नवरात्रि के आते ही जन-जन माता दुर्गा की अराधना करने में लीन हो जाता है, व्रत-उपवास, पूजा-पाठ-जप-हवन आदि करते हैं, विशेष नियमों का पालन करते हैं और माता दुर्गा की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं। नवरात्रि व्रत कहें, माता दुर्गा की पूजा कहें, श्री दुर्गा सप्तशती पाठ, नवार्ण मंत्र जप आदि की यदि बातें करें तो अनेकों महत्वपूर्ण तथ्य होते हैं जिसके बारे में शास्त्र-सम्मत ज्ञान का होना आवश्यक है और यहां हम इन विषयों को संक्षेप में समझने का प्रयास करेंगे।
नवरात्रि में दुर्गा पूजा की महत्वपूर्ण जानकारी – durga upasana
सर्वप्रथम हमें व्यावहारिक दृष्टिकोण से नवरात्र व्रतोपासना को तीन भागों में बांटकर उसे समझना होगा तदुपरांत उन तीनों प्रकारों की विधियों को समझा जा सकता है। व्यावहारिक दृष्टिकोण से तीन प्रकार हैं :
- सामान्य जन की विधि : जो कलश स्थापना नहीं करते, पंडित जी को नहीं बुलाते, स्वयं ही यथाज्ञान पूजा-पाठ-जप आदि करते हैं और यहां तक कि हवन भी कर लेते हैं।
- कलश स्थापना पूर्वक : बहुत लोग पंडित जी को बुलाकर कलश स्थापना पूर्वक पूजा-पाठ-हवन आदि करते हैं। पाठ स्वयं भी करते हैं और ब्राह्मण द्वारा भी करवाते हैं अथवा मात्र ब्राह्मण द्वारा ही पाठ-जप कराते हैं, पूजा स्वयं करते हैं। कुछ लोग बिना ब्राह्मण के भी करते हैं। इनके भी दो वर्ग हैं एक सामान्य पूजा, दूसरी विशेष पूजा।
- मंदिरों में प्रतिमा स्थापन करके : नवरात्रा में अनेकों स्थान पर सामूहिक रूप से मंदिरों, पंडालों में माता दुर्गा की प्रतिमा का स्थापन करके प्रतिनिधि यजमान के द्वारा पूजा आदि।
नवरात्रा विषयक महत्वपूर्ण प्रश्न
उपरोक्त सभी पक्षों की विस्तृत चर्चा पृथक आलेख में करेंगे। इसके पश्चात् नवरात्रा विषयक अगले महत्वपूर्ण प्रश्न जो होते हैं वो इस प्रकार कहे जा सकते हैं :
- नवरात्रा कब से है अर्थात नवरात्रा का आरम्भ कब होता है ?
- नवरात्रा कब तक है, विजयादशमी कब है ?
- नवरात्रा में निराहार रहना अनिवार्य है क्या ?
- नवरात्र उपासना में ब्राह्मण की अनिवार्यता है क्या ?
- यदि ब्राह्मण उपलब्ध न हों तो क्या स्वयं नहीं कर सकते ?
- यदि स्वयं ही पूजा करें तो भी कलश स्थापना अनिवार्य है क्या ?
- अखण्ड दीपक जलाना अनिवार्य है क्या ?
- कुमारी कन्या पूजन अनिवार्य है क्या ?
- क्या हिन्दी में दुर्गा सप्तशती पाठ किया जा सकता है ?
- माता दुर्गा किस वाहन पर आयी हैं, किस वाहन पर जाएंगी ?
अब हम क्रमशः इन प्रश्नों के उत्तर समझेंगे :
प्रश्न 1 : नवरात्रा कब से है अर्थात नवरात्रा का आरम्भ कब होता है ?
