किसी भी देवता की आराधना और प्रसन्नता के लिये पूजा, हवन, जप, स्तोत्रादि पाठ किया जाता है, अर्थात स्तोत्र का भी विशेष महत्व होता है। महामृत्युंजय स्तोत्र के दो प्रकार पाये जाते हैं एक मार्कण्डेयकृत और दूसरा लोमशकृत । इस आलेख में दोनों प्रकार के महामृत्युंजय स्तोत्र दिये गये हैं जिससे महामृत्युंजय उपासना में अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही डाउनलोड करने के लिये दोनों महामृत्युंजय स्तोत्र (Maha mrityunjaya Stotra) का pdf भी दिया गया है।
महामृत्युंजय स्तोत्र pdf सहित – Maha mrityunjaya Stotra
स्तोत्र का बहुत ही महत्व होता है। देवता को शीघ्र प्रसन्न करने की शक्ति स्तोत्र में निहित रहती है। किसी भी देवता की पूजा करते समय देवता के स्तोत्र का भी पाठ करना अधिक लाभकारी होता है। महामृत्युंजय जप अनुष्ठान में पूजा के समय महमृत्युञ्जय स्तोत्र का पाठ करना अधिक लाभकारी होता है। यहाँ क्रमशः मार्केण्डयकृत और लोमशकृत महामृत्युंजय स्तोत्र दिया जा रहा है।
मार्केण्डयकृत महामृत्युंजय स्तोत्र
दुःख का कारण पूर्व कृत पापकर्म होता है। सभी दुःख से मुक्ति चाहते हैं किन्तु सुखप्राप्ति के लिये दुःख का अभाव होना आवश्यक है। दुःखनाश के लिये दुःख के कारण अर्थात पाप का नाश होना आवश्यक है। मार्कण्डेय कृत महामृत्युंजय स्तोत्र पाप का नाश करता है जिससे स्वतः दुःखों का भी नाश हो जाता है। आठवें चिरंजीवी मार्कण्डेय के द्वारा रचित महामृत्युंजय स्तोत्र अद्भुत प्रभावकारी है।
विनियोग : ॐ अस्य श्री सदाशिवस्तोत्र मन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः अनुष्टुप्छन्दः श्री साम्ब सदाशिवो देवता गौरी शक्ति: मम सर्वारिष्ट निवृत्ति पूर्वक शरीरारोग्य सिद्धयर्थे मृत्युञ्जयप्रीत्यर्थे च पाठे विनियोगः॥
ॐ रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्युः करिष्यति॥
नीलकण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निर्भयं प्रभुम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्युः करिष्यति॥
कालकण्ठं कालमूर्तिं कालज्ञं कालनाशनम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्युः करिष्यति॥
वामदेवं महादेवं शंकरं शूलपाणिनम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्युः करिष्यति॥
देव देवं जगन्नाथं देवेशं वृषभध्वजम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्युः करिष्यति॥
गंगाधरं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्युः करिष्यति॥
भस्म धूलित सर्वांगं नागाभरण भूषितम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्युः करिष्यति॥
आनन्दं परमानन्दं कैवल्य पददायकम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्युः करिष्यति॥
स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टि स्थित्यंत कारिणम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्युः करिष्यति॥
प्रलयस्थिति कर्तारमादि कर्तारमीश्वरम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्युः करिष्यति॥
मार्कण्डेय कृतंस्तोत्रं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
तस्य मृत्युभयं नास्ति सत्यं सत्यं वदाम्यहम्॥
सत्यं सत्यं पुन: सत्यं सत्यमेतदिहोच्यते।
प्रथमं तु महादेवं द्वितीयं तु महेश्वरम् ॥
तृतीयं शंकरं देवं चतुर्थं वृषभध्वजम्।
