मुंडन संस्कार क्या है? क्या षोडश संस्कार के अतिरिक्त विशेष संस्कार है या षोडश संस्कार में वर्णित चूडाकरण संस्कार ही मुंडन संस्कार है। इसकी विधि और मंत्र क्या है ? इस आलेख में मुंडन की विशेष महत्वपूर्ण चर्चा के साथ चूडाकरण संस्कार की विधि और मंत्र का भी वर्णन किया गया है। इसके साथ ही अंत में मुंडन से संबंधित अनेकों महत्वपूर्ण प्रश्नों के भी उत्तर दिये गये हैं जो आलेख को और अधिक उपयोगी बनाता है।
क्या है मुंडन संस्कार ? विधि और मंत्र – चूडाकरण – mundan
मुंडन का अर्थ है सिर के बालों का वपन करना, उस्तरे द्वारा सिर के बाल हटाना। लेकिन ये तो जीवन में कई बार किया जाता है। अन्य समयों में मुंडन करने पर उसे मुंडन या क्षौर कहा जाता है और उसकी कोई विशेष विधि नहीं होती किन्तु जब विशेष विधि से केशाधिवासन पूर्वक संस्कार की प्रक्रिया से हवनादि करके प्रथम बार मुंडन किया जाता है तो वह चूडाकरण कहा जाता है। अन्य समय में किया जाने वाला मुंडन मात्र क्रियात्मक होता है, किन्तु चूडाकरण में किया जाने वाला मुंडन संस्कार भी होता है।
चूडाकरण उपनयन के साथ भी किया जा सकता है और इसी कारण विशेष रूप से उपनयन के साथ ही करने का व्यवहार देखा भी जाता है। चूडाकरण को चौलकर्म, मुंडन भी कहा जाता है।
मुंडन का एक अन्य अतिरिक्त प्रकार (आद्य केशान्त) व्यवहार में पाया जाता है। यदि चूडाकरण ससमय हो तो इस अतिरिक्त आद्य केशान्त की कोई आवश्यकता ही नहीं है। चूडाकरण जब उपनयन से संलग्न हो जाता है तो आद्य केशान्त नामक विधि की आवश्यकता उत्पन्न हो जाती है क्योंकि यदि 16 वर्ष में उपनयन हो अर्थात् चूडाकरण भी 16 वर्ष में हो तो क्या बालक केश न कटावे, जटाधारी बन जाये ? अतः केश कटाने की बाध्यता से अतिरिक्त प्रकार (आद्य केशांत नामक मुंडन) व्यवहृत होता है। इसका उद्देश्य बालक के बढे हुए बालों अन्त (केशांत) करना होता है।
पृथक मुंडन का व्यवहार सर्वत्र पाया जाता है परन्तु मुंडन चूडाकर्मवत् संपन्न न करके चूडाकर्म उपनयन काल में किया जाता है जिसकी प्रामाणिकता सिद्धि कठिन है व पूर्व आलेख में ये चर्चा कर चुके हैं। मुंडन ही चूडाकर्म सिद्ध होता है और यदि मुंडन पूर्व किया जाय तो उपनयन काल में पुनः चूडाकरण करना सिद्ध नहीं होता। अतः समुचित यही प्रतीत होता है कि मुंडन कर्म चूडाकरण विधि से ही 3 – 5 या 7 वर्ष में करे।
वैसे मुंडन (जो मात्र कुछ पूजादि करके, हवनरहित किया जाता है) को चूडाकरण से पृथक मान भी लिया जाय तो इसकी पद्धति क्या है ? जैसे चूडाकरण, उपनयन आदि की पद्धति है उसी प्रकार मुंडन यदि स्वतंत्र कर्म है तो एक स्वतंत्र पद्धति भी अपेक्षित है। चूंकि मुंडन की स्वतंत्र पद्धति नहीं है अतः इस दृष्टिकोण से भी मुंडन ही चूडाकरण सिद्ध होता है। पद्धति का तात्पर्य है परम्परा से उपलब्ध शास्त्रोक्त पद्धति न की मनगढंत कोई पूजा विधि।
मुंडन अर्थात चूडाकरण कब करे (वर्ष निर्धारण)
तथापि उत्तम पक्ष यही है कि चूडाकरण किया जावे । कारण कि वयाधिक्यता में वर्तमान युगानुसार शिखाविहीनता जो देखी जा रही है वह इसी विसङ्गति का दुष्परिणाम है। चूडाकरण काल में नापित जो प्रथम मुंडन करता है वह शिखास्थानीय ही करता है जबकि शिखाच्छेदन निषिद्ध है। चूडाकरण ससमय 3 – 5 वर्ष में यदि करे तो शिखास्थापन व केशान्त होगा और वही बालक शिखा का अभ्यस्त होगा, शिखा को अनिवार्य समझेगा ।
