रात्रि सूक्त – श्री दुर्गा सप्तशती पाठ

रात्रि सूक्त – श्री दुर्गा सप्तशती पाठ

रात्रि सूक्त से सीधा अर्थ तो यही निकलता है कि रात्रि की जो स्तुति हो उसे रात्रिसूक्त कहा जायेगा और इसी कारण कुछ लोग नींद आने के लिये भी रात्रिसूक्त पाठ की बात करते हैं। रात्रि भी दो प्रकार की कही गयी है एक जीवरात्रि जो प्रतिदिन होता है और हम लोग जिसके अधीन हैं और दूसरी ईश्वररात्रि जो प्रलयान्त में व्याप्त होता है। दुर्गा सप्तशती पाठ करते समय सप्तशती से पूर्व रात्रि सूक्त पाठ का भी विधान देखा जाता है, किन्तु बहुत विद्वान स्वीकार नहीं भी करते हैं। यहां वेदोक्त और तंत्रोक्त दोनों रात्रिसूक्त दिये गये हैं।

रात्रि सूक्त – श्री दुर्गा सप्तशती पाठ

वास्तविक सृजन रात्रि की अधिष्ठात्री देवी भुवनेश्वरी के ही हाथों में होता है और जब प्रलय के बाद भगवान भी सो जाते हैं तब भी रात्रि की अधिष्ठात्री देवी जाग्रत रहती है और सृजन कार्य को सम्पादित करती रहती है। ये सृजन सामान्य जीवों में स्पष्टतः दृष्टिगत होता है और विज्ञानसिद्ध भी होता है। कोई भी जीव जब सो रहा होता है तब यही अधिष्ठात्री देवी उसके शरीर का निर्माण (विकास, क्षतिपूर्ति आदि) करती हैं।

इस प्रकार रात्रिसूक्त रात्रि की अधिष्ठात्री देवी का स्तवन है। यह दो प्रकार का है :

  1. वेदोक्त रात्रिसूक्त : ऋग्वेद की ८ विशेष ऋचाएँ रात्रि सूक्त कहलाती है जिसे वेदोक्त रात्रिसूक्त भी कहते हैं।
  2. तंत्रोक्त रात्रिसूक्त : मधु-कैटभ से पीड़ित ब्रह्मा ने जब भगवान विष्णु को शयन करते (निद्रा में) देखा तो उन्होंने निद्रा की अधिष्ठात्री देवी का स्तवन किया जो सप्तशती के प्रथम अध्याय में श्लोक 72-87 तक है, इसी को तंत्रोक्त रात्रि सूक्त कहते हैं।

रात्रि सूक्त सप्तशती के षडङ्ग में तो वर्णित नहीं है लेकिन मरिचकल्प का वचन है : रात्रिसूक्तं पठेदादौ मध्ये सप्तशतीस्तवम्। प्रान्ते तु पठनीयं वै देवीसूक्तमिति क्रमः ॥ अर्थात सप्तशती के आदि में रात्रिसूक्त और अंत में देवीसूक्त का पाठ करे।

॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः सुशांतिर्भवतु सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु

आगे सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती के अनुगमन कड़ी दिये गये हैं जहां से अनुसरण पूर्वक कोई भी अध्याय पढ़ सकते है :

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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