नारायण बलि श्राद्ध :
नारायण बलि श्राद्ध दो भागों में करने की विधि है प्रथम एकादश विष्णु श्राद्ध तदुत्तर पञ्चश्राद्ध। लेकिन किसी-किसी पद्धति में षोडशी बनाकर एक बार में ही षोडश श्राद्ध भी करने की विधि मिलती है। यहां एकादश विष्णु श्राद्ध के उत्तर पञ्चश्राद्ध विधि के अनुसार नारायणबलि श्राद्ध की विधि दी गयी है।नारायण बलि में मुख्य रूप से दो प्रकार देखा जाता है : यदि एकादशाह को करे तो एकादश विष्णु श्राद्ध, द्वादशाह को करे तो द्वादश विष्णु श्राद्ध। यहाँ हम एकादशाह के दिन एकादश विष्णु श्राद्ध विधि जानेंगे।
यहां यह प्रयास किया गया है कि कर्मकाण्ड सीखने वालों के लिये यह विशेष उपयोगी सिद्ध हो। साथ ही किसी प्रकार का त्रुटि होने पर या सुझाव सादर आमंत्रित हैं। आपके सुझाव से इसे और अधिक सरल व उपयोगी स्वरूप दिया जा सकता है। अपना अमूल्य सुझाव हमें व्हाट्सअप पर प्रदान करें – 9279259790
एकादश विष्णु श्राद्ध
विष्णुः शिवो यमश्चैव सोमश्च हव्यवाहनः। कव्यश्च मृत्यु रुद्रश्चपुरुषश्च तथैव च ॥
प्रेतस्तु दशमः प्रोक्तो विष्णुः एकादशः स्मृतः। एते त्वेकादशः प्रोक्ताः श्राद्धेस्मिन् अधिकारिणः ॥
इस प्रकार जब प्रमाणतः एकादश विष्णु श्राद्ध अलग व पञ्चदेवता श्राद्ध अलग-अलग नारायण बलि श्राद्ध का अंग है तो एकत्रित करके षोडशी कैसे सिद्ध हुआ ये समझ पाना कठिन है। एक विशेष पद्धति में पञ्चदेवता श्राद्ध को भी एकादश विष्णु श्राद्ध से संयुक्त करके षोडशी श्राद्ध सिद्ध किया गया है।
नारायण बलि में कुल 16 पिण्ड होने से षोडश सिद्ध होने में कोई विरोधाभास नहीं है किन्तु एकादश और पञ्च को संयुक्त करके नई विधि करना उचित नहीं कहा जा सकता। यदि इसे उचित कहा जाय तो इसी आधार पर आगे 14 मासिक श्राद्ध और सपिण्डन श्राद्ध भी संयुक्त कर दिये जायेंगे। 14 मासिक श्राद्ध एकतंत्र से करना उचित हो सकता है, किन्तु 14 मासिक और सपिण्डी को संयुक्त नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार एकादश विष्णु और पञ्चदेवता को भी संयुक्त नहीं किया जा सकता।
नारायणबलि श्राद्ध के महत्वपूर्ण तथ्य
- एकादश विष्णु श्राद्ध में 11 श्राद्ध किया जाता है।
- आसन पूर्व दिशा में दक्षिण-उत्तरक्रम से पूर्वाग्र दिया जाता है। लेकिन नौवां आसन प्रेत का होता है जो उसी पंक्ति में दक्षिणाग्र दिया जाता है।
- अन्य 10 श्राद्ध उत्तराभिमुख किया जाता है लेकिन प्रेत का श्राद्ध दक्षिणाभिमुख होता है।
- प्रेत पिण्ड के लिये अलग पाक भी होता है।
- एकादश विष्णु श्राद्ध के उपरांत पुनः पञ्चदेवता श्राद्ध भी किया जाता है।
शुद्धिकरण
सर्वप्रथम शुद्धिकरण करे, तीन बार आचमन कर कुशादि धारण करते हुए आत्मशुद्धि करे :
- पवित्रीकरण मंत्र : ॐ अपवित्रः पवित्रोऽ वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याऽभ्यन्तरः शुचिः पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॥
- दिग्रक्षण मंत्र : ॐ नमो नमस्ते गोविन्द पुराण पुरूषोत्तम । इदं श्राद्धं हृषीकेश रक्ष त्वं सर्वतो दिशः ॥
एकादशविष्णु श्राद्ध संकल्प
त्रिकुशा-तिल-जल आदि लेकर आद्यश्राद्ध का संकल्प करे : ॐ अद्य …….… गोत्रस्य …….. पितुः ……. प्रेतस्य (माता के श्राद्ध में …….. गोत्रायाः ……… मातुः ………. प्रेतायाः कहे) विष्णवादिलोकप्राप्तये दुर्मरण निमित्तक नारायणबलि कर्मांगभूत विष्णवादिविष्णुपर्यन्तानामेकोद्दिष्ट विधिना एकतन्त्रेण एकादशविष्णु श्राद्धं अहं करिष्ये ॥ स.पू.त्रि. संकल्प कर तिल जलादि भूमि पर गिराये त्रिकुशा सहित।
तीन बार गायत्री मंत्र जप करे। तीन बार देवताभ्यः मंत्र पढ़े : ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः ॥३॥ स.पू.त्रि.
