इस आलेख में हम मीडिया के बारे में चर्चा करते हुये संस्कृति और समाज पर मीडिया का प्रभाव के दोनों पक्षों पर विमर्श करेंगे। इसके साथ नकारात्मक प्रभाव के निवारण हेतु उपाय भी ढूंढने का प्रयास करेंगे। साथ ही यह स्पष्ट करना भी आवश्यक है कि आलेख भारतीय मीडिया के परिप्रेक्ष्य में और धर्म-संस्कृति के सन्दर्भ में है।
मीडिया की भूमिका एवं समस्याएं और ग्रामीण संस्कृति पर घातक प्रभाव
मीडिया के वर्तमान स्वरूप समाज और संस्कृति पर पड़ने वाले सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव की चर्चा करने से पहले हमें संक्षिप्त रूप से मीडिया के बारे में भी जानना आवश्यक है।
मीडिया क्या है
मीडिया लैटिन शब्द medium से बना है जिसका अर्थ माध्यम होता है। माध्यम का तात्पर्य मध्यस्थ होना भी होता है। अर्थात जो सूचना (सामग्री) और व्यक्ति व समाज (उपभोक्ता) के मध्य रहकर एक-दूसरे के बीच संपर्क स्थापित करे वह मीडिया है। इस प्रकार लोगों तक सूचना पहुंचाने का कार्य करने वाला सम्पूर्ण संचार तंत्र मीडिया कहलाता है जैसे – समाचार पत्र, डिजिटल मीडिया, शोशल मिडिया, वेब मीडिया आदि।
मीडिया के कार्य
मीडिया का मुख्य कार्य सूचनाओं का प्रसारण करना, शिक्षा का प्रसार करना, मनोरंजन करना और लोगों को जागरूक करना है। प्राचीन काल से ही मीडिया समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है और स्वस्थ लोकतंत्र के लिये महत्वपूर्ण भूमिका बताई गयी है।
मीडिया का सबसे प्रमुख कार्य लोगों तक सूचना यथावत पहुंचाना है।
मीडिया का सबसे प्रमुख कार्य विधियों का पालन करते हुये लोगों तक यथावत सूचना पहुंचाना है। अर्थात घटना में किसी प्रकार से न्यूनाधिक किये बिना पहुंचाना है। अर्थात यदि कही वर्षा हुयी तो वर्षा के संबंध में जो सूचना प्राप्त हुई वह सूचना कि कितने अंतराल पर हुई, कितनी मात्रा में हुयी आदि सूचना प्रदान करना है। इसमें किसी समुदाय विशेष या जाति विशेष बहुल के क्षेत्र को जोड़ना नहीं।
निष्पक्षता : मीडिया के लिये निष्पक्ष होना अत्यावश्यक है। सभी मीडिया स्वयं को निष्पक्ष कहते भी हैं किन्तु निष्पक्षता की कसौटी पर कोई भी खड़ा नहीं उतरता ये दुर्भाग्यपूर्ण हैं। इस दिशा में प्रयास करना आवश्यक है की मीडिया निष्पक्ष रूप से कार्य करे।
मीडिया की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न
मणिपुर घटना पर मीडिया ने जितना हंगामा किया पश्चिमबंगाल में सालों से हो रही वीभत्स घटनाओं में उसका षोडशांश भी प्रदान नहीं किया। देश में राज्यों की संख्या 28 है और संघ शासित प्रदेश की संख्या 8 है इस प्रकार कुल मुख्यमंत्री 36 हो सकते हैं लेकिन पिछले लगभग 10 वर्षों से ऐसा लग रहा है जैसे देश में मात्र 1 मुख्यमंत्री केजरीवाल था और अब आगे भी संभावना यही है कि केजरीवाल की जगह लेने वाला ही देश का मुख्यमंत्री दिखाया जायेगा, जैसे दिल्ली का मुख्यमंत्री न हो भारत का मुख्यमंत्री हो।
