कलश में गंगाजल या गंगाजल मिश्रित सामान्य जल दें :- ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्त्थो वरुण्स्य ऽऋतसदन्न्यसि वरुणस्य ऽऋतसदनमसि वरुणस्यऽऋत सदनमासीद् ॥
गन्धप्रक्षेप (चन्दन-हल्दी इत्यादि) :- ॐ त्वां गन्धर्वा ऽअखनँस्त्वामिन्न्द्रस्त्वाँ बृहस्पति: । त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान्न्यक्ष्मादमुच्च्यत ॥
सर्वौषधि प्रक्षेप :- ॐ या ओषधी: पूर्वा जाता देवेब्भ्यस्त्रियुगं पुरा। मनैनु बब्भ्रूणावहᳪशतं धामानि सप्त च॥ सर्वौषधि शुद्ध हो तो दे अन्यथा अशुद्ध का प्रयोग न करे या विकल्प हरिद्रा का ग्रहण करे।
दूर्वाप्रक्षेप : ॐ काण्डात् काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि। एवा नो दूर्वे प्रतनु सहस्त्रेण शतेन च॥
पञ्चपल्लव : ॐ अश्वत्थे वो निषदनं पर्ण्णे वो वसतिष्कृता। गोभाजऽइत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम् ॥
सप्तमृदा प्रक्षेप : ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी । यच्छा नः शर्म सप्रथाः ॥
(अश्वस्थानाद गजस्थानाद वल्मिकात्संगमात्हृदात् । राजग्द्वाराच्च गोगोष्ठान मृदमानीय निक्षिपेत्) सप्तमृत्तिका शुद्ध हो तो दे अन्यथा अशुद्ध का प्रयोग न करे या विकल्प गंगा की मिट्टी अथवा गोशाला की मिट्टी का ग्रहण करे।
कुश प्रक्षेप : ॐ पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः। तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम्॥
फलप्रक्षेप (बड़ा और अच्छा सुपाड़ी दें) :- ॐ याफलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी। बृहस्पति प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वᳪ हस:॥
पञ्चरत्न प्रक्षेप : ॐ परि वाजपति: कविरग्निर्हव्यान्यक्रमीत् । दधद्रत्नानि दाशुषे ॥
(पंचरत्न शुद्ध उपलब्ध हो तो दें अन्यथा बाजारू निकृष्ट वस्तु न दें, यदि शुद्ध पंचरत्न उपलब्ध न हों तो उसके स्थान पर स्वर्ण अथवा पुराने ५ सिक्के ही दे दें। १-२-५ रूपये का पुराना सिक्का लौहमय नहीं होता है, किन्तु नया सिक्का देना हो तो १० या ५० का ही दें )
हिरण्य प्रक्षेप (अथवा द्रव्य-सिक्का दें किन्तु लौहद्रव्य न हो) : ॐ हिरण्यगर्ब्भ: समवर्त्तताग्ग्रे भूतस्य जात: पतिरेकऽआसीत । स दाधार पृथ्वीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
रक्तवस्त्र या मौली कलश में लपेटें :- ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्मवरूथमासदत्स्वः । वासोअग्ने विश्वरूप ᳪ संव्ययस्व विभावसो ॥
पूर्णपात्र (कलश पर पूर्णपात्र दें) :- ॐ पूर्णादर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत । वस्न्नेव विकृणावहा इषमूर्ज ᳪ शतक्रतो ॥
(पिधानं सर्ववस्तूनां सर्वकार्यार्थसाधनम्। संपूर्ण: कलशो येन पात्रं तत्कलशोपरि) कलश पर पूर्णपात्र रखें ।
श्रीफलं (नारियल) :- ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम् । इष्णन्निषाणामुम्मऽइषाण सर्वलोकम्मऽइषाण । पूर्णपात्र पर नारियल रखें।
एक दीप जलाकर नारियल के ऊपर इस मन्त्र से रखें : ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा सूर्योज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा। अग्निवर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्योवर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा। ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा ॥ नारियल पर दीप रखकर हाथ धो लें।
(बहुत विद्वानों का कलश के ऊपर दीपक रखने संबंधी विषय में किञ्चित भ्रम भी रहता है और इस भ्रम का निवारण होना भी आवश्यक है : कलश के ऊपर दीप रखने के बारे में विशेष जानकारी प्राप्त करने के लिए वीडियो देखें।)