नवरात्रा कब से है इस प्रश्न का तात्पर्य मात्र इतना होता है कि आगामी नवरात्रा का आरंभ किस दिन/दिनांक से हो रहा है। नवरात्रा प्रकरण में एक महत्वपूर्ण निर्णय यह है कि प्रवेश से विसर्जन तक की सभी क्रियायों में औदयिक तिथि को ही ग्रहण करे – “भगवत्याः प्रवेशादि विसर्गान्ताश्च याः क्रियाः। रवेरुदयगामिन्याम् ताः सर्वाः कारयेद्बुधः॥” निशापूजा इसका एक अपवाद है अर्थात निशापूजा के लिये औदयिक तिथि नहीं, निशीथकालिक तिथि को ग्राह्य कहा गया है।
उदयव्यापिनी शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही कलशस्थापन होता है और नवरात्र का आरम्भ भी इसी दिन होता है। इसमें महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं :
- अमावास्या युक्त प्रतिपदा नहीं होनी चाहिये। यदि अमावास्या युक्त प्रतिपदा हो तो वह औदयिक नहीं हो सकती।
- तिथीमल (तिथिवृद्धि होने पर) अग्राह्य होता है अर्थात यदि दोनों ही दिन औदयिक प्रतिपदा हो तो प्रथम दिन ग्राह्य है।
- औदयिक प्रतिपदा मुहूर्तमात्र भी हो तो वही ग्राह्य है भले ही शेष सम्पूर्ण द्वितीया क्यों न हो।
- यदि दोनों दिन में से किसी भी दिन औदयिक प्रतिपदा न हो तो जिस दिन अमावास्यायुक्त प्रतिपदा हो वही ग्राह्य है।
दृक पंचांगों के अनुसार शारदीय नवरात्रि 2025 सोमवार 22 सितम्बर से बुधवार 1 अक्टूबर तक है।
प्रश्न 2 : नवरात्रा कब तक है, विजयादशमी कब है ?
नवरात्रा कब से है इस प्रश्न का तात्पर्य मात्र इतना होता है कि आगामी नवरात्रा का आरंभ किस दिन/दिनांक से हो रहा है। 2025 में विजयादशमी गुरुवार, 2 अक्टूबर को है। विजयादशमी के लिये भी औदयिक ही ग्राह्य है और इसके विषय में भी घटिकैका वचन प्राप्त होता है। इसके साथ ही एक अन्य विशेषता श्रवण नक्षत्र का है।
प्रश्न 3 : नवरात्रा में निराहार रहना अनिवार्य है क्या ?
नवरात्र व्रत करने में ऐसा स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि निराहार, यताहार जैसे भी हो सामर्थ्यानुसार करे – “निराहारो यताहारो तन्मनस्कौ समाहितौ” तन कर मन दोनों जिस किसी भी प्रकार से माता दुर्गा में समाहित हो उसी विधि का अवलम्बन करते हुये नवरात्र व्रत करे। मुख्य विषय तन और मन दोनों का समाहित करना है उसके लिये निराहार रहने से सहयोग मिले अथवा फलाहार, सात्विक भोजन आदि करके मिले, जैसे उचित हो वैसे रहते हुये नवरात्र व्रत करे।
भविष्य पुराण में कहा गया है : “एकभक्तेन नक्तेन तथैवाऽयाचितेन च। पूजनीया जनैर्देवी स्थाने-स्थाने पुरे पुरे॥” इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि एकभक्त, नक्त और अयाचित (बिना मांगे प्राप्त होने पर भक्षण करना) तीनों में से किसी भी विधि का आश्रय लिया जा सकता है। अर्थात यताहारो का तात्पर्य भी यह नहीं होता है कि जीतनी बार जो मन करे वही भोजन किया जा सकता है।
इसी प्रकार फलाहार पूर्वक भी नवरात्रि करें तो इसका तात्पर्य यह नहीं हो सकता कि 3 बार 4 बार या और भी अधिक फलाहार कर सकते हैं। आहार को नियंत्रित करना है यह तो स्पष्ट हो ही रहा है कि एक बार ही करे। बहुत आस्थावान निराहार ही रहते हैं अर्थात न ही अन्नाहार और न ही फलाहार करते हैं।
जिन्हें फलाहार करना हो वो भी सीमित ही करने का प्रयास करना चाहिये। यदि आहार की बात करें तो इसमें ऐसा भी नहीं कि जो मन में आये वो कर लो, आहार सात्विक होना चाहिये। साथ ही आहार के विषय में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि उसकी व्यवस्था भी स्वयं करें या परिवार वाले ही करें, ऐसा कहने का तात्पर्य यह है कि अब तो फलाहार भी होटलों से ऑनलाइन आ जाते हैं जो कि आस्थावानों के लिये उचित नहीं है।
जिसकी आस्था ही नहीं है, आडम्बर कर रहा हो वो होटल वाला भी आहार करे तो इसका तात्पर्य यह नहीं लेना चाहिये कि ये उचित है। ऐसा प्रयास किया जा रहा है कि लोगों को आकर्षित करने के लिये अनास्थावान भी आडम्बर करके ऐसा करते हैं और आस्थावानों को भी प्रेरित करते हैं।
प्रश्न 4 : नवरात्र उपासना में ब्राह्मण की अनिवार्यता है क्या ?