फिर उत्तराभिमुख-सव्य-त्रिकुशहस्त होकर प्रथम 9 आसन उत्सर्ग करे अथवा कुशात्मक आसन प्रदान करे :
- ॐ विष्णवे इदमासनं ॥
- ॐ शिवाय इदमासनं ॥
- ॐ यमाय इदमासनं ॥
- ॐ सोमराजाय इदमासनं ॥
- ॐ हव्यवाहनाय इदमासनं ॥
- ॐ कव्यवाहनाय इदमासनं ॥
- ॐ मृत्यवे इदमासनं ॥
- ॐ रुद्राय इदमासनं ॥
- ॐ तत्पुरुषाय इदमासनं ॥
- ॐ प्रेताय इदमासनं ॥ :- अपसव्य-दक्षिणाग्र
- ॐ विष्णवे इदमासनं ॥ – हाथ-पैर धोकर, पुनः उत्तराभिमुख-सव्य-त्रिकुशहस्त होकर ग्यारहवां आसन दे।
अर्घ्य :
- तत्पश्चात 11 अर्घ्य पात्र बनाये 9 पूर्वाग्र, दशवां दक्षिणाग्र, पुनः ग्यारहवां पूर्वाग्र : सभी अर्घ्य पात्रों में कुशा (पवित्री) दे। फिर जल दे : ॐ शन्नो देवीरभिष्टय ऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभि स्रवन्तुनः॥
- तत्पश्चात 9 अर्घ्यपात्रों में जौ दे : ॐ यवोऽसि यवयास्मद्वेषो यवयारातीः ॥
- तत्पश्चात पुनः दसवें अर्घ्यपात्र में तिल दे : ॐ तिलोऽसि सोम देवत्यो गोसवो देवनिर्मितः। प्रत्नद्भिः पृक्त: स्वधया पितृन् लोकान् प्रीणाहि नः स्वाहा ॥
- पुनः ग्यारहवें अर्घ्यपात्र में “यवोऽसि” मंत्र से जौ दे।
- तत्पश्चात सभी अर्घ्यपात्रों में मौन रहते हुये पुष्प-चंदन दे।
अर्घ्याभिमन्त्रण : तत्पश्चात प्रथम अर्घ्यपात्र को उठाकर बांये हाथ में रखे, अर्घ्यपात्र से पवित्री (कुशा) निकाल कर भोजनपात्र पर पूर्वाग्र रखे जलांतर से सिक्त करे, दाहिने हाथ से अर्घ्यपात्र के जल को ढंककर (उत्तान) अभिमंत्रित करे : ॐ या दिव्या आपः पयसा सम्बभूबुर्या आंतरिक्षा उत पार्थीवीर्या:। हिरण्यवर्णा याज्ञियास्ता न आपः शिवा: स ᳪ स्योना: सुहवा भवन्तु ॥
तत्पश्चात जौ-जल से अर्घ्य उत्सर्ग करे : ॐ विष्णवे एष तेऽर्घः ॥ उत्सर्ग करके अर्घ्यपात्र दाहिने हाथ में लेकर देवतीर्थ से भोजनपात्र पर रखे हुये पवित्री पर दे। पुनः पवित्री को वापस अर्घ्यपात्र में रखे। अर्घ्यपात्र को यथास्थान रख दे।
उपरोक्त विधि से ही अन्य 8 अर्घ्यपात्रों का भी अभिमन्त्रण उत्सर्ग करके यथास्थान रखे :
- ॐ शिवाय एष तेऽर्घः ॥
- ॐ यमाय एष तेऽर्घः ॥
- ॐ सोमराजाय एष तेऽर्घः ॥
- ॐ हव्यवाहनाय एष तेऽर्घः ॥
- ॐ कव्यवाहनाय एष तेऽर्घः ॥
- ॐ मृत्यवे एष तेऽर्घः ॥
- ॐ रुद्राय एष तेऽर्घः ॥
- ॐ तत्पुरुषाय एष तेऽर्घः ॥
10 – तत्पश्चात दक्षिणाभिमुख होकर दसवें अर्घ्यपात्र की पवित्री दक्षिणाग्र रखे और अभिमन्त्रण अनुत्तान हस्त करे, अपसव्य होकर मोटक, तिल जल से उत्सर्ग करे : ॐ प्रेताय एष तेऽर्घः ॥ उत्सर्ग करके अर्घ्यपात्र दाहिने हाथ में लेकर पितृतीर्थ से भोजनपात्र पर रखे हुये पवित्री पर दे। पुनः पवित्री को वापस अर्घ्यपात्र में रखे। अर्घ्यपात्र को यथास्थान रख दे।
11 – हाथ-पैर धोकर, पुनः उत्तराभिमुख-सव्य-त्रिकुशहस्त होकर ग्यारहवां अर्घ्य दे पूर्ववत दे – ॐ विष्णवे एष तेऽर्घः ॥
