किसी भी भगवान की आराधना में स्तोत्र का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। स्तोत्रों में अष्टक का विशेष महत्व होता है। सभी देवताओं के विभिन्न स्तोत्रों के साथ ही उनके अष्टक स्तोत्र भी होते है। इसी प्रकार महामृत्युंजय भगवान का भी अष्टक स्तोत्र है। इस आलेख में महामृत्युंजय अष्टक दिया गया है। किसी भी देवता की पूजा के उपरांत देवता के अष्टक स्तोत्र का पाठ करना विशेष लाभकारी होता है।
महामृत्युञ्जयाष्टकम्
देवता की अष्टक स्तुति का तात्पर्य होता है स्तोत्र के माध्यम से अष्टाङ्ग प्रणाम करना। महामृत्युंजय अष्टक का महत्व स्तोत्र में भी बताया गया है कि मृत्युं प्राप्तोऽपि जीवति अर्थात मृत्यु प्राप्त होने पर भी जीवित रह सकता है अर्थात सुनिश्चित मृत्युकाल उपस्थित होने के बाद भी जीवित रह सकता है। अर्द्धरात्रि में 84 बार पाठ करने का विशेष महत्व भी बताया गया है।

ॐ मृत्युञ्जय ! परेशान जगदामयनाशन ! ।
तव ध्यानेन देवेश ! मृत्युं प्राप्तोऽपि जीवति ॥१॥
पञ्चास्यदोर्द्दण्डदशाङ्घ्रिनेम दिनेशभालेन्दुयुतं गणेशैः ।
वामाङ्गसंस्था गिरिजासमेतं वन्दे महामृत्यु विनाशरूपम् ॥२॥
देवं मृत्युविनाशनं भयहरं साम्राज्यमुक्तिप्रदं
नानाभूतगणान्वितं दिवि पदैर्देवैः सदा सेवितम् ।
अज्ञानान्धकनाशनं शुभकरं विद्यासुसौख्यप्रदं
सर्वं सर्वपतिं महेश्वरहरं मृत्युञ्जयं भावये ॥३॥
वन्दे ईशानदेवाय नमस्तस्मै पिनाकिने ।
आदिमध्यान्तरूपाय मृत्युनाशं करोतु मे ॥४॥
नमस्तस्मै भगवते कैलासाचलवासिने ।
नमो ब्रह्मेन्द्ररूपाय मृत्युञ्जय प्रसीद मे ॥ ५॥
नमो विष्ण्वर्करूपाय नमो ज्ञानस्वरूपिणे ।
मृत्युं नाशयतामाशु मृत्युञ्जय प्रसीद मे ॥६॥
त्र्यम्बकाय नमस्तुभ्यं पञ्चास्याय नमो नमः ।
दोर्द्दण्डचापाय नमो मम मृत्युं विनाशय ॥७॥
नमोऽर्धेन्दुस्वरूपाय नमो दिग्वसनाय च ।
नमो भक्तार्तिहन्त्रे च मम मृत्युं विनाशय ॥८॥
मृत्युञ्जयाष्टकं दिव्यं त्रिकाले यः पठेन्नरः ।
अपमृत्युर्व्रजेत्तस्य सत्यं सत्यं शिवाज्ञया ॥९॥
अर्धरात्रे जपेन्नित्यं चतुरशीतिसङ्ख्यया ।
काले मृत्युर्विनश्येत अकालाल्पस्य का कथा ॥१०॥
आलस्येनाप्रसङ्गेन श्रद्धाहीनेन चेतसा ।
पठेद्यद्यप्यकालेषु ध्रुवं मृत्युं निवारयेत् ॥११॥
॥ इति महामृत्युञ्जयाष्टकम् ॥

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