पंचमं शूलपाणिञ्च षष्ठं कामाग्निनाशनम्॥
सप्तमं देवदेवेशं श्रीकण्ठं च तथाष्टमम्।
नवममीश्वरं चैव दशमं पार्वतीश्वरम्॥
रुद्रं एकादशं चैव द्वादशं शिवमेव च।
एतद् द्वादश नामानि त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नरः॥
ब्रह्मघ्नश्च कृतघ्नश्च भ्रूणहा गुरुतल्पग:।
सुरापानं कृतघ्नश्च आततायी च मुच्यते॥
बालस्य घातकश्चैव स्तौति च वृषभध्वजम्।
मुच्यते सर्वपापेभ्यो शिवलोकं च गच्छति॥
॥ इति श्री मार्कण्डेयकृतं मृत्युंज्यस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
लोमशकृत महामृत्युंजय स्तोत्र
लोमश ऋषि का एक कल्प में एक रोम गिरता है और जब सभी रोम गिर जायेंगे तभी उनकी मृत्यु होगी। यह वरदान भगवान शिव से ही उन्होंने प्राप्त किया था। लोमश द्वारा की गयी महामृत्युंजय स्तोत्र का भी बहुत महत्व है। पूजा के समय इस स्तोत्र का भी पाठ करना बहुत लाभकारी होता है। लोमश रचित महामृत्युंजय स्तोत्र की शतावृत्ति (सौ बार पाठ) का विशेष महत्व है। स्तोत्र के माहात्म्य में बताया गया है कि
- इसका शतावृत्ति पाठ करने से आसन्न मृत्यु भी टल जाती है।
- इसका शतावृत्ति पाठ करने वाला बलवान और स्वस्थ होकर शतायु होता है।
- इसका शतावृत्ति पाठ करने वाला रोग पीड़ित नहीं होता है।
- पूर्णा तिथियों; पञ्चमी, दशमी और पूर्णिमा को इसका शतावृत्ति पाठ करना विशेष लाभकारी कहा गया है।
॥नमो महामृत्युञ्जयाय॥
नन्दिकेश्वर उवाच
कैलासस्योत्तरे शृङ्गे शुद्धस्फटिकसन्निभे।
तमोगुणविहीने तु जरामृत्युविवर्जिते ॥१॥
सर्वतीर्थास्पदाधारे सर्वज्ञानकृतालये।
कृताञ्जलिपुटो ब्रह्मा ध्यानशीलं सदाशिवम् ॥२॥
प्रपच्छ प्रणतो भूत्वा जानुभ्यामवनीं गतः।
सर्वार्थसम्यगाधारं ब्रह्मा लोकपितामहः ॥३॥
ब्रह्मोवाच
केनोपायेन देवेश ! चिरायुर्लोमशोऽभवत्।
तन्मे ब्रूहि महेशान ! लोकानां हितकाम्यया ॥४॥
श्रीसदाशिवः उवाच
शृणु ब्रह्मन् प्रवक्ष्यामि चिरायुर्मुनिसत्तमः।
सञ्जातः कर्मणा येन व्याधिमृत्युविवर्जितः५॥
तस्मिन्नेकार्णवे घोरे सलिलौघपरिप्लुते।
कृतान्तभयनाशाय स्तुतो मृत्युञ्जयः शिवः ॥६॥
तस्य संकीर्तनान्नित्यं मुनिर्मृत्युविवर्जितः।
तमेव कीर्तयन् ब्रह्मन् मृत्युञ्जेतुं न संशयः॥७॥
लोमश उवाच
देवाधिदेव देवेश ! सर्वप्राणभृतांवर।
प्राणिनामसि नाथस्त्वं मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते॥८॥
देवानां जीवभूतोऽसि जीवो जीवस्य कारणम्।
जगतां रक्षकस्त्वं वै मृत्युञ्जय नमोऽस्तुते॥९॥
हिमाद्रि शिखराकार सुधावीचिमनोहर।
पुण्डरीक परं ज्योतिर्मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥१०॥
ध्यानाधार महाज्ञान ! सर्वज्ञानैककारण।
परित्राताऽसि लोकानां मृत्युञ्जय नमोऽस्तुते॥११॥
निहता येन कालेन सदेवासुरमानवाः।
गन्धर्वाप्सरसश्चैव सिद्धविद्याधरास्तथा॥१२॥
साध्याश्च वसवो रुद्रा तथाश्विनिसुतावुभौ।
मरुतश्च दिशो नागाः स्थावरा जङ्गमास्तथा॥१३॥
अनङ्गेन मनोजेन पुष्पचापेन केवलम्।
जितः सोऽपि त्वयाध्यानान्मृत्युञ्जय नमोऽस्तुते॥१४॥
ये ध्यायन्ति परां मूर्तिं पूजयन्त्यमराधिप।
न ते मृत्युवशं यान्ति मृत्युञ्जय नमोऽस्तुते॥१५॥
स्थावरे जङ्गमे वापि यावत्तिष्ठति मेदिनी।
जीवतु इत्याह लोकोऽयं मृत्युञ्जय नमोऽस्तुते ॥१६॥
त्वमोंकारोऽसि वेदानां देवानाञ्च सदाशिवः।
आधारशक्तिःशक्तीनां मृत्युञ्जय नमोऽस्तुते ॥१७॥
सोमसूर्याग्नि मध्यस्थ व्योमव्यापिन् सदाशिव !