तत्पश्चात सभी अर्घ्यपात्र (पवित्री सहित) आसन के दक्षिण पार्श्व (उत्तर दिशा) में उत्तान रखे, प्रेत का अर्घ्यपात्र आसन के वाम भाग (पश्चिम दिशा) में अनुत्तान रखे।
अर्चन
सव्यापसव्य विचार करके यव-जल से क्रमशः उत्सर्ग करे :-
- ॐ एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूल वस्त्रादि ऽआच्छादनानि विष्णवे अक्षय्यमस्तु ॥
- ॐ एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूल वस्त्रादि ऽआच्छादनानि शिवाय अक्षय्यमस्तु ॥
- ॐ एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूल वस्त्रादि ऽआच्छादनानि यमाय अक्षय्यमस्तु ॥
- ॐ एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूल वस्त्रादि ऽआच्छादनानि सोमराजाय अक्षय्यमस्तु ॥
- ॐ एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूल वस्त्रादि ऽआच्छादनानि हव्यवाहनाय अक्षय्यमस्तु ॥
- ॐ एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूल वस्त्रादि ऽआच्छादनानि कव्यवाहनाय अक्षय्यमस्तु ॥
- ॐ एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूल वस्त्रादि ऽआच्छादनानि मृत्यवे अक्षय्यमस्तु ॥
- ॐ एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूल वस्त्रादि ऽआच्छादनानि रुद्राय अक्षय्यमस्तु ॥
- ॐ एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूल वस्त्रादि ऽआच्छादनानि तत्पुरुषाय अक्षय्यमस्तु ॥
- ॐ एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूल वस्त्रादि ऽआच्छादनानि प्रेताय अक्षय्यमस्तु ॥ – अपसव्य…
- ॐ एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूल वस्त्रादि ऽआच्छादनानि विष्णवे अक्षय्यमस्तु ॥
भोजन
आचमन करके सभी भोजन पात्रों पर अन्नादि परिवेषण करे। अलग-अलग पात्रों (पुटकों) में घृत-जल भी भी दे। फिर जल से सबको सिक्त करे। तत्पश्चात क्रमशः सभी भोजनपात्रों का आलंभन-अवगाहनादि करे :
आलम्भन : उत्तान हस्त से भोजन पात्र का स्पर्श करके पढ़े :-
- ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखे अमृते ऽअमृतं जुहोमि स्वाहा ॥
- ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् समूढ़मस्य पा ᳪ सुरे ॥
- ॐ विष्णो हव्यं रक्षस्व ॥
अवगाहन : अन्नादि में अंगुष्ठनिवेषण करके अवगाहन करे।
फिर भोजन पात्र के चारों ओर यव छिड़के – ॐ अपहता ऽअसुरा रक्षा ᳪ सि वेदिषदः ॥
सभी भोजन पात्रों का क्रमशः आलंभन-अवगाहन करके यव छिड़क दे। प्रेतपात्र का अनुत्तान हस्त करे। तत्पश्चात सव्यापसव्य विचार पूर्वक सबके अन्न का उत्सर्ग करे :
अन्नोत्सर्ग :
- ॐ एतदन्नं सोपकरणममृतरूपं हव्यं विष्णवे स्वाहा, सम्पद्यन्तां ॥
- ॐ एतदन्नं सोपकरणममृतरूपं हव्यं शिवाय स्वाहा, सम्पद्यन्तां ॥
- ॐ एतदन्नं सोपकरणममृतरूपं हव्यं यमाय स्वाहा, सम्पद्यन्तां ॥
- ॐ एतदन्नं सोपकरणममृतरूपं हव्यं सोमराजाय स्वाहा, सम्पद्यन्तां ॥
