीं है, और ऐसी संस्थाओं के व्यक्तियों के परामर्श का भी कोई औचित्य नहीं है। ऐसी संस्थाओं के विद्वान से विद्वान व्यक्ति की तुलना में भी मूर्ख-से-मूर्ख ब्राह्मण श्रेयस्कर है।
ऐसी संस्थाओं के सदस्य ब्राह्मण कहलाने के अधिकारी ही नहीं हैं, भले ही वो जन्मना ब्राह्मण भी क्यों न हों, अपनी संस्थाओं में गुरुकुल भी क्यों न चलाते हों त्याज्य ही हैं और इनकी तुलना में वो जन्मना ब्राह्मण जो मूर्ख ही क्यों न हो, गुरुकुल में भले ही अध्ययन न किया हो, शास्त्रज्ञानी न हो किन्तु वृत्ति मात्र से भी ब्राह्मण हो तो वही ग्राह्य है।
क्योंकि ऐसी सभी संस्थायें कर्मणा वर्ण के पक्षधर हैं और कर्मणा वर्ण निर्धारण करने पर वर्णसंकर दोष स्वतः उत्पन्न हो जाता है। ये सभी वर्णसंकरों की उत्पत्ति/वृद्धि में योगदान देने वाले हैं और निन्दित हैं, अग्राह्य हैं। हमारे शब्द कटु हो सकते हैं किन्तु शास्त्र-सम्मत हैं, गीता में भी वर्णसंकरों को लेकर पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं। गीता के प्रमाण से ही ये सभी वर्णसंकरता के पक्षधर स्वयं भी नारकीय हैं, अपने पितरों को भी नरकगामी बना रहे हैं, और इनके अनुगामी भी नरक के ही भागी बनेंगे। गीता में ऐसे वर्णसंकरों के पक्षधरों को कुलघ्न अर्थात कुलघाती तक कहा गया है।
इस विषय में सभी सनातन प्रेमियों से यह आग्रह भी है कि आलेख को अधिकाधिक लोगों के साथ साझा भी करें ताकि अधिकाधिक लोग लाभान्वित भी हो सकें।
- स्नानादि करके पूजा गृह को स्वच्छ करें।
- प्रथम दिन यदि संभव हो तो पंचगव्य निर्माण करें और स्नान, प्राशन, प्रोक्षण करें।
- चौकी या पट्टा बिछाकर उसपर वस्त्र (लाल) बिछाकर, रंगीन चावल आदि से यदि अष्टदल निर्माण कर सकें तो करें, अन्यथा ऐसे ही प्रतिमा/चित्र स्थापित करें।
- प्रतिमा हो तो स्नानादि के पश्चात् प्रतिदिन वस्त्र परिवर्तन होगा, चित्र में वस्त्र (चुनड़ी) लगा दें। प्लास्टिक आदि के माला का प्रयोग न करें।
- पूजा सामग्री व्यवस्थित करें : जलपात्र में जल भरें, चंदन घिस लें, आग की व्यवस्था करके धूप जला लें, दीप जला लें, नैवेद्य लगा लें। नैवेद्य में ही पान-सुपारी आदि भी अर्पित करें।
- दीपक भगवती के बांयी ओर और धूप दांयी ओर लगायें।
- घंटी, माला, पुस्तक आदि व्यवस्थित कर लें।
- किसी पात्र में हाथ धोने के लिये भी जल रख लें, जब-जब आवश्यक हो जल से हाथ धो लिया करें। हाथ पोंछने के लिये पृथक वस्त्र भी रख लें।
- दीप, पुस्तक, माला आदि सबके लिये आसन की व्यवस्था भी करें। पुस्तक को वस्त्र में लपेटकर रखें, बिना वस्त्र के न रखें, माला को भी गोमुखी में रखें खुला न रखें।
- किसी थाली आदि में पूजा की अन्य सामग्रियां व्यवस्थित कर लें; यथा अक्षत, तिल, सिन्दूर आदि। पुष्पडाली में पुष्प, माला, बिल्वपत्र आदि ले लें।
अब आगे आसन पर बैठकर पूजा आरम्भ करें और सर्वप्रथम पवित्रीकरण हेतु जल छिड़क लें, आसन और सभी सामग्रियों पर भी जल छिड़क लें, आचमन कर लें। यदि मंत्र आता हो तो समंत्र करें अन्यथा बिना मंत्र के ही करें, स्त्रियां जल का स्पर्श मात्र करे, समंत्र आचमन पुरुष मात्र ही करें।
नाम मंत्र मात्र से भी पूजन की विधि पृथक बताई जायेगी और जब मंत्र प्रयोग होगा तो न्यूनतम पंचदेवता और विष्णु पूजन भी किया जायेगा। यहां पंचदेवता पूजा के स्थान पर नित्यपूजा में कुलदेवता सहित अन्य जिन-जिन देवताओं की पूजा करते हैं उनकी पूजा करने के लिये पूर्व ही कहा जा चुका है। घंटी की पूजा के लिये चंदन, पुष्प, अक्षत आदि अर्पित करके घंटी बजाकर यथा स्थान रख दें। आगे माता दुर्गा की, माला की और जिस पुस्तक का पाठ करना हो उस पुस्तक की पूजा की जायेगी।