जब ब्राह्मण उपस्थित ही न हों तो बिना ब्राह्मण के उपस्थित हुये भी किये जा सकते हैं किन्तु विधि की आज्ञा किसी न किसी ब्राह्मण से अवश्य ही ग्रहण करनी चाहिये। सामान्य पूजा-पाठ जो प्रतिदिन करते हैं और नवरात्र में उससे मात्र थोड़ा सा अधिक करना हो आहार नियंत्रण, पूजा, पाठ आदि के विषय में तो बिना ब्राह्मण के किया जा सकता है।
किन्तु यदि विधि का आश्रय ग्रहण करना हो तो ब्राह्मण की अनिवार्यता हो जाती है और इसमें ध्यान देने वाला विषय यह है कि एक कर्मकांडी ब्राह्मण स्वयं भी विधिपूर्वक नवरात्र व्रत-पूजा-पाठ आदि करे तो उसके लिये भी ब्राह्मण की अनिवार्यता होती ही है भले ही सब-कुछ स्वयं ही क्यों न करें। सर्वप्रथम आज्ञा, हवन में ब्रह्मा, कर्म पूर्णता, भोजन, दक्षिणा आदि के लिये ब्राह्मण की अनिवार्यता होती ही है।
साथ ही किसी भी प्रकार की दुविधा उत्पन्न होने पर भी उसमें कर्तव्याकर्तव्य के लिये आज्ञा हेतु ब्राह्मण की अनिवार्यता होती ही है। सामान्य रूप से लोगों को एक पंक्ति बोलते सुना जाता है दोष-विष पंडित जी का अर्थात पंडित जी से जो पूछा गया और पंडित जी ने जो आज्ञा दिया तो आगे यजमान दोषमुक्त हो जाता है, यदि पंडित जी ने गलत शास्त्रविरुद्ध आज्ञा देते हैं तो उसका दोष उन पंडित जी को लगेगा न कि यजमान को।
एक उदाहरण : हम पूजा करते हैं और अधिकांशतः अपद्रव्यों/अशुद्ध सामग्रियों (इत्र/गुलाबजल/सप्तमृत्तिका/पंचरत्न/सर्वौषधि/नवग्रह समिधा/चंदन के स्थान पर कुमकुम/धूप के स्थान पर अगरबत्ती/नैवेद्य में होटलों के मिष्टान्न/डेयरी के दूध/दही/घी आदि का भी प्रयोग करते ही हैं, यदि स्वयं ही कर रहे हैं तो उसके दोष के भागी भी स्वयं बन रहे हैं किन्तु यदि पंडित जी प्रयोग करा रहे हैं तो उसका दोष भी पंडित जी का होगा।
दूसरा उदाहरण : यदि कोई अनुचित कार्य हो गया हो तो उसका निवारण भी ब्राह्मण की आज्ञा से ही होता है। यथा यदि कोई कलश से नारियल आदि गिर जाये, श्वान आदि आ जाये, विघ्न आ जाये (अस्वथ हो जायें) तो ऐसी अवस्थाओं में ब्राह्मण की आज्ञा से ही आगे का उचित-अनुचित निर्धारण हो सकता है।
यदि स्वयं पूजा-पाठ-जप आदि न कर सकते हैं तब तो ब्राह्मण की आवश्यकता होती ही है और ब्राह्मण ही पूजा कराते हैं, पाठ-जप आदि करते हैं।
प्रश्न 5 : यदि ब्राह्मण उपलब्ध न हों तो क्या स्वयं नहीं कर सकते ?
आगे प्रश्न आता है कि यदि ब्राह्मण उपलब्ध ही न हो सकें तो क्या स्वयं नहीं कर सकते ? यद्यपि इसका संक्षिप्त उत्तर ऊपर भी दिया गया है तथापि विस्तृत चर्चा अब करेंगे। यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण है कि यदि ब्राह्मण उपलब्ध ही न हों तो क्या स्वयं ही पूजन-व्रत आदि नहीं कर सकते। कोई निषेध है क्या ?
