विवाह के तिथि, नक्षत्रादि पंचांग सहित शुभ लग्न का उल्लेख करते हुये जो पत्रिका लिखी जाती है उसे लग्नपत्रिका कहते हैं। विवाह के लिये लग्न पत्रिका का अपना विशेष महत्व होता है। लग्न पत्रिका वास्तव में शुभ विवाह का दिन और समय बताते हुये वर पक्ष को आमंत्रित करने के लिये लिखा गया पत्र होता है। इस आलेख में लग्न पत्रिका लिखना प्रारूप सहित बताया गया है।
लग्न पत्रिका कैसे लिखें | प्रारूप | lagn patrika
लग्नपत्रिका विद्वान दैवज्ञ ब्राह्मण से लिखवाया जाता है। लग्न पत्रिका लेखन में विवाह के लिये शुभ लग्न निश्चय करना आवश्यक होता है। शुभ लग्न निश्चय करने के बाद तदनुसार मासादि का उल्लेख किया जाता है। लग्न पत्रिका में उल्लिखित लग्न काल विवाह के लिये शुभद होता है क्योंकि वह दैवज्ञ ब्राह्मण द्वारा निर्धारित किया जाता है, अतः लग्न पत्रिका में उल्लिखित शुभ लग्न काल का स्मरण रखते हुये अन्य कार्य इस प्रकार करे जिससे उल्लिखित लग्न में विवाह (कन्यादान) संपन्न हो सके।
प्रायः देखा जाता है कि लग्न पत्रिका तो औपचारिक रूप से लिखवा लिया जाता है पर वर्णित लग्न में विवाह नहीं किया जाता है जिस कारण अनेकों प्रकार की दाम्पत्य समस्याओं की उपस्थिति होती है। लग्न का तात्पर्य औसत रूप से 2 घंटे का एक शुभ काल होता है जिस समय उक्त लग्न पूर्व में उदित रहती है एवं तदनुसार ग्रहादि के प्रभाव प्राप्त होते हैं।
वर्त्तमान काल में बाजारों में टंकित लग्न पत्रिकायें मिलती है जिसमें मात्र रिक्त स्थानों में अपेक्षित शब्द भरा जाता है। किन्तु यहां जो प्रारूप दिया जा रहा है उससे बिना टंकित लग्न पत्रिका पर भी पूर्ण विवरण दिया जा सकता है और यदि टंकित लग्न पत्रिका हो तो उसके रिक्त स्थान को सही से भरा जा सकता है।
लग्न पत्रिका लिखना
- लग्न पत्रिका यदि कलम से लिखना हो तो लाल कलम से लिखें।
- लग्न पत्रिका संस्कृत में लिखें।
- लग्नपत्रिका में सर्वप्रथम मङ्गलाचार करें अर्थात कुछ मांगलिक श्लोक लिखें।
- तदुपरांत विवाह दिवस संबंधी मासादि का विवरण अंकित करें।
- शर्म् के स्थान पर वर्म्/गुप्त यथायोग्य प्रयुक्त करे।
- शुभ लग्न की कुंडली बनायें। लग्न कुण्डली आरम्भ में भी मङ्गलाचरण के बाद बनायीं जा सकती है।
- समधी सहित वरपक्ष के कुछ गणमान्य सदस्यों को आमंत्रित करें।
- अंत में आमंत्रक अर्थात कन्या पिता का नाम और हस्ताक्षर।
卐 लग्न पत्रिका 卐
यम्ब्रह्मा वेदान्तविदो वदन्ति, परं प्रधानं पुरूषं तथान्ये।
विश्वोद्गते कारणमीश्वरं वा,तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय ॥१॥
जननी जन्मसैख्यानां वर्द्धनी कुलसम्पदाम् । पदवी पूर्वपुण्यानां लिख्यते लग्नपत्रिका ॥२॥