कालप्रद महाकाल मृत्युञ्जय नमोऽस्तुते ॥१८॥
प्रबुद्धे चाप्रबुद्धे च त्वमेव सृजते जगत्।
सृष्टिरूपेण देवेश मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥१९॥
व्योम्नि त्वं व्योमरूपोऽसि तेजः सर्वत्र तेजसि।
प्राणिनां ज्ञानरूपोऽसि मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥२०॥
जगज्जीवो जगत्प्राणः स्रष्टा त्वं जगतः प्रभुः।
कारणं सर्वतीर्थानां मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥२१॥
नेता त्वमिन्द्रियाणाञ्च सर्वज्ञान प्रबोधक।
सांख्ययोगश्च हंसश्च मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥२२॥
रूपातीतः सुरूपश्च पिण्डश्च पदमेव च।
चतुर्युगकलाधार ! मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥२३॥
रेचके वह्निरूपोऽसि सोमरूपोऽसि पूरके।
कुम्भके शिवरूपोऽसि मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥२४॥
क्षयंकरोऽसि पापानां पुण्यानामपि वर्द्धनः ।
हेतुस्त्वं श्रेयसा नित्यं मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥२५॥
सर्वमायाकला तीत ! सर्वेन्द्रियपरावर !
सर्वेन्द्रियकलाधीश ! मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥२६॥
रूपं गन्धो रसः स्पर्श: शब्दसंस्कार एव च।
त्वत्तः प्रकाश एतेषां मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥२७॥
चतुर्विधानां सृष्टीनां हेतुस्त्वं कारणेश्वर ।
भावाभावपरिच्छिन्न मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥२८॥
त्वमेको निष्कलो लोके सकलं भुवनत्रयं ।
अतिसूक्ष्मातिरूपस्त्वं मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥२९॥
त्वं प्रबोधस्त्वमाधारस्त्वद्बीजं भुवनत्रयं ।
सत्वं रजस्तमस्त्वं हि मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥३०॥
त्वं सोमस्त्वं दिनेशश्च त्वमात्मा प्रकृतेः परः ।
अष्टत्रिंशत्कलानाथ मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥३१॥
सर्वेन्द्रियाणामाधार ! सर्वभूतगुहाशय !
सर्वज्ञानमयानन्त मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥३२॥
त्वमात्मा सर्वभूतानां गुणानां त्वमधीश्वरः।
सर्वानन्दमयाधार ! मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥३३॥
त्वं यज्ञः सर्वयज्ञानां त्वं बुद्धिर्बोधलक्षणा।
शब्दब्रह्म त्वमोङ्कारो मृत्युञ्जय नमोऽस्तु ते ॥३४॥
श्रीसदाशिव उवाच
एवं संकीर्तयेद्यस्तु शुचिस्तद्गतमानसः ।
भक्त्या शृणोति यो ब्रह्मन् न स मृत्युवशो भवेत् ॥३५॥
न तु मृत्युभयं तस्य प्राप्तकालं च लंघयेत् ।
अपमृत्युभयं तस्य प्रणश्यति न संशयः ॥३६॥
व्याधयो नो प्रपद्यन्ते नोपसर्गभयं क्वचित् ।
प्रत्यासन्नान्तरे काले शतैकावर्तने कृते ॥३७॥
मृत्युर्न जायते तस्य रोगान्मुञ्चति निश्चितम्।
पञ्चम्यां वा दशम्यां वा पौर्णमास्यामथापि वा॥३८॥
शतमावर्तयेद्यस्तु शतवर्षं स जीवति ।
तेजस्वी बलसम्पन्नो लभते श्रियमुत्तमाम् ॥३९॥
त्रिविधं नाशयेत्पापं मनोवाक्कायसम्भवम् ।
अभिचाराणि सर्वाणि कर्माण्याथर्वणानि च ॥
क्षीयन्ते नात्र सन्देहो दुःस्वप्नं च विनश्यति ॥४०॥
इदं रहस्यं परमं देवदेवस्य शूलिनः ।
दुःखप्रणाशनं पुण्यं सर्वविघ्नविनाशनम् ॥४१॥
॥ इति श्रीब्रह्मसंवादे श्रीमहामृत्युञ्जयस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।