तो इसका उत्तर है कि ऐसा निषेध नहीं है और यदि विधि-आदि का ज्ञान हो अथवा भक्ति-भाव के अनुसार स्वयं जैसे भी करें उचित ही होता है और शास्त्रों में भक्ति की बड़ी महिमा कही गयी है। किन्तु एक तथ्य यह भी है कि यदि ज्ञानाभाव के कारण विधि आदि का उल्लंघन हुआ हो तो उसका मार्जन हो जाता है और भक्ति के प्रभाव से कल्याण के पात्र बनते हैं। ऐसी कथायें संतों द्वारा कही-सुनी जाती है कि ढेरों अज्ञानी भक्तों पर भी ईश्वर की कृपा बरसी है।
किन्तु आगे दूसरा तथ्य यह भी है कि जिसका ज्ञान हो उसकी अवहेलना करना शास्त्र का उल्लंघन होता है और ऐसे उल्लंघन से कल्याण नहीं होता है – “यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः। न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम् ॥” बहुत लोग भक्ति के नाम पर स्वेच्छार भी करते दिखते हैं और “भाव का भूखा” बोलते रहते हैं वास्तव में यह शास्त्रविधि के उल्लंघन हेतु प्रयोग करते रहते हैं कि शास्त्र विधि के अनुसार नहीं करते हैं तो को दोष नहीं भगवान तो भाव के भूखे होते हैं। इसे कदापि उचित नहीं कहा जा सकता।
जितना ज्ञान हो भक्ति के साथ उतनी विधियों का अनिवार्यतः पालन करना ही चाहिये। अब यदि विधि की बात करें तो इतना स्पष्ट है कि ब्राह्मण/गुरु से अनुमति लें, विधि आदि की पूरी जानकारी प्राप्त करें, जो विधि-विधान बताई जाय उसके अनुसार नवरात्र व्रत-पूजा-पाठ-जप आदि करें, व्रत के समापन में (विजयादशमी के दिन) पारण से पूर्व ब्राह्मणों को दक्षिणा दें, भोजन करायें, यदि भोजन करने के लिये भी ब्राह्मण अनुपलब्ध हों तो भोजन सामग्री पर्याप्त मात्रा में दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को प्रदान करें।
यहां स्पष्ट है कि ब्राह्मण को ही प्रदान करें न कि मंदिर में जाकर पुजारी को, उसमें भी जो देवलक श्रेणी के होते हैं। ब्राह्मण के घर में जाकर ब्राह्मण परिवार को ही जो भी अर्पित करना हो करना चाहिये, मंदिरों में जाकर व्रत आदि के निमित्त कुछ प्रदान करने का कोई विधान नहीं है। मंदिरों में जाने का कारण भी पुजारी का ब्राह्मण होना ही था जो वर्तमान युग में खण्डित होता जा रहा है और जो हैं भी यदि कुछ अपवादों को छोड़ दें तो देवलक श्रेणी के ही हैं।
प्रश्न 6 : यदि स्वयं ही पूजा करें तो भी कलश स्थापना अनिवार्य है क्या ?
अब आगे एक और गंभीर प्रश्न है और वो यह है कि यदि स्वयं ही बिना ब्राह्मण के पूजा आदि करनी हो तो क्या कलश स्थापन अनिवार्य है ? तो इसका उत्तर यह है कि यदि ब्राह्मण उपलब्ध न हो तो आपके ज्ञान पर निर्भर करेगा यदि आपको कलश स्थापना और पूजन विधि का ज्ञान है तो कर सकते हैं अन्यथा अनिवार्य नहीं है। यहां जिनसे अनुमति ली जाएगी वो जिस विधि की आज्ञा दें, बतायें उस विधि का पालन करते हुये करें। वर्त्तमान में कलश स्थापन की भी ढेरों ऊट-पटांग विधियां सोशल मीडिया पर बताई जाती है जिसका कोई औचित्य नहीं होता है। यह प्रत्यक्ष प्राप्त विधि के अनुसार ही फलदायी होता है।
प्रश्न 7 : नवरात्रा में अखण्ड दीपक जलाना अनिवार्य है क्या ?
