जलयात्रा विधान – शास्त्रोक्त विधि के अनुसार

जलयात्रा विधान – शास्त्रोक्त विधि के अनुसार

यज्ञों, देवता की प्राणप्रतिष्ठा में जल यात्रा होती है। जल यात्रा में कुमारी कन्याओं, सौभाग्यवती स्त्रियों सहित नदी या अन्य पवित्र जलाशय पर जाकर कलश, मातृका, वरुण आदि का पूजन करके यज्ञ व देवताओं के स्नपन हेतु जलग्रहण किया जाता है। वर्त्तमान युग में भले ही कर्मकांड की सभी विधियां ताक पर रख दी गयी हो किन्तु लोकतंत्र का प्रभाव है कि जलयात्रा में लोगों की संख्या अधिक करने का पूर्ण प्रयास किया जाता है भले ही जलयात्रा की कोई विधि करे या न करे। यहां जलयात्रा विधि की विस्तृत जानकारी दी गयी है जो जलयात्रा करने वालों के लिये अति-उपयोगी है।

एक अन्य जल यात्रा भी सुनी जाती है जिसे कांवरयात्रा भी कहा जाता है। इसमें पवित्र नदी का जल लेकर जालपात्र को सजाये हुए कांवर पर रखकर ज्योतिर्लिंगों की यात्रा की जाती है एवं उस जल से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है।

जलयात्रा विधान – शास्त्रोक्त विधि के अनुसार

प्रायः देखा जाता है कि जलयात्रा में संख्या को ही विशेष महत्व दिया जाता है। वर्त्तमान में तो सभी कर्मकांड विधि को तिलांजलि देकर नट मंडली द्वारा आयोजित होने वाले सप्ताह भागवत आदि में भी एक इवेंट की तरह जलयात्रा का आयोजन किया जाता है। जलयात्रा यज्ञ/प्राण-प्रतिष्ठा आदि में उपयोग करने हेतु जल संग्रहण की विधि है और इसका विस्तृत विधान भी है एवं कल्याणेच्छुओं को विधिपूर्वक ही करना चाहिये।यहाँ जलयात्रा की विधि दी जा रही है जिससे यज्ञ-प्रतिष्ठा आदि कर्म में विशेष सहयोग प्राप्त हो सकता है।

जलयात्रा अर्थ

जल यात्रा का मतलब बताएँ : देवताओं के अभिषेक (स्नपन) हेतु कुमारी कन्या और सौभाग्वती स्त्रियों सहित पवित्र नदी या जलाशय से सविधि जलग्रहण करके निर्धारित स्थान यज्ञ मंडप/मंदिर तक की यात्रा करना जलयात्रा कहलाता है।

जल यात्रा के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  1. अर्थात जलयात्रा में प्रतिमा/प्रासाद के स्नपन हेतु जल ग्रहण किया जाता है।
  2. इसके लिये मंडप से जलाशय तक और पुनः जलाशय से सविधि जल लेकर मंडप तक की यात्रा की जाती है।
  3. व्यवहार में नगर/ग्राम परिक्रमा जैसा व्यवहार भी दिखता है। किन्तु यह अतिरिक्त भाग है।
  4. जलकुम्भ कुमारी कन्या और सुवासिनी स्त्रियां ही लेकर आती हैं।
  5. जल यात्रा में हाथी/घोड़ा/रथ/संगीत आदि उत्सव व मंगल कार्य संबंधी अन्य व्यवहार भी किया जाता है।
  6. जल यात्रा में मुख्य रूप से 9 कलशों की पूजा की जाती है। इसे (नव) वर्द्धिनी कलश भी कहा जाता है।
  7. जलयात्रा में जो हवन होता है वह अग्नि में नहीं करके जल में ही किया जाता है।
जलयात्रा विधि
जलयात्रा विधि
  1. जलयात्रा से एक दिन पूर्व ही कलश लेकर चलने वाली कुमारी कन्याओं/सुवासिनियों की सूचि बना ले।
  2. सबको आहार आदि से संबंधित नियम बता दे।
  3. कलशयात्रा में भाग लेने हेतु किसी से कोई चंदा आदि न ले अपितु जलाशय के निकट वस्त्र/खोंयछा/फल/अंकुरित चना आदि/कुछ द्रव्य प्रदान करे।
  4. जल, दूध, फल आदि ग्रहण किया जा सकता है अतः इन वस्तुओं की व्यवस्था रखे। विलंब होने पर फलाहार अथवा दुग्धपान करा दे।
  5. 9 धातु कलश रखे एवं इसके लिये यदि 9 ब्राह्मणकुमारी कन्या हो सके तो अतिउत्तम।
  6. कलश यात्रा में भाग लेने वाले – हाथी/घोड़ा/रथ/बैण्ड-बाजा आदि को ससमय उपस्थित करने की व्यवस्था कर ले।

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