अविघ्नं कुरुते नित्यं विघ्नश्च प्रतिहन्यते। यात्रामंगलसिद्ध्यर्थमेकदन्त नमोस्तुते ॥३॥
ब्रह्माकरोतुदीर्घायुः विष्णुःकरोतु सम्पदाम्। शिवःकरोतु कल्याणं यस्यैषा लग्नपत्रिका ॥४॥
आदित्यादि ग्रहाः सर्वे नक्षत्राणि च राशयः। दीर्घायुः प्रकुर्वन्तु यस्यैषा लग्नपत्रिका ॥५॥
अथ शुभसम्वत्सरेऽस्मिन् श्रीनृपतिवीर विक्रमादित्य राज्यात्शुभ श्रीसम्वत्सरे …….. तत्र शके शालिवाहनस्य ……. तत्र ……… अयने …….. गोले …….. ऋतौ ……… मासानां मासोत्तमे मासे महामांगल्यप्रदे …….. मासे शुभे …….. पक्षे शुभ ……… तिथौ …./…. द० पलानि ततः तिथौ …….. नक्षत्रे …./…. द०प० ततः ……… नक्षत्रे ……. नामयोगे …./…. द० प० ततः …….. योगे …./…. नामकरणे द०प० ततः …… करणे ……. वासरे …….. राशिस्थते चन्द्रे दिनप्रमाणम् …./…. द० प० तत्र रात्रिप्रमाणं …./…. द० प० तत्र ……ऽर्कगतांशादि ….|…..|….. तदनुसार आंग्ल दिनांक …./…../२०… ततः अर्द्धरात्रोपरि दिनांक …./…./२०… तत्र श्री सूर्योदयादिष्टम् …./.… द० प० …… लग्नोदये प्रामाणिक भारतीय समयानुसारे …. : …. वादने, …….. ग्राम/नगर निवासिनः …….. गोत्रस्य …… प्रवरस्य श्रीमान् ……….. शर्मणः प्रपौत्राय ……. शर्मणः ……… पौत्राय …….. शर्मणः पुत्राय, ……. ग्राम/नगर निवासिनः ……… गोत्रस्य …… प्रवरस्य ……… शर्मणः प्रपौत्रीं ……. शर्मणः …….. पौत्रीं ……… शर्मणः पुत्रीं, …….. गोत्रस्य चिरंजीवी ………. शर्माणं वरं ……. गोत्रां ……. नाम्नी कन्यां देवाग्निद्विजसन्निधौ पाणिग्रहणं शुभम् ॥
卐 लग्न कुण्डली 卐

अतः पूर्वोक्तशुभविवाहावसरे भवतः उपस्थितेः कामना भवद्भ्यः सादरं आमन्त्रयामि ।
आमन्त्रितः : श्रीमान् ……………….. तथा श्रीमान् ……………….. तथा श्रीमान् ……………….. तथा श्रीमान् ……………….. तथा श्रीमान् ……………….. तथा श्रीमान् ……………….. तथा श्रीमान् ……………….. तथा श्रीमान् ……………….. तथा श्रीमान् ……………….. तथा श्रीमान् तथा अन्ये वरयात्रिकाः ॥
भवदीयः
समधि (कन्यापिता का नाम और हस्ताक्षर)
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सारांश : उपरोक्त लग्नपत्रिका प्रारूप के आधार पर सरलता से लग्नपत्रिका लेखन किया जा सकता है। लग्नपत्रिका का वास्तविक तात्पर्य विद्वान ज्योतिषी द्वारा लिखा गया शुभ लग्न (शुभ मुहूर्त) है। प्रयोजन दो हो सकते हैं कुलदेवता को निमंत्रण जो सभी मंगलकार्यों में आवश्यक होता है, और वरयात्री को निमंत्रण जो मन्त्र कन्या के विवाह में ही आवश्यक होता है। कन्या के विवाह में ही लग्नपत्रिका लिखा जाता है ऐसी धारणा मात्र एक भ्रम है। कन्या के विवाह में ही वरयात्री को निमंत्रित किया जाता है ये वास्तविकता है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।