महामृत्युंजय जप करने की सम्पूर्ण विधि और जानकारी – mahamrityunjay jaap

महामृत्युंजय जप करने की सम्पूर्ण विधि और जानकारी – mahamrityunjay jaap

अथ महामृत्युंजय जप विधि

चन्द्रोद्भासित मूर्द्धजं सुरपतिं पीयूषपात्रं वहद्
हस्ताब्जेनदधत् सुदिव्यममलं हास्यस्यपङ्केरुहम्।
सूर्येन्द्वग्नि विलोचनं करतलैः पाशाक्षसूत्राङ्कुशाम्
भोजम्बिभ्रतमक्षयं पशुपतिं मृत्युञ्जयं संस्मरेत् ॥

  • पवित्रीकरण मंत्र : ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याऽभंतर: शुचि:॥  ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॥ 
  • आसन पवित्रीकरण मंत्र : ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुनाधृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ 
  • आचमन : ॐ केशवाय नमः। ॐ माधवाय नमः। ॐ नारायणाय नमः। मुख व हस्त मार्जन (२ बार) ॐ हृषिकेशाय नमः। आचमन करके 3 बार प्राणायाम करे। ये क्रियायें जापक ब्राह्मण हो तो वो भी करें।

तत्पश्चात ध्यानपूर्वक गंध-पुष्पादि से महामृत्युंजय पूजन करे। फिर न्यास करके माला पूजन करे, पुनः ध्यान करके पंचमुद्रा प्रदर्शन पूर्वक जप करे।

महामृत्युंजय जप विधि
महामृत्युंजय जप विधि

सङ्कल्प

  • सङ्कल्प – “ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतो महापुरूषस्य,विष्णुराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीये परार्धे श्रीश्वेत वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते ……… संवतसरे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे ………. मासे ……… पक्षे ……… तिथौ ……… वासरे ……… गोत्रोत्पन्नः ……… शर्माऽहं (वर्माऽहं/गुप्तोऽहं) ममात्मनः-(सपरिवारस्य) उपस्थित शरीराविरोधेनाखिलारिष्ट – झटितिप्रशमनपूर्वक दीर्घायुष्ट्वबलपुष्टि नैरुज्य प्राप्तिकामः अद्यारभ्य यथाकालं यजुर्वेदान्तर्गत माध्यन्दिनशाखीय “ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् , उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् भूर्भुवः स्वरों जूं सः हौं ॐ” इति महामृत्युञ्जयमन्त्रस्य ……… (सवालाख – सपादलक्षसङ्ख्यक) जपमहं करिष्ये (बाह्मणद्वारा कारयिष्ये)॥”

बाह्मण को यदि अन्य व्यक्ति के निमित्त जप करना हो तो इस प्रकार संकल्प करे :

वरण

  • आचार्य वरण : बायें हाथ में वरण सामग्री लेकर दाहिने हाथ त्रिकुशा-तिल-जल लेकर पढ़े – ॐ अद्य कर्तव्य सपादलक्ष महामृत्युंजय जप कर्मणि आचार्य कर्म कर्तुं एभिः वरणीय वस्तुभिः …….. गोत्रं ……… शर्माणं ब्राह्मणं आचार्यत्वेन त्वामहं वृणे ॥ तिल-जल वरण सामग्री पर छिड़क कर आचार्य को दे। आचार्य वृत्तोस्मि कहकर वरण सामग्री ग्रहण करें। पुनः यजमान कहे यथाविहितं कर्म कुरु आचार्य कहें कर्वाणि। फिर आचार्य पूजन करे।
  • जापक वरण : पूर्ववत – ॐ अद्य संकल्पित सपादलक्ष महामृत्युंजय जपे …….. संख्यक जपं कर्तुं एभिः वरणीय वस्तुभिः …….. गोत्रं ……… शर्माणं ब्राह्मणं जापकत्वेन त्वामहं वृणे ॥ आगे आचार्य वरण के समान।
  • आचार्य का वरण जप करने हेतु नहीं होता है, अपितु सम्पूर्ण अनुष्ठान विधिवत संपन्न करने के लिये यजमान प्रतिनिधि रूप में होता है। अर्थात आचार्य सभी पूजा-हवन आदि करें। जापक ब्राह्मणों का हवन के समय होतारूप में पुनः वरण अपेक्षित, किन्तु आचार्य का पुनः वरण अनपेक्षित।

विनियोग : “ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् भूर्भुवः स्वरों जूं सः हौं ॐ” अस्य श्रीमहामृत्युञ्जयमन्त्रस्य वामदेवकहोलवशिष्ठाः ऋषयः पङ्क्तिर्गायत्र्यनुष्टुप्छन्दांसि सदाशिव महामृत्युञ्जयरुद्रो देवता हौं बीजं जूं शक्तिः सः कीलकं महामृत्युञ्जयप्रीतये ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः॥