- यदि मैं बिहार में रहता हूं तो मेरे मुख्यमंत्री नितीश कुमार हैं, लेकिन मुझे केजरीवाल की तुलना में नितीश कुमार से सबंधित सूचना सौवां भाग भी प्राप्त नहीं होता। ये मीडिया की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। लगभग विगत 10 वर्षों तक मीडिया के कारण ऐसा लगा है कि केजरीवाल दिल्ली का मुख्यमंत्री न होकर भारत का मुख्यमंत्री हो।
- मीडिया को जल संरक्षण की चिंता मात्र होली में और प्रदूषण केवल दीपावली में दिखाई देती है। ये मीडिया की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
- बलि प्रथा के विरुद्ध मीडिया जोर-शोर से आवाज उठाती है किन्तु जब ईद-बकरीद की बात आये, गोहत्या की बात आये तो मौन साध लेती है। ये मीडिया की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगता है।
- जब कोई मौलाना-मौलवी किसी प्रकार की घटना करता है तो उसे इस प्रकार बताया जाता है – बाबा ने किया बलात्कार, तांत्रिक ने ली जान इत्यादि। ये मीडिया की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
- मीडिया ये तो सही सूचना देती है कि मंहगाई बढ़ रही है लेकिन पिछले दशक की तुलना में कितनी अधिक या कम बढ़ी ये नहीं बताती जो मीडिया की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
- बजट आने पर मीडिया ये तो बताती है कि अमुक वर्ग निराश हो गया या उसकी अनदेखी की गई, लेकिन ये नहीं बताती की उस अमुक वर्ग को पिछले दशक क्या मिलता था और वर्त्तमान में क्या मिला ? यह मीडिया की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
- किसी के बहकावे में आकर अडानी-अम्बानी तो मीडिया खूब मचाती है, लेकिन ये आज तक नहीं बता पाई की देश के विकास में अडानी-अम्बानी का क्या योगदान है ? अडानी-अम्बानी ने गरीबों के लिये क्या-क्या किया है ? अडानी-अम्बानी ने धर्म और संस्कृति के लिये क्या किया है ? ये मीडिया की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
कई बार तो मीडिया की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न मात्र नहीं लगता है षड्यंत्र की भी गंध आती है। मीडिया को ये विचार करना आवश्यक है की जो सूचना है वह सूचना यथावत लोगों को मिले।
बदलती भारतीय संस्कृति
लेकिन हमारी चर्चा का मुख्य विषय बदलती भारतीय संस्कृति में मीडिया की भूमिका है। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारतीय संस्कृति वास्तव में सनातन संस्कृति है। लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी मीडिया को ये बात समझ में नहीं आ पायी है। इस कारण भारतीय संस्कृति में अवांछित परिवर्तन देखे जा रहे हैं जो देश और संस्कृति के लिये घातक है।
संस्कृति राष्ट्र की पहचान होती है यदि उसे बदल दिया जाय तो राष्ट्र की पहचान और राष्ट्र का स्वरूप भी परिवर्तित हो जाता है, पाकिस्तान और बांग्लादेश जिसका ज्वलंत उदहारण है। भारत से ही अलग हुआ दोनों देश आज इस्लामिक देश बन चुका है।
यदि वर्त्तमान में हम अपनी संस्कृति का संरक्षण-संवर्द्धन न कर पाये तो भविष्य के लिये चिंता का विषय हो सकता है। और इसके लिये यह आवश्यक है कि भ्रमित करने वालों, आघात करने वालों की पहचान की जाये और उसे रोका जाये।