- ॐ एतदन्नं सोपकरणममृतरूपं हव्यं हव्यवाहनाय स्वाहा, सम्पद्यन्तां ॥
- ॐ एतदन्नं सोपकरणममृतरूपं हव्यं कव्यवाहनाय स्वाहा, सम्पद्यन्तां ॥
- ॐ एतदन्नं सोपकरणममृतरूपं हव्यं मृत्यवे स्वाहा, सम्पद्यन्तां ॥
- ॐ एतदन्नं सोपकरणममृतरूपं हव्यं रुद्राय स्वाहा, सम्पद्यन्तां ॥
- ॐ एतदन्नं सोपकरणममृतरूपं हव्यं तत्पुरुषाय स्वाहा, सम्पद्यन्तां ॥
- ॐ एतदन्नं सोपकरणममृतरूपं हव्यं प्रेताय स्वाहा, सम्पद्यन्तां ॥ – अपसव्य…
- ॐ एतदन्नं सोपकरणममृतरूपं हव्यं विष्णवे स्वाहा, सम्पद्यन्तां ॥
तदुपरांत पिण्ड वेदी निर्माण करके रेखाकरण करे और फिर अंगारभ्रमण कर ले। फिर वेदी पर कुशायें रखकर अवनेजन दे।
तीन बार गायत्री मंत्र जप करे। तीन बार देवताभ्यः मंत्र पढ़े : ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः ॥३॥ स.पू.त्रि.
अवनेजन
11 पुटकों में यव-जल-गंध-पुष्पादि देकर अवनेजन बना ले। फिर क्रमशः सव्यापसव्य विचार करके उत्सर्ग करे और पिण्डस्थान पर दे :
- ॐ विष्णवे अवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ शिवाय अवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ यमाय अवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ सोमराजाय अवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ हव्यवाहनाय अवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ कव्यवाहनाय अवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ मृत्यवे अवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ रुद्राय अवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ तत्पुरुषाय अवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ प्रेताय अवनेजने निक्ष्व ॥ – अपसव्य…
- ॐ विष्णवे अवनेजने निक्ष्व ॥
पिण्ड दान
तदुपरांत पायस, तिल, घृत, मधु आदि से 11 पिण्ड निर्माण करे। फिर क्रमशः सव्यापसव्य विचार पूर्वक 1-1 पिण्ड उत्सर्ग करके कुशाओं पर दे :
- ॐ विष्णवे एष ते पिण्डः ॥
- ॐ शिवाय एष ते पिण्डः ॥
- ॐ यमाय एष ते पिण्डः ॥
- ॐ सोमराजाय एष ते पिण्डः ॥
- ॐ हव्यवाहनाय एष ते पिण्डः ॥
- ॐ कव्यवाहनाय एष ते पिण्डः ॥
- ॐ मृत्यवे एष ते पिण्डः॥
- ॐ रुद्राय एष ते पिण्डः ॥
- ॐ तत्पुरुषाय एष ते पिण्डः ॥
- ॐ प्रेताय एष ते पिण्डः ॥ – अपसव्य…
- ॐ विष्णवे एष ते पिण्डः ॥
प्रत्यवनेजन
हस्त प्रक्षालन करके पुनः पूर्ववत सभी पिण्डों पर सव्यापसव्य विचार पूर्वक अवनेजन दे :-
- ॐ विष्णवे प्रत्यवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ शिवाय प्रत्यवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ यमाय प्रत्यवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ सोमराजाय प्रत्यवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ हव्यवाहनाय प्रत्यवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ कव्यवाहनाय प्रत्यवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ मृत्यवे प्रत्यवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ रुद्राय प्रत्यवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ तत्पुरुषाय प्रत्यवनेजने निक्ष्व ॥