यदि अखण्ड दीपक की बात करें तो नवरात्र व्रत में स्थापना करके प्रतिदिन पूजा की जाती है और बुझे न ऐसा पूर्ण प्रयास किया जाता है। किन्तु आगे अनिवार्यता का जहां तक प्रश्न है तो नवरात्र में अखण्ड दीप की अनिवार्यता जैसा कुछ नहीं है। तथापि अधिकांश लोग अखण्ड दीप की स्थापना करते ही हैं यदि नवरात्र में विशेष आराधना कर रहे हों।
प्रश्न 8 : नवरात्रा में कुमारी कन्या पूजन अनिवार्य है क्या ?
यदि हम नवरात्रा में कुमारी कन्या पूजन की अनिवार्यता के प्रश्न का विचार करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि अनिवार्यता भी है और कुमारी कन्या पूजन का महत्व भी अत्यधिक है – अकृते चाङ्गहानिः स्याद् विशेषाच्छरदर्चने ॥ न तथा तुष्यति शिवा बलिहोमस्तु तोरणैः ॥ अर्थात कुमारी पूजन से रहित होना अंगहानि होता है और अन्यान्य विशेष अर्चन से भी माता दुर्गा प्रसन्न नहीं होती। कुमारीपूजनं भगवत्या शरत्पूजनकर्मणि । बलिहोमादयश्चास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ॥ शारदीय नवरात्रा में तो और भी अधिक महत्व हो जाता है एवं बलि, होमादि अन्य क्रियायें कुमारी पूजन की षोडश कला अर्थात षोडशांश भी नहीं होता है। कुमारी पूजन से संबंधित और विस्तृत जानकारी के लिये यहां दिये गए आलेख का अवलोकन कर सकते हैं।
प्रश्न 9 : क्या हिन्दी में दुर्गा सप्तशती पाठ किया जा सकता है ?
यदि श्रीदुर्गा सप्तशती की बात करें, नवार्ण मन्त्र की बात करें, न्यास की बात करें, सब कुछ संस्कृत में ही है। देववाणी संस्कृत है और यदि देवता की स्तुति करनी हो तो संस्कृत में ही करनी चाहिये। यद्यपि देवता मन के भाव, मन की बात भी जानते हैं तथापि जब हम पाठ करने की बात करते हैं तो जो मूल भाषा है और देववाणी है उसी संस्कृत में करनी चाहिये।
तथापि हिन्दी अथवा अन्य अनुवादित भाषाओं में न करें ऐसा निषेध भी तो नहीं कहा जा सकता और यह भी नहीं कहा जा सकता कि उसका कोई फल नहीं होगा क्योंकि “भाय कुभाय अलख आलसहूँ। नाम लेत मंगल दिसि दसहुं।” हिन्दी अथवा अन्य अनुवादित भाषाओं में भी पाठ करने पर नाम आदि तो लेते ही हैं और उसका फल तो होगा ही, किन्तु पाठ का फल नहीं हो सकता। अस्तु यदि श्रीदुर्गा सप्तशती पाठ की बात करें तो वो देववाणी संस्कृत में ही करनी चाहिये।
प्रश्न 10 : माता दुर्गा किस वाहन पर आयी हैं, किस वाहन पर जाएंगी ?
- दुर्गा आगमन विचार : शारदीय नवरात्रि 2025 का आरम्भ सोमवार को होता है अर्थात सोमवार के दिन कलशस्थापन होने से उसी दिन के आधार पर आगमन विचार किया जायेगा। “शशिसूर्ये गजारूढ़ा” अर्थात प्रतिपदा यदि रविवार या सोमवार को हो तो गज (हाथी) पर दुर्गा आगमन मानना चाहिये और इसका फल इस प्रकार कहा गया है “गजे च जलदा देवी” अर्थात गज पर आगमन होने से जलदा अर्थात जल की वृद्धि फल बताया गया है।
- दुर्गा गमन विचार : शारदीय नवरात्रि 2025 में विजयादशमी गुरुवार को है। दुर्गा गमन विचार विजयादशमी को जो दिन हो उसके आधार पर किया जाता है। “सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहनगा शुभसौख्यकरा” – गुरुवार को विजयादशमी हो तो नरवाहन पर दुर्गा गमन होता है और इसका फल शुभसौख्यकर होता है। अतः शारदीय नवरात्रि 202 में दुर्गा गमन भी शुभ ही है।
निष्कर्ष : इस प्रकार से यहां नवरात्र के संबंध में महत्वपूर्ण विचार करते हुये १० महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर दिया गया है। ये सभी प्रश्न आस्थावान लोगों के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं और लोग इनका उत्तर ढूँढना चाहते हैं।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।