बहुत क्षेत्रों में सामान्य रूप से भी नारायणबलि श्राद्ध किया जाता है तो बहुत क्षेत्रों में विहित होने पर भी नारायणबलि श्राद्ध नहीं किया जाता है जैसे मिथिला में। वैसे दुर्मरण होने पर दुर्मरण शांति हेतु नारायणबलि श्राद्ध करने का विधान मिलता है। इस आलेख में नारायण बलि श्राद्ध करने की विधि और मंत्र दिये गये हैं। दुर्मरण दोष शांति हेतु शास्त्रों में नारायण बलि करने के लिये कहा गया है। विधि और मंत्र के साथ-साथ नारायण बलि के विषय में विस्तृत जानकारी भी दी गयी है। जो लोग नारायण बलि पुस्तक pdf डाउनलोड करना चाहते हैं उनके लिये अंत में PDF भी दिया गया है।
नारायण बलि करने की विधि और मंत्र – narayan bali
नारायण बलि एक विशेष विधि है जिसका वर्णन शास्त्र-पुराणों में मिलता है। दुर्मरण होने पर दुर्मरण दोष-शांति के लिये नारायण बलि विधि करने के लिये कहा गया है अर्थात षोडश श्राद्ध से अलग कर्म है। पुनः पञ्चक शांति से भी अलग कर्म है। यदि किसी का दुर्मरण अर्थात दुर्घटना-विष-अग्नि आदि जनित हो तो नारायण बलि करे, यदि पञ्चक में मृत्यु हुयी हो तो पञ्चक शांति भी करे। किन्तु इसे षोडश श्राद्ध का अङ्ग न समझे।
दुर्मरण के कई कारण होते हैं, उन कारणों के अतिरिक्त आत्महत्या करने वाले को पतित कहा गया है। शास्त्रों में यह बताया गया है कि आत्महत्या करने वाला महापातकी होता है और चूँकि वह सबका त्याग स्वयं करता है अतः उसके लिये किसी को कर्म करने की आवश्यकता ही नहीं होती और श्राद्ध का निषेध वचन भी प्राप्त होता है।
तथापि उन वचनों को लोक में महत्ता नहीं दी गयी तथापि दुर्मरण दोष नाशक नारायण बलि को स्वीकार किया गया।
दुर्मरण का सबसे बड़ा उदाहरण श्रीमद्भागवत माहात्म्य में वर्णित धुन्धकारी है जिसे श्राद्ध की वस्तुयें प्राप्त न हो सकी और न ही प्रेतत्व से मुक्ति मिली। एवं उसके लिये गोकर्ण जी ने सप्ताह भागवत का आयोजन किया जिससे उसे सद्गति की प्राप्ति हुई।
मिथिला के विद्वानों ने नारायण बलि को अंगीकार नहीं किया था अतः मिथिला में दुर्मरण होने पर भी नारायण बलि का विधान नहीं किया जाता है, सप्ताह-भागवत आदि किये जाते हैं। किन्तु सम्प्रति लोगों की सोच में दूरदर्शन-सोशल मीडिया आदि का प्रभाव ही होता है इसलिये शनैः-शनैः रुचि प्रकट करने लगे हैं ।
नारायण बलि क्या है ?
