सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र जाप
जब प्रबल मारकेश हो, परिवार में असमय मृत्यु की घटनायें निरंतर हो, परिवार के सदस्य असाध्य रोग से पीड़ित हों, विभिन्न प्रकार के उत्पात होते हों आदि समस्याओं से ग्रस्त होने पर सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र का पुरश्चरण किया जाता है। सवा लाख महामृत्युंजय जाप का अनुष्ठान दो प्रकार से किया जाता है किसी शिवालय पर या घर में , घर में भी करने पर शिव सान्निध्य हेतु नर्मदेश्वर या अन्य शिवलिङ्ग भी रखा जाता है और पूजा-अभिषेक किया जाता है।
सवा लाख महामृत्युंजय जाप करने के लिये 2500 मंत्र संख्या प्रतिदिन प्रति ब्राह्मण का औसत से उचित रहता है। उचित प्रकार से जप करने पर उपरोक्त संख्या में और कमी हो सकती है परन्तु वृद्धि करने पर जप उचित प्रकार से होना कठिन होता है। इस प्रकार 125000 ÷ 2500 = 50 ब्राह्मण संख्या होती है। अर्थात जितने दिन में जप उसके अनुसार ब्राह्मण संख्या 50 से अधिक होना चाहये। जैसे 9 दिन में करना हो तो 9 × 6 = 54, अर्थात 6 जापक ब्राह्मणों को रखे।
दिन और जप करने वाले ब्राह्मणों की संख्या इसी प्रकार निश्चित करे। तत्पश्चात 1 आचार्य अतिरिक्त रखे। इस प्रकार यदि 9 दिनों में सवा लाख महामृत्युंजय करना हो तो 6 जापक ब्राह्मण और 1 आचार्य कुल 7 ब्राह्मण रखे। इसी प्रकार 7 दिनों में जप करना हो तो 9 ब्राह्मण रखे।
यदि शिवालय में जप करना हो तो 3000 प्रति ब्राह्मण औसत से किया जा सकता है।
महामृत्युंजय जाप में कितना खर्च आता है
जहाँ तक महामृत्युंजय जप में खर्चे का प्रश्न है तो यह यजमान की आर्थिक क्षमता पर भी निर्भर करता है किन्तु सविधि जप संपन्न करने के लिये एक न्यूनतम खर्च निर्धारित करके ही करना चाहिये। प्रति ब्राह्मण प्रतिदिन 2100 (स्थानभेद से और न्यूनाधिक्यता संभव) दक्षिणा के रूप में होना 2022 – 2026 तक उचित है। आगामी 2028 – 2032 में यह दक्षिणा 2500/ औसत रहने की संभावना है।
कई कारणों से यह दक्षिणा स्थान भेद से घटती-बढ़ती भी है और मंहगाई के साथ निरंतर बढ़ती रहती है, ब्राह्मणों की योग्यता के आधार पर भी दक्षिणा में वृद्धि होती है । 2000 – 2005 तक या 100/ प्रतिदिन ही होता था। ब्राह्मण से सेवा नहीं ली जा सकती और जप-अनुष्ठान-पूजा-हवन आदि करना यजमान की सेवा है भी नहीं इस लिये इसे पारिश्रमिक नहीं समझा जाना चाहिये। सक्षम यजमान और अधिक दक्षिणा देने का प्रयास करे।
इस प्रकार 9 दिनों में जप करने पर प्रत्येक ब्राह्मण को 2100 × ९ = 18900 अर्थात 19100 दक्षिणा दे। आचार्य की दक्षिणा इसका द्विगुणित (दोगुना) होता है। इस प्रकार जापक ब्राह्मणों की कुल दक्षिणा 19100 × 7 = 1,33,700 और आचार्य की दक्षिणा 38500 योग होने पर 1,72,200/ दक्षिणा सिद्ध होता है।
यहाँ यह भी स्पष्ट कर दें कि गावों में सामान्य लोगों के यहाँ कुल खर्च 1,00,000 में भी बहुत दयालु ब्राह्मण संपन्न करा देते हैं यद्यपि उसमें जप संख्या प्रतिदिन प्रतिब्राह्मण 4000 – 5000 या उससे भी अधिक होता है जिसे किसी प्रकार उचित नहीं माना जा सकता। एक स्वस्थ ब्राह्मण भी अधिकतम 5 – 6 घंटे ही आसन लगाकर ध्यानपूर्वक जप कर सकते हैं। उससे अधिक समय होने पर मन का भटकना, आसन नियम रहित होना, थकना आदि संभव है।
यहां वर्त्तमान समय में विधि पूर्वक जप के लिये गणना की जा रही है, व्यवहार में अंतर होना सामान्य सी बात है और यह पूर्ण रूप से सुनिश्चित नहीं होता। दक्षिणा के पश्चात ब्राह्मण वरण सामग्री की आती है। उचित वरण सामग्री दिया जाय तो प्रति ब्राह्मण 5000 के लगभग खर्च बैठेगा। इस प्रकार वरण सामग्री में 5000 × 8 = 40000 व्यय होगा। तथा पूजा-हवन सामग्री आदि में भी लगभग 50000 – 100000 …. व्यय हो सकता है। इस प्रकार कुल व्यय 172000 + 40000 + 50000 = 262000/ व्यय संभावित होती है।
