कर्मकांड में सामान्यतः सभी पूजन-हवन आदि पूजा-अनुष्ठानों में कलशस्थापन पूजन करने का विधान है। मात्र कुछ कर्म ही ऐसे होते हैं जिनमें कलशस्थापन पूजन नहीं किया जाता है; जैसे : अन्त्यकर्म-श्राद्ध, कुछ व्रत की पूजा आदि। कलश स्थापन में एक विशेष नियम यह भी है कि रात्रि में कलश स्थापना का निषेध प्राप्त होता है, तथापि जिन कर्मों में कलश स्थापन आवश्यक होता है उन कर्मों के आरंभ में रात्रि में भी कलश स्थापन अवश्य ही किया जाता है भले ही अमंत्रक क्यों न करे।
इस आलेख में कलश स्थापन सामग्री सहित कलश स्थापन के कुछ विशेष नियम जो सामान्यतः प्राप्त नहीं होते हैं और कलश स्थापन-पूजन विधि और मंत्र दिये गये हैं।
कलश स्थापना विधि और मंत्र
सर्व प्रथम कलश में रोली-सिन्दुर आदि से स्वास्तिक बनाकर, कलश कंठ में लाल कपड़ा या मौली बांध कर पूजा स्थान की बांयी ओर (स्वयं से बांयी ओर) वेदी अथवा अबीर-गुलाल-हल्दिचूर्ण-कुंकुम-आटा आदि से अष्टदल कमल अथवा धान्यपुञ्ज बनायें। पवित्रीकरण–आसनशुद्धि , दिग्बंधन , स्वस्तिवाचन , गणेशाम्बिका पूजन–संकल्प-ब्राह्मण वरण करने के बाद कलश स्थापन किया जाता है।

कलश स्थापना सामग्री
कलश, पूर्णपात्र, नारियल, वस्त्र, चावल, दूर्वा, कुश, सुपारी, पान, गोबर, गंगाजल या अन्य जल, पंचपल्लव या आम्रपल्लव, रोली, धान्य, दीप आदि।
विशेष सामग्री
सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, सर्वौषधि, पंचरत्न। ये चारों विशेष सामग्री हैं जो जिनमें से सप्तधान्य और सर्वौषधि तो प्रयास करने से शुद्ध उपलब्ध हो सकता है किन्तु सप्तमृत्तिका का उपलब्ध होना कठिन है और पंचरत्न की उपलब्धि अतिव्यय कारक जो सामान्य जनों के लिये संभव नहीं है।
अतः जो शुद्ध उपलब्ध किया जा सके जैसे सप्तधान्य और सर्वौषधि उसका उपयोग करे। सामान्यतः बाजारों में सभी अशुद्ध सामग्री ही प्राप्त होते हैं जिनका उपयोग करने से स्थापित देवता भी प्रस्थान कर जायें, आगमन की तो बात ही भिन्न है, अतः अशुद्ध सामग्रियों का कदापि प्रयोग न करे। ऐसी स्थिति में विकल्प ग्राह्य होते हैं। यथा : सर्वौषधि हेतु हरिद्रा, सप्तधान्य हेतु कोई एक अन्न, सप्तमृत्तिका हेतु गंगा की मिट्टी या गोशाला की मिट्टी, पंचरत्न हेतु स्वर्ण।
कलश पूजन सामग्री
जल, पंचामृत, वस्त्र, चन्दन, पुष्प, माला, दूर्वा, बिल्वपत्र, माला, सुगंधित द्रव्य, अबीर, हल्दी चूर्ण, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, दक्षिणा आदि।
कलश स्थापन
कलश स्थापना से पूर्व वेदी या कुंकुम आदि से भूमि पर अष्टदल बनाकर उसपर धान्यपुञ्ज या चावल पुञ्ज बना ले।
भूमि का स्पर्श करें : ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री। पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृ ᳪ ह पृथिवी ᳪ माहि ᳪ सीः ॥
सामान्यतः भूमि स्पर्श मंत्र पूर्वक ही आगे की क्रिया की जाती है तथापि कलश स्थापन से पूर्व भूमि पूजन करने का भी विधान मिलता है। तत्पश्चात गोबर से भूमि को लीपे, किन्तु सामान्यतः पूर्व ही लीपा जाता है अथवा पक्की भूमि होती है अतः गोबर का स्पर्श मात्र ही किया जाता है। भाव लीपने का ही रहता है। तदनुसार प्रयोग विधि यह है की थोड़ा सा गाय का गोबर वेदी या अष्टदल के बगल में कलश के आगे रखें और उसका स्पर्श कर यह मन्त्र पढ़ें :
ॐ मानस्तोके तनयेमानऽआयुषिमानो गोषुमानोऽअश्वेषुरीरिष: । मानो विरान्रुद्रभामिनो वधीर्हष्मन्तः सदमित्वा हवामहे ॥
अष्टदल के मध्य में सप्तधान्य या धान-गेंहूँ-चावल जो भी शुद्ध उपलब्ध हो उसका पुंज बना दें : ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्वो दानाय त्वा व्यानाय त्वा। दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धान्देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि॥
धान्यपुंज पर सुवासित कलश स्थापित करे : ॐ आजिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दवः पुनरुर्जा निवर्तस्व सा नः। सहस्रं धुक्ष्वोरु धारा पयस्वतिः पुनर्म्मा विशताद्रयिः॥