मैत्र सूक्त अर्थात सूर्य सूक्त

मैत्र सूक्त अर्थात सूर्य सूक्त

भगवान सूर्य की स्तुति का यजुर्वेद में एक विशेष सूक्त भी है जिसे मैत्र सूक्त कहा जाता है। रुद्राष्टाध्यायी में भी जो चतुर्थ अध्याय है वो मैत्र सूक्त ही है। इस आलेख में मैत्र सूक्त दिया गया है।

  • मित्र भगवान सूर्य का नाम है, और भगवान सूर्य के सूक्त का नाम ही मैत्रसूक्त है।
  • भगवान सूर्य की स्तुतियों वाली वैदिक ऋचाओं का समूह मैत्र सूक्त कहलाता है।
  • रुद्राष्टाध्यायी का चतुर्थ अध्याय ही मैत्र सूक्त है।
  • मैत्रसूक्त भी विशेष महत्वपूर्ण सूक्त है और इसलिए इसे भी रुद्राष्टाध्यायी में संग्रहित किया गया है।
  • मैत्रसूक्त में यजुर्वेद के तैंतीसवें अध्याय की ३० से ४३ तक की १४ ऋचाएं ली गई है।
  • इसके साथ ही सातवें अध्याय की बारहवीं, सोलहवीं ऋचाएं भी ली गई है।
  • मैत्र सूक्त में भगवान सूर्य के स्वरूप, महानता आदि का वर्णन और स्तुति है।
  • भगवान सूर्य की अराधना के लिये मैत्र सूक्त विशेष महत्वपूर्ण है।
मैत्र सूक्त
मैत्र सूक्त

॥ इति शुक्लयजुर्वेदीयमैत्रसूक्तं सम्पूर्णम्॥

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