- बृहस्पति का वचन है – तृतीब्दे शिशोर्गर्भाज्जन्मतो वा विशेषतः । पञ्चमे सप्तमे वापि स्त्रियापुंसोपि वा समम् ॥
- पुनः नारद जी का कथन इस प्रकार है – जन्मतस्तु तृतीयेब्दे श्रेष्ठमिच्छन्ति पंडिताः । पञ्चमे सप्तमे वापि जन्मतो मध्यमं भवेत्॥
उपरोक्त आधार पर चूडाकरण वर्ष हेतु जो सिद्ध होता वह ये कि :
सांवत्सरिकस्य चूडाकरणम् – तृतीये वाऽप्रतिहते – पारस्कर गृह्यसूत्र
- तृतीय, पञ्चम अथवा सप्तम वर्ष में करे, पञ्चम और सप्तम वर्ष गौण काल है, उत्तम तृतीय वर्ष ही है।
- इसी प्रकार उपनयन-विवाहादि में वर्ष गणना गर्भ से ही करने की आज्ञा है किन्तु चूडाकरण में जन्म से भी गणना की जा सकती है किन्तु नारद वचन से जन्म से गणना मध्यम है उत्तम गर्भ से गणना करना ही है।
- चूंकि गर्भ और जन्म दोनों से वर्षगणना की आज्ञा है अतः कुलाचार का ग्रहण करे अर्थात जो परम्परा से ग्रहण किया जाता हो उसे ग्रहण करे।
- 3 वर्ष में मुंडन करे तो उत्तम, 5 या 7 वर्ष में करे तो मध्यम। किन्तु 7 वर्ष में अवश्य करे यह भी सिद्ध होता है।
- उपनयन में ही मुंडन करने की आज्ञा का तात्पर्य ये है कि यदि उपनयन 5 – 7 वर्ष में किया जाये तो करे।
- यदि उपनयन 16 (22/24) वर्ष में किया जाये तो मुंडन 7 वर्ष तक में कर ले।
- यदि ग्यारहवें वर्ष किया जाय तो अधम होता है।
मुंडन अर्थात् चूडाकरण वर्ष निर्धारन में कुल परम्परा को भी विशेष महत्व प्राप्त है अतः कुल परम्परा से ही उचित वर्ष का ग्रहण करे। यदि कुलपरम्परा का ज्ञान न हो तो शास्त्रप्रामाणिक वर्ष का ग्रहण करे। उपनयन, विवाह में तो गर्भ से वर्ष का ग्रहण बताया गया है किन्तु मुंडन में गर्भ और जन्म दोनों विहित है, अपने कुलपरम्परा के अनुसार दोनों में से जो ग्राह्य उसका ग्रहण करे।
ऐसा नहीं करते जिससे विसङ्गति उत्पन्न होती है और 20-25 वर्ष का युवक देखा-देखी का अनुसरण करते हुए शिखा विहीन ही रहता है, जूटिकाबंधन में कहां शिखा कहां बाल कुछ ज्ञात नहीं रहता और शिखा स्थापन नहीं होता, नापित बेचारा क्या करे समझ ही नहीं पाता कहां शिखा है नहीं दिखने पर आवेशयुक्त होकर शिखास्थानीय बालों को ही पहले निपटा देता है। अतः यदि चूडाकरण ससमय न भी करें अतिरिक्त प्रकार का मुंडन ही करना हो तो शिखा उसी समय छोड़े, शिखाच्छेदन न करे। चूडाकरण का तात्पर्य शिखाच्छेदन नहीं शिखा स्थापन (धारण) करना है।
एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य ये भी है कि मुंडन मुहूर्त की आवश्यकता तभी तक है जब मुंडन पृथक किया जावे, यदि उपनयन से ही संयुक्त किया जाय तो उपनयन मुहूर्त के अनुसार ही मुंडन भी करे पृथक मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती।
निधने जन्म नक्षत्रे वैनाशे चन्द्रमेऽष्टमे । विपत्करे वधे क्षौरं प्रत्यरौ च विवर्जययेत् ॥ – जन्म न में मुंडन करने से मरण, अष्टम चन्द्र हो तो विनाश-विपत्ति, प्रत्यरि नक्षत्र में वध होता है। अतः मुंडन में इनका विशेषरूप से विचार करे ।
माता का गर्भवती व रजस्वला होना