यदि आप नवरात्रि में किये जाने वाले कलश स्थापन-पूजन विधि को पढ़ना चाहते हैं तो इस आलेख को पढ़ें। इस आलेख में नवरात्रि के प्रथम दिन अर्थात प्रतिपदा को की जाने वाली संपूर्ण पूजा विधि दी गयी है : नवरात्रि पूजन विधि कलश स्थापन विधि, दुर्गा पूजन
आवाहन
अक्षत पुष्प लेकर कलश में वरुण का आवाहन करें :-
ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः । अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश ᳪ समा न आयुः प्र मोषीः॥ भगवन्वरुणागच्छ त्वमस्मिन कलशे प्रभो । कुर्वेऽत्रैव प्रतिष्ठाम् ते जलानां शुद्धिहेतवे ॐ सांग सपरिवार सायुध सशक्तिक वरुण इहागच्छ अस्मिन्कलशे सुप्रतिष्ठितो भव । ॐ अपांपतये वरुणाय नम: ॥
कलशस्थितदेवानां नदीनाम् तीर्थानाम् च आवाहनम् :- (अक्षत पुष्प लेकर कलश में अन्य देवताओं का भी आवाहन करें) – अगले मन्त्रों का उच्चारण कर अक्षत छोड़ते जायें :
कलाकला हि देवानां दानवानां कलाकला:। संगृह्य निर्मितो यस्मात् क्लशस्तेन कथ्यते॥
कलशस्यमुखे विष्णु: कण्ठेरुद्रः समाश्रित:। मूलेत्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्येमातृगणा: स्मृता:॥
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा च मेदिनी। अर्जुनी गोमती चैव चन्द्रभागा सरस्वती ॥
कावेरी कृष्णवेणा च गंगा चैव महानदी । तापी गोदावरी चैव माहेन्द्री नर्मदा तथा ॥
नदाश्च विविधा जाता नद्य: सर्वास्तथापरा:। पृथिव्यां यानि तीर्थानि कलशस्थानि तानि वै॥
सर्वे समुद्रा: सरितस्तीर्थानि जलदा नदा: । आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारका: ॥
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथर्वण: । अंगैश्च सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता: ॥
अत्र गायत्री सावित्री शान्ति पुष्टिकरी तथा । आयान्तु मम शान्त्यर्थम् दुरितक्षयकारकाः ॥
अक्षतान् गृहीत्वा प्राणप्रतिष्ठां कुर्यात् (अक्षत पुष्प से प्राण-प्रतिष्ठा करें) :
ॐ मनो जूतिर्ज्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्पतिर्य्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञᳪ समिमं दधातु। विश्वे देवासऽइह मादयन्तामों३ प्रतिष्ठ ॥ कलशे वरुणाद्यावाहितदेवता: सुप्रतिष्ठिता: वरदा: भवन्तु ॥ ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नम: ॥
कलश के चारों दिशाओं में चारों वेदों के लिए अक्षत-पुष्प छोड़े : कलश के चारों तरफ तथा मध्य में चावल छोड़े , कलशस्य चतुर्दिक्षु चतुर्वेदान्पूजयेत् :-
- पूर्व – ऋग्वेदाय नम: ॥
- दक्षिण – यजुर्वेदाय नम: ॥
- पश्चिम – सामवेदाय नम: ॥
- उत्तर – अथर्ववेदाय नम: ॥
- कलश के ऊपर – ॐ अपाम्पतये वरुणाय नम: ॥
षोडशोपचारै: पूजनम् कुर्यात् :- मिथिला में ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नम: के स्थान पर “ॐ वरुणाद्यधिष्ठित शांतिपूर्ण कलशगणेशाय नमः” का प्रयोग होता है। और गणेशाम्बिका पूजन को भी इसी में समाहित माना जाता है। वैदिक ऋचाओं से पूजन विधि अन्यत्र दी गयी है, यहाँ केवल नाममंत्र दिया जा रहा है। यदि वैदिक ऋचाओं का भी उपयोग करना हो तो कर सकते हैं।