ऋष्यादिन्यास –

  1. वामदेवकहोलवशिष्ठऋषिभ्यो नमः शिरसि ।
  2. पङ्क्तिर्गायत्र्यनुष्टुप्छन्दोभ्यो नमः मुखे ।
  3. सदाशिवमहामृत्युञ्जयरुद्रदेवताभ्यो नमः हृदि।
  4. हौं बीजाय नमः नाभौ। जूं शक्तये नमः पादयोः।
  5. सः कीलकाय नमः सर्वाङ्गे।

करन्यास –

  • ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं ॐ नमो भगवते रुद्राय शूलपाणये स्वाहा अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
  • ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः यजामहे ॐ नमो भगवते रुद्राय अष्टमूर्तये मां जीवय तर्जनीभ्यां नमः ।
  • ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं ॐ नमो भगवते रुद्राय चन्द्रशिरसे जटिने स्वाहा मध्यमाभ्यां नमः ।
  • ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः उर्वारुकमिव बन्धनात् ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरान्तकाय हाँ ह्रीं ह्रौं अनामिकाभ्यां नमः ।
  • ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः मृत्योर्मुक्षीय ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजुः साममन्त्रत्रयाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
  • ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः मामृतात् ॐ नमो भगवते रुद्राय अग्नित्रयाय उज्ज्वलज्ज्वालाय मां रक्ष रक्ष अघोराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

हृदयादिन्यास –

  • ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः त्र्यम्बकं ॐ नमो भगवते रुद्राय शूलपाणये स्वाहा हृदयाय नमः।
  • ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः यजामहे ॐ नमो भगवते रुद्राय अष्टमूर्तये मां जीवय शिरसि स्वाहा।
  • ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं ॐ नमो भगवते रुद्राय चन्द्रशिरसे जटिने स्वाहा शिखायै वषट्।
  • ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः उर्वारुकमिव बन्धनात् ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरान्तकाय हाँ ह्रीं ह्रौं कवचाय हुम्।
  • ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः मृत्योर्मुक्षीय ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजुः साममन्त्रत्रयाय नेत्रत्रयाय वौषट् ।
  • ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः मामृतात् ॐ नमो भगवते रुद्राय अग्नित्रयाय उज्ज्वलज्ज्वालाय मां रक्ष रक्ष अघोराय अस्त्राय फट्।

महामृत्युंजय ध्यान

हस्ताम्भोजयुगस्थकुम्भयुगलादुद्‍धॄत्य तोयं शिरः
सिंचन्तं करयोर्युगेन दधतं स्वांके सकुम्भौ करौ ।
अक्षस्रङ्‍मृगहस्तमम्बुजगतं मूर्धस्थचन्द्रस्रवत्‌
पीयूषार्द्रतनुं भजे सगिरिजं मृत्युंजयं त्र्यम्बकम् ॥

फिर पंचमुद्रा प्रदर्शित करके माला पूजन करे।

माला पूजन : फिर “ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः” इस मन्त्र से माला की पूजा करके प्रार्थना करें –

इस मंत्र से माला को दाहिने हाथ में ग्रहण करे :

फिर जप करे। जप होने के बाद समर्पण करके पुनः न्यास करे।

प्रार्थना

उपरोक्त महामृत्युंजय जप विधि का pdf डाउनलोड करने के लिये यहां क्लिक करें : महामृत्युंजय जप विधि pdf

जप पूर्ण होने के बाद जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन करे। जो स्वयं जप करते हैं और हवन करने में अक्षम हो तो उसके लिये हवन का विकल्प जप का विंशांश और अधिक जप बताया गया है। लेकिन अनुष्ठान करने पर विकल्प को ग्रहण न करे। विकल्प तब ग्राह्य होता है जब प्रकल्प न किया जा सके।

हवने सम्पुटं नाऽस्ति : हवन में सम्पुट नहीं करना चाहिये अर्थात जप करते समय जैसे महाव्याहृति और बीजों से सम्पुट किया जाता है उस प्रकार सम्पुट करके हवन नहीं करना चाहिये। हवन वैदिक महमृत्युंजय मंत्र के आरम्भ में प्रणव व अंत में स्वाहा उच्चारण करके ही करना चाहिये।

महामृत्युंजय हवन का मंत्र : ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंन्धिम्पुष्टिवर्द्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् स्वाहा ॥

महामृत्युंजय मंत्र का उच्चारण करना : हवन मंत्र का उच्चारण करके ही करना चाहिये। जिस मंत्र का उच्चारण निषिद्ध होता है मात्र उस मंत्र का ही हवन में भी उच्चारण नहीं किया जाता है, जैसे ॐ प्रजापतये स्वाहा, गुरुमंत्र, इत्यादि। वेदोक्त महामृत्युंजय मंत्र का उच्चारण निषिद्ध नहीं है।

वास्तु वेदी और नवग्रह वेदी की आवश्यकता वास्तव में हवन के दिन ही होती है। अन्य दिनों नवग्रह पूजन कलश/पूगीफल आदि पर भी किया जा सकता है।

उपरोक्त सभी तथ्यों को प्रामाणिक रखने का प्रयास किया गया है फिर भी यदि किसी प्रकार की त्रुटि मिले या सुझाव देना चाहें तो व्हाटसप पर सन्देश कर सकते हैं – 7992328206

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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