परिवर्तन संसार का एक नियम है जो मात्र व्यक्ति को प्रभावित नहीं करता संस्कृति-धर्म-राष्ट्र पर भी प्रभावित करता है, जल, थल, नभ सबको प्रभावित करता है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड प्रतिक्षण परिवर्तित होता है। किन्तु परिवर्तन का अर्थ ये नहीं होता कि आग पानी में बदल जाये या पानी आग में बदल जाये।
परिवर्तन की भी एक निश्चित सीमा होती है और उसके अनुसार पानी के गुण-दोष दोषों में परिवर्तन होता है, तापमान में परिवर्तन होता है, स्वाद में परिवर्तन होता है, स्थान में परिवर्तन होता है, किन्तु मूल स्वरूप पानी का पानी ही रहता है। इसी तरह संस्कृति और धर्म-कर्मकाण्ड में भी परिवर्तन होता है और स्वतः होता है इसको एक उदहारण से इस प्रकार समझा जा सकता है :
पिछली शताब्दी तक श्राद्ध कर्म एक वर्ष तक होता था, किन्तु समय की मांग होने पर परिवर्तन पूर्वक मात्र 12 दिनों में सम्पन्न हो जाता है। ये परिवर्तन शास्त्रसम्मत है और इसमें किसी प्रकार से धर्म-संस्कृति की हानि भी नहीं हुई और मीडिया को ये बात ज्ञात भी नहीं होगी क्योंकि मीडिया अपनी संस्कृति-धर्म को ही अपना नहीं मानते हैं।
यदि मीडिया में 0.0000001% भी अपनी संस्कृति-धर्म को अपना मानने वाले होते तो कोई न कोई शिखा धारण करने वाला, धोती पहनने वाला, चन्दन लगाने वाला अवश्य होता। मीडिया में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिलता जो धोती पहनता हो, शिखा रखता हो, चन्दन लगाता हो, नित्यकर्म करता हो इत्यादि-इत्यादि। लेकिन कहने को चौड़े में कहते हैं कि मैं भी हिन्दू हूँ और मैं भी पूजा करता हूं।
उनके लिये तो इतना ही कहा जा सकता है कि यदि तुम हिन्दू हो तो तुम्हारा हिन्दू होना दिखना भी चाहिये। आहार-व्यवहार, वेष-भूषा क्रिश्चियन वाला है, बोली इस्लाम की है जैसे : रिवाज, रस्म, शादी, तमाम, ईमानदारी, वतन, आदमी, औरत, खाना, दौर, वक्त, पाबंदी, राहत, रूह, मुश्किल, बखूबी, जोरदार, शुरू, नतीजा, मुकाम इत्यादि-इत्यादि।
क्षणभर के लिये आप ऐसा कह सकते हैं कि क्या हो गया ? किन्तु आपसे प्रश्न है कि अंग्रेजी बोलते समय क्या आप इन शब्दों का प्रयोग करते हैं ? यदि इंग्लिश बोलते समय आप इन शब्दों का प्रयोग नहीं करते हो हिन्दी में क्यों करते हैं ? कैसे हिन्दू हो कि अंग्रेजी बोलना सीख लिया किन्तु हिन्दी बोलना नहीं सीखा ?
संस्कृति और समाज पर मीडिया का प्रभाव
भारतीय संस्कृति मुख्य रूप से गावों में ही देखी जा सकती है। किन्तु वर्त्तमान समय में ग्रामीण संस्कृति को विकृत कर दिया गया है जिसमें मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है किन्तु एकमात्र नहीं। आइये परिवर्तन को थोड़ा सा समझने का प्रयास करते हैं। यहां मीडिया के बारे में चर्चा की जा रही है। ऐसा नहीं कि एकमात्र मीडिया ही ऐसा करती है और भी तत्व हैं किन्तु इस आलेख में हम संस्कृति-धर्म पर मीडिया द्वारा होने वाले आघात को समझेंगे।
आज 24 या 25 अप्रैल 2024 को कई लोगों ने ग्रहण के बारे में प्रश्न किया। किसी प्रकार का ग्रहण जिसका धार्मिक प्रभाव हो नहीं हो रहा है किन्तु लोगों के मन में किसने भरा कि ग्रहण है ?