नारायण अर्थात जल जिनका अयन (निवास स्थान) है अथवा जो जल (क्षीर सागर) में निवास करते हैं अर्थात भगवान विष्णु को बलि प्रदान करना नारायण बलि कहलाता है। बलि का तात्पर्य विविध प्रकार की नैवेद्यादि अर्पण करना होता है न कि मात्र जीव बलि देना। नारायण बलि श्राद्ध का अर्थ नारायण का तर्पण (विष्णु तर्पण) करके बलि रूप में पिण्ड प्रदान करना है।
नारायण बलि और नागबलि
नारायण बलि दुर्मरण दोष निवारण करने हेतु किया जाने वाला श्राद्ध कर्म है। नारायण बलि में 16 पिण्ड दान किया जाता है। नाग बलि सर्प दोष या कालसर्प दोष निवारण करने हेतु की जाने वाली सर्प पूजा विधि का नाम है। नाग बलि में द्वादश प्रकार के सर्पों की विशेष विधि से पूजा आदि किया जाता है।
नारायण बलि के नियम
- नारायण बलि की आवश्यकता तब होती है जब श्राद्ध द्वारा प्रेत की सद्गति बाधित प्रतीत हो।
- यद्यपि यह बाधा पञ्चक मरण में भी होती है किन्तु पञ्चक मरण में नारायण बलि की आवश्यकता नहीं होती पञ्चक शांति किया जाता है।
- नारायण बलि से पूर्व प्रायश्चित्तांग गोदान अथवा गोनिष्क्रिय दान करे ।
- चूंकि एकोदिष्ट भी मध्याह्न से अपराह्न में हो जाना आवश्यक होता है, इसलिये नारायण बलि उससे पूर्व ही सम्पन्न करे ।
- पहले विष्णु तर्पण करे, फिर एकादश विष्णु श्राद्ध करे और उसके बाद पञ्चश्राद्ध करे।
नारायण बलि कब करना चाहिए
- सरल रूप में इस प्रकार कहा जा सकता है कि जब प्राणी की स्वाभाविक मृत्यु न हो तब उसके निमित्त नारायण बलि करना चाहिये।
- नारायण बलि षोडश श्राद्ध से पूर्व ही करना चाहिये।
- एकादशाह के दिन ही षोडश श्राद्ध का आरम्भ होता है अतः नारायण बलि एकादशाह के दिन ही करे।
- नारायण बलि होने से न तो सप्ताह भागवत निषिद्ध होता है और न ही सप्ताह भागवत होने से नारायण बलि निषिद्ध होता है।
- अतः दुर्मरण होने पर नारायण बलि से साथ सप्ताह भागवत भी करना चाहे तो करे।
- अर्थात यदि दुर्मरण सुनिश्चित हो तो नारायण बलि अवश्य करे। सप्ताह भागवत करना अतिरिक्त कर्म है न की नारायण बलि का स्थान लेने वाला कर्म।
- यदि सप्ताह भागवत नारायण बलि का स्थान ग्रहण करने में सिद्ध हो जाये तो षोडश श्राद्ध में भी प्रभावी हो जायेगा। अतः इस भ्रम में न पड़ें कि सप्ताह भागवत का आयोजन करना है इसलिये नारायण बलि का औचित्य नहीं है।
- वर्त्तमान समय में उन प्राणियों के लिये भी जब विवेक जगे; तो नारायण बलि करके षोडशश्राद्धादि करे विभिन्न समूहों द्वारा भ्रमित किये जाने से जिसका श्राद्ध नहीं किया गया हो।
नारायण बलि विधि
प्रायश्चित्त गोदान की विधि पूर्व में ही एकादशाह श्राद्ध विधियों में दी गयी है तदनुसार प्रायश्चित्त गोदान करे अथवा सामर्थ्यहीन होने पर वा गो की अनुपलब्धता में गो निष्क्रिय दान करे। प्रायश्चित्त गोदान विधि के लिये यहां क्लिक करें। यहां हम संकल्प से नारायणबलि विधि का आरम्भ करेंगे।
संकल्प – ब्राह्मण वरण
फिर त्रिकुशा, तिल, जल आदि संकल्प द्रव्य लेकर संकल्प करे :