- ॐ प्रेताय प्रत्यवनेजने निक्ष्व ॥ – अपसव्य…
- ॐ विष्णवे प्रत्यवनेजने निक्ष्व ॥
पिण्ड पूजन – प्रोक्षण
तदुत्तर सव्यापसव्य विचार करते हुये सभी पिण्डों पर सूत्र अर्पित करे, फिर क्रमशः गंध, पुष्प, तुलसी, धूप, दीप, ताम्बूल, दक्षिणादि चढ़ाकर पिण्डशेषान्न पिण्डों के निकट बिखेड़े । फिर यव-जल से अर्चन समर्पण करे – “पिंडार्चनविधेः परिपूर्णतास्तु ॥” प्रेत के लिये अपसव्य … कहे – “.….. गोत्रस्य ……. प्रेतस्य असद्गतिविनाशः सद्गति प्राप्तिः ॥”
फिर सव्य-आचमन करके सुप्रोक्षितादिकरण करे :
- ॐ शिवा: आपः सन्तु ॥ भोजनपात्र पर जल दे।
- ॐ सौमनस्यमस्तु ॥ भोजनपात्र पर फूल दे।
- ॐ अक्षतंचारिष्टमस्तु ॥ भोजनपात्र पर अक्षत दे।
अक्षय्योदक
तिल, मधु, घृत मिश्रित जल (अक्षय्योदक) पूड़े से पिण्ड पर दे :-
- ॐ विष्णोः दत्तैतदन्नपानादिकमक्षय्यमस्तु॥
- ॐ शिवस्य दत्तैतदन्नपानादिकमक्षय्यमस्तु॥
- ॐ यमस्य दत्तैतदन्नपानादिकमक्षय्यमस्तु॥
- ॐ सोमराजस्य दत्तैतदन्नपानादिकमक्षय्यमस्तु॥
- ॐ हव्यवाहनस्य दत्तैतदन्नपानादिकमक्षय्यमस्तु॥
- ॐ कव्यवाहनस्य दत्तैतदन्नपानादिकमक्षय्यमस्तु॥
- ॐ मृत्योः दत्तैतदन्नपानादिकमक्षय्यमस्तु॥
- ॐ रुद्रस्य दत्तैतदन्नपानादिकमक्षय्यमस्तु॥
- ॐ तत्पुरुषस्य दत्तैतदन्नपानादिकमक्षय्यमस्तु॥
- ॐ प्रेतस्य दत्तैतदन्नपानादिकमुपतिष्ठताम् ॥ – अपसव्य…
- ॐ विष्णोः दत्तैतदन्नपानादिकमक्षय्यमस्तु॥
जलधारा
सभी पिंडों के ऊपर कुशा रखे। एक ताम्रपात्र में जल, दुग्ध, सर्वौषधि, तिल, जौ, तुलसी, चन्दन, स्वर्ण आदि प्रक्षेप करे। शंख में जल लेकर क्रमशः सभी पिण्डों पर दे –
- प्रथम पिण्ड पर – ॐ अपोदेवी मधुमतीरगृम्णन्नूर्जस्वती राजस्वश्चितानाः याभिर्मित्रा – वरुणावभ्यसिञ्चन्याभिरिन्द्रमन्नं नयत्यरातीः ॥ अप्रमेय हरे विष्णो कृष्ण दामोदराच्युत । गोविन्दानन्त सर्वेश वासुदेव नमोऽस्तु ते ॥ ॐ प्रथमे विष्णुपिण्डे जलधारा पयोधारा उपतिष्ठतु ॥१॥
- द्वितीय पिण्ड पर – ॐ उपयामगृहीतोऽ स्यनार्यच्छमघवन्याहिसोमम् । उरुष्यराय एषो यजस्व ॥ शिव शान्त जगन्नाथ लोकानुग्रहकारक । शिव एव परो देवः शंकराय नमो नमः ॥ द्वितीये शिवपिण्डे जलधारा पयोधारा उपतिष्ठतु ॥२॥
- तृतीय पिण्ड पर – ॐ येनापावकचक्षुसाभुरण्यन्तञ्जनाऽनु। त्वं वरुण पश्यसि ॥ यमाय पाशहस्ताय महिषासनसंस्थित । दक्षिणां दिशमास्थाय दंडधारिन् नमोऽस्तु ते ॥ तृतीये यम पिण्डे जलधारा पयोधारा उपतिष्ठतु॥