विभिन्न व्रत-पूजा-हवन आदि की भी चर्चा करते हुये मीडिया ज्ञानी बाबा बन जाता है। होलिका दहन की सही विधि आज तक किसी ने नहीं बताया है। होली की शास्त्रोक्त विधि को गलत कहकर प्रतीकात्मक बनाकर रख दिया। मुझे बचपन की होली का स्मरण है 10-15 दिन पहले से होलिका और होली के लिये गावों में लोग सक्रिय हो जाते थे और वह होली उत्सव जैसा होता था। राख-कीचड़ की होली को किसने गलत सिद्ध किया ? ये शास्त्रोचित है गलत नहीं है। हास-परिहास को फूहड़ता कहकर किसने गलत सिद्ध किया ? ये शास्त्रोचित है गलत नहीं है।
आगे रामनवमी आने वाली है, आज तक भले ही किसी मीडिया ने व्रत की सही विधि, पूजा की सही विधि न बताई हो क्या आगे बताएगी ? कदापि नहीं बतायेगी, ऐसी किसी प्रकार की आशा करना ही भ्रम होगा। चलो ये सिद्ध हो गया कि मीडिया का जो कार्य है सही सूचना प्रदान करना वो नहीं करती है। लेकिन इसके विपरीत जनसामान्य को सही जानकारी प्राप्त हो इसमें अवरोध भी उत्पन्न करती है और इसका उदाहरण भी यहां दिया जा रहा है।
ऊपर प्रमाणस्वरूप कुछ महत्वपूर्ण आलेख के लिंक दिये गये हैं। इस पर क्लिक करके तो उपरोक्त आलेख को पढ़ सकते हैं किन्तु यदि आपके पास लिंक न हो और जानकारी प्राप्त करने के लिये गूगल पर सर्च करेंगे तो वहां आपको मीडिया द्वारा उत्पन्न अवरोधस्वरूप मात्र भ्रामक और अपूर्ण जानकारी ही देखने को मिलेंगे। एक तो सही जानकारी नहीं देते दूसरे यदि कहीं सही जानकारी उपलब्ध हो भी तो अवरोध उत्पन्न करके उसे जनसामान्य तक पहुंचने भी नहीं देते।
मेरा ये कहना नहीं है कि कर्मकाण्ड विधि के आलेख नहीं मिलेंगे मेरा ये कहना है कि धर्म-कर्मकाण्ड सम्बन्धी जानकारी देने वाले किसी भी ब्लॉग के आलेख कम-से-कम प्रथम पृष्ठ पर तो नहीं मिलेंगे। जब लोग धर्म-कर्मकाण्ड-व्रतादि के विषय में सही जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो उन्हें या तो सही जानकारी दे अथवा जो सही जानकारी दे रहा हो उसे प्राप्त होने दे अवरोध उत्पन्न करे।
समाधान :
- समाधान हेतु सरकार को भी कुछ विशेष विधि का विधान करना चाहिये जो जनसामान्य तक अपेक्षित सूचना/जानकारी पहुँचाने में सहायक हो।
- मीडिया को इस भ्रम से निकलना चाहिये की सेकुलरिज्म अपनी संस्कृति का पालन न करके अन्य संस्कृति के प्रसार का नाम है।
- मीडिया को यदि धर्म-व्रत-पर्वादि सम्बन्धी सूचना प्रदान करनी हो तो उसके लिये एक सामूहिक रूप से 11 – 25 विद्वानों की मंडली बनाये और उनके द्वारा शास्त्रार्थ पूर्वक उचित विधि-तिथि-नियम आदि की जानकारी प्राप्त करके तब दे।
- यदि ऐसा नहीं कर सकती तो भ्रामक और अपूर्ण जानकारी देते हुये जहां सही जानकारी उपलब्ध हो उसके लिये अवरोध उत्पन्न न करे।
- स्वयं वेश-भूषा, आहार-व्यवहार, शब्दचयन आदि में अपनी संस्कृति को जाने और अनुकरण करे।