सर्वप्रथम दोनों हाथों में पुष्प लेकर माता दुर्गा का ध्यान करें, यदि कोई मंत्र पढ़ सकें तो पढ़ें, भजन करना हो तो भजन कर लें और पुष्प अर्पित करें। तदुपरांत चार बार थोड़ा-थोड़ा जल अर्पित करें ये क्रमशः पाद्य, अर्घ्य, आचमन और स्नान के निमित्त होते हैं :
- पाद्य : पथम बार में माता के चरण धोने का भाव करें
- अर्घ्य : द्वितीय बार में अर्घ्य का भाव करें
- आचमन : तृतीय बार में आचमन का भाव करें और
- स्नान : चतुर्थ बार में स्नान करा रहे हैं ऐसी भावना करें (घंटी बजाते हुये)।
वस्त्र : स्नानोपरांत वस्त्र अर्पित करें, चुनड़ी पहले ही अर्पित है तो स्पर्श कर लें। प्रतिदिन वस्त्र परिवर्तन करना हो तो परिवर्तन करें। वस्त्र के पश्चात् पुनः आचमन भाव से जल अर्पित करें।
- गंध : तदुपरांत जो भी चन्दन घिसा गया हो चंदन, कुमकुम, सिंदूर आदि अर्पित करें ।
- पुष्प : ढेरों पुष्प लेकर माता को अर्पित करें। माला पहना दें, बिलपत्र, शमीपत्र आदि भी अर्पित कर दें।
- अक्षत : इसके पश्चात् अक्षत अर्पित करें। अक्षत में संख्या निर्धारण एक भ्रम है ढेरों अक्षत गिनती के बिना अर्पित करें।
- तिल : इसके पश्चात् तिल भी अर्पित करें।
- धूप : इसके पश्चात् घंटी बजाते हुये धूप अर्पित करें, अथवा धूप के निकट अक्षत छिड़क दें।
- दीप : इसके पश्चात् पुनः घंटी बजाते हुये दीप दिखायें। दीप दिखाने के पश्चात् हाथ धो लें।
नैवेद्य : नैवेद्य में शुद्धतम वस्तुओं के ही भोग लगायें। फलों को धोकर प्रयोग करें। मिष्टान्न, पायस, पक्वान्न आदि स्वयं बनाकर ही भोग लगायें। मिष्टान्न में पेड़ा, लड्डू आदि सरलता से बनाये जा सकते हैं। पेड़ा बनाने के लिये भी शुद्ध दूध लेकर उससे खोया स्वयं बनायें, न कि बाजारों से खोया क्रय करके। नैवेद्य अर्पित करने के लिये पूर्व प्रसारित नैवेद्य के चारों ओर जल से घेरा बनाकर घंटी बजाते हुये पुष्प अर्पित करें। भोग लगाने के पश्चात् आचमन के निमित्त पुनः जल भी प्रदान करें। पान-सुपाड़ी पूर्व ही नैवेद्य में अर्पित न किया गया हो तो बाद में अर्पित करें।
इसके पश्चात् पुष्पांजलि अर्पित करके पुस्तक, माला आदि की भी पूजा कर ले। पुस्तक की आवश्यकता तब होती है जब पाठ करना हो और माला की आवश्यकता तब होती है जब जप करना हो। मंत्र सहित पूजा करने की विधि अगले आलेख में दी जायेगी। पूजा के पश्चात् यदि जप-पाठ आदि करना हो तो करें। फिर आरती करके पुनः पुष्पांजलि अर्पित करके आरती करे। प्रणाम करके, भजन आदि करना हो तो भजन करके जल गिराकर प्रसाद ग्रहण करे।
सायं काल में दिन के चढ़ाये पुष्पादि को भी हटाकर पुनः धूप-दीप जलाकर भोग लगाये और आरती करके भजन आदि करे। जहां मंत्र का ज्ञान न हो वहां भजन का ही प्रयोग करना चाहिये और चूँकि ये आलेख सामान्य जनों के लिये मंत्र रहित पूजा के संबंध में है इसलिये भजन का विशेष महत्व समझना चाहिये किन्तु इसमें भी इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि भजन स्वयं ही करे भले ही लिखा हुआ क्यों न गाये किन्तु भजन के स्थान पर साउंड, मोबाईल आदि बजाकर न निपटाये।
नवरात्र व्रती को चाहिये कि व्रत में मोबाईल आदि का जितना कम प्रयोग कर सके उतना कम करे, मात्र आवश्यक बातें करने तक सीमित रखे। न तो सोशल मीडिया का प्रयोग करे और न ही अन्यान्य अंतर्जालीय प्रयोग। सर्वत्र मन को विचलित करने वाले विज्ञापन चलाये जाते हैं जो दोषपूर्ण है और इससे नहीं बच सकते इसलिये प्रयोग ही न करे।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।