नारायण बलि संकल्प – ॐ अद्यैतस्य …….. मासे …….. पक्षे …….. तिथौ ………. वासरे …….. गोत्रस्य (गोत्रायाः) ……… प्रेतस्य (प्रेतायाः) दुर्मरण-दोषपरिहारपूर्वक सद्गति प्राप्त्यर्थं नारायणबलिं करिष्ये ॥ संकल्प जलादि छोड़ दे।
ब्राह्मण वरण – बांये हाथ में वरण सामग्री लेकर दाहिने हाथ में त्रिकुशा, तिल, जल लेकर पढ़े – ॐ अद्य क्रियमाण नारायणबलिकर्मणि विविधसूक्तपाठकरणार्थं विविधमन्त्रजपकरणार्थं वा होमादिकर्म कर्तुं च एभिर्वरणद्रव्यैः नाना नामगोत्रान् ब्राह्मणान् युष्मान् अहं वृणे ॥ – पढ़कर तिल-जल वरणसामग्री पर छिड़क कर ब्राह्मणों को दे । ब्राह्मण – “वृताःस्म” कहें । फिर कर्ता कहे “यथाविहितं कर्म कुरु” । ब्राह्मण कहें – “कर्वाणि”।
पूजन
फिर हवन वेदी के ईशानकोण में ईशानकोण में चौकी या बालुका वेदी पर श्वेत वस्त्र बिछाकर अष्टदल बनाये। आठों दलों पर पुंगीफल देकर अष्टशक्तियों का आवाहन करे :
- पूर्व – ॐ रुक्मिणी इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- अग्नि – ॐ सत्यभामे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- दक्षिण – ॐ जाम्बवती इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- नैर्ऋत्य – ॐ नाग्निकी इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- पश्चिम – ॐ कालिंदी इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- वायव्य – ॐ मित्रवृन्दे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- उत्तर – ॐ लक्ष्मणे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- ईशान – ॐ कैकेयी इहागच्छ इह तिष्ठ ॥

फिर कलश स्थापन विधि के अनुसार अष्टदल के मध्य में ताम्रकलश स्थापन-पूजन करके कलश पर भगवान सत्येश की प्रतिमा या शालिग्राम रखे। यदि प्रतिमा हो तो अग्न्युत्तारण करके प्राणप्रतिष्ठा करे, यदि शालिग्राम हो तो बिना प्राण प्रतिष्ठा के अष्टशक्ति सहित सत्येश पूजन करे। यदि षोडशोपचार पूजन करना हो तो पुरुषसूक्त से करे अथवा “अष्टशक्ति सहिताय सत्येशाय नमः” से पूजा करे।
षोडशोपचार पूजा विधि का लिंक ऊपर दिया गया है। सत्येश आवाहन, अर्घ्य और प्रार्थना के मंत्र नीचे दिये गए हैं :
आवाहन – उर्व्यां क्षीरसमुद्रेऽस्मिन् व्योम्नि सत्येश संस्थितः ।
अत्रत्यं सत्यया सार्धं सत्येश भव सन्निधौ ॥ अष्टशक्ति सहिताय सत्येशाय नमः ॥
विशेषार्घ्य
पूजनकर नारियल में छेदकर उसके जल से अगला मंत्र पढ़कर अर्घ्य दें –
यज्ञेनाऽच्युत देवेश सत्यरूपसनातन । अनेनार्घ्यप्रदानेन सर्वपापाद्विमोचय ॥
सत्येशाय नमस्तुभ्यं पापघ्नः परमेश्वरः । मया दत्तार्घ्यदानेन प्रेतमुक्ति प्रदो भव ॥
“एषोऽर्घः अष्टशक्ति सहिताय सत्येशाय नमः”
प्रार्थना
पुराकृतं मयाघोरं ज्ञानविज्ञान किल्विषम् ।
जन्मतोऽद्यदिनं यावत्तस्मात्पापात्पुनीहि माम् । विष्णो तव प्रसादेन स्वर्गलोकं स गच्छतु ॥
अपराधं सहस्राणि लक्षकोटिशतानि च । नश्यति तत्क्षणादेव तव पूजन मात्रतः ॥
नारायण नमस्तुभ्यं मूर्त्तामूर्त्तस्वरूपिणे । वासुदेव नृसिंहाख्यः कपिलो दिव्य भूधरः ॥
वाराहाच्युतयज्ञेश लक्ष्मीकान्तामृतेश्वर । शार्ङ्गपाणे नमस्तुभ्यं यज्ञेशाय नमो नमः ॥