यदि इससे कम व्यय में ब्राह्मण उचित प्रकार से अनुष्ठान संपन्न कर दें तो ये नहीं कहा जा सकता की सही विधि से जप नहीं हुआ, ये समझना चाहिये कि उचित व्यय नहीं किया गया।
यह पहले भी स्पष्ट कर चुके हैं कि 1,00,000/ से कम में भी गावों में संपन्न किया जाता है इसमें कई कारण होते हैं गावों में रहने वाले ब्राह्मण का पारिवारिक व्यय कम होता है, जप की औसत संख्या में वृद्धि की जाती है किन्तु 3000 (+-200) प्रति ब्राह्मण से अधिकतम रखा जा सकता है इससे अधिक होने पर उचित नहीं माना जा सकता।
इसके साथ ही योग्यता के आधार पर भी दक्षिणा में न्यूनाधिक्यता होती है। एक योग्य ब्राह्मण को 2500/ से कम दक्षिणा देना वर्तमान समय में सम्मानजनक प्रतीत नहीं होता है। इसी प्रकार यदि विदेशों में भारत से योग्य ब्राह्मण जप करने जायें तो यह 150000 – 250000 भी भारतीय मुद्रानुसार हो सकता है। जितने निकटतम ब्राह्मण हों व्यय उतना कम होता है और जितने दूरस्थ ब्राह्मण हों व्यय उतना अधिक होता है।
महामृत्युंजय जप विधि
जब महामृत्युंजय पुरश्चरण (सवा लाख जप) करना हो तो उसके लिये शुभ मुहूर्त निर्धारित करे और हवन के लिये अग्निवास का भी विचार कर ले। तत्पश्चात यद्यपि यज्ञसंज्ञक नहीं होता तथापि यज्ञश्रेणी में ही गण्य है और जहां कहीं भी अनुष्ठान किया जा रहा हो मातृका पूजा भी की जाती है इस व्यवहार से भी सिद्ध होता है कि वृद्धिश्राद्ध भी अपेक्षित है क्योंकि मातृका पूजा वृद्धि श्राद्ध का ही अंग है। वृद्धि श्राद्ध के कई प्रकार होते हैं जिसमें से महामृत्युंजय जप के लिये हेम श्राद्ध करना अधिक उपर्युक्त प्रतीत होता है।
वृद्धि श्राद्ध कब करे : वृद्धि श्राद्ध यज्ञादि में 21 दिन तक पूर्व करने की आज्ञा शास्त्रों में है। अर्थात मातृका पूजन और जिस विधि से भी वृद्धि श्राद्ध करना हो वह 21 दिन पहले ही कर ले अथवा निकटवर्ती अमावस्या/पूर्णिमा आदि को करे।
वृद्धि श्राद्ध करने से लाभ : वृद्धि श्राद्ध करने से दो लाभ होते हैं। एक तो पितरों की कृपा व आशीर्वाद प्राप्त होती है और दूसरा लाभ यह होता है कि वृद्धि श्राद्ध जिस कर्म के निमित्त किया जाता है उस कर्म हेतु अशौच की व्याप्ति नहीं होती। पितृ दोष से भी अधिकतम लोग पीड़ित होते हैं अतः पितृदोष में कमी के लिये भी महामृत्युंजय पुरश्चरण में वृद्धि श्राद्ध भी करे और कई बार अशौच के कारण बाधित भी होता है इसलिये उद्देश्य से भी करे कि सुनिश्चित हो जाने के बाद बाधित न हो। विघ्नों से कर्म बाधित होना भी कल्याणकारी नहीं होता।
क्या जीवितपितृक वृद्धि श्राद्ध कर सकता है : हाँ केवल अविवाहित होने पर वृद्धि श्राद्ध का अधिकार नहीं होता। विवाहोपरांत वृद्धि श्राद्ध का अधिकार प्राप्त हो जाता है और इसका प्रमाण ये है की विवाह के बाद जो अगला कर्म उपस्थित होता है बच्चे के जन्म लेने पर जातकर्मादि संस्कार अथवा द्वितीय विवाह उसमें वृद्धिश्राद्ध करने के लिये जीवितपितृक अधिकृत होता है। अतः पिता के जीवित रहने पर भी जिस कर्म को करे उस कर्म अंग यदि वृद्धि श्राद्ध हो तो करने का अधिकार होता है।
पूर्व दिन कृत्य – तत्पश्चात अनुष्ठान आरम्भ के पूर्व दिन क्षौर (मुंडन नहीं मात्र बाल कर्तन) करे। गंगादि पवित्र उपलब्ध जलाशय में स्नान करे।
अनुष्ठान आरम्भ : प्रथम दिन नित्यकर्मोपरांत पवित्रीकरणादि करके पञ्चगव्य प्राशन, स्नान, प्रोक्षण आदि करके स्वस्तिवाचन, संकल्प, ब्राह्मण वरण, ब्राह्मण पूजन, कलश स्थापन, पुण्याहवाचन, वास्तुमंडल पूजन, प्रधान वेदी पूजन, नवग्रह मण्डल पूजन, प्रधान पूजा आदि करे। यदि यजमान सक्षम न हो मात्र संकल्प और ब्राह्मण वरण करे एवं शेष सभी पूजन-हवन आदि भी आचार्य ही करें। अन्य सभी पूजनादि विधि के लिये पूर्व में आलेख प्रकाशित किये गए हैं जिसका लिंक भी यथास्थान समाहित किया गया है। यहां महामृत्युंजय जप विधि दी जा रही है, साथ ही साथ संकल्प व वरण मंत्र भी दिया गया है :