- चतुर्थ पिण्ड पर – ॐ ये देवासो दिव्यैकादशस्त्थ पृथिव्यामध्येकादशस्त्थ। अप्सुक्षितोमहिनैकादशस्त्थ ते देवासो यज्ञमिमं जुषध्वम् ॥ द्विजराज सुरश्रेष्ठ ताराधीशात्रिनंदन । औषधीनां सुगमन सोमराज नमोऽस्तु ते ॥ ॐ चतुर्थे सोमराज पिण्डे जलधारा पयोधारा उपतिष्ठतु ॥४॥
- पञ्चम पिंड पर – ॐ समुद्रं गच्छ स्वाहाऽन्तरिक्षं गच्छ स्वाहा देवं सवितारं गच्छ स्वाहा मित्रावरुणौ गच्छ स्वाहा। अहोरात्रेगच्छ स्वाहा छन्दां सि ᳪ गच्छ स्वाहा द्यावापृथिवीगच्छ स्वाहा यज्ञं गच्छ स्वाहा सोमं गच्छ स्वाहा दिव्यन्नभोगच्छ स्वाहाऽग्निंवैश्वानरं गच्छ स्वाहा मनोमेहार्द्दियगच्छ दिवन्ते। धूघो गच्छतु स्वज्योर्तिः पृथिवीं भस्मना पृण स्वाहा ॥ त्वमग्नेः सर्वभूतानां अन्तश्चरसि पावक । साक्षिवान्पुण्यपापेभ्यो हव्यवाह नमोऽस्तु ॥ पञ्चमे हव्यवाहन पिण्डे जलधारा पयोधारा उपतिष्ठतु ॥५॥
- षष्ठ पिण्ड पर – ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा सूर्योज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा। अग्निवर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्योवर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा। ज्योतिः सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा ॥ कव्यवाह नमस्तेऽस्तु पितृश्चैवोपतिष्ठते । अग्निष्वात्तादि पितृभिः कव्यत्वे या प्रतिष्ठिता ॥ ॐ षष्ठे कव्यवाहनपिण्डे जलधारा पयोधारा उपतिष्ठतु ॥६॥
- सप्तम पिण्ड पर – ॐ हिरण्यगर्भः समवर्त्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ नमस्ते कालरूपाय किरीटमुकुटोज्वलः । पाशांकुशधरो देवः कालरूप नमोऽस्तु ते ॥ ॐ सप्तमे मृत्युपिण्डे जलधारा पयोधारा उपतिष्ठतु ॥७॥
- अष्टम पिण्ड पर – ॐ नमस्ते रुन्द्रमन्यव उतोत इषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः ॥ नमस्ते ध्याननिधये निधनादिविवर्जिते । नमो भवाय रुद्राय शर्वाय च नमोऽस्तु ते ॥ ॐ अष्टमे रुद्रपिण्डे जलधारा पयोधारा उपतिष्ठतु ॥८॥
- नवम पिण्ड पर – ॐ यज्जाग्रतोदूरमुदैति दैवन्तदुसुप्तस्य तथैवेति। दूरङ्गमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिव सङ्कल्पमस्तु ॥ हिरण्यगर्भः पुरुषः प्रजाध्यक्ष स्वरूपिणे । नमस्ते वासुदेवाय सुष्ठु ज्ञान स्वभाविने ॥ ॐ नवमे तत्पुरुषपिण्डे जलधारा पयोधारा उपतिष्ठतु ॥९॥
- दशम पिण्ड पर – अपसव्य होकर – ॐ याफलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी। बृहस्पति प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ᳪ हस: ॥ नारायण सुरश्रेष्ठ लक्ष्मीकांत वरप्रद । अनेन तर्पणेनाथ प्रेतमोक्षप्रदो भव ॥ दशमे प्रेतपिण्डे जलधारा पयोधारा उपतिष्ठतु ॥१०॥
- एकादश पिण्ड पर – सव्य होकर – ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोवाहुरुतविश्वतस्पात। सम्बाहुभ्यां धमति सम्पतत्रैर्धावा भूमी जनयन्देव एकः ॥ तस्य यज्ञवराहस्य विष्णोः अमिततेजसः । प्रणामं ये प्रकुर्वन्ति तेषामपि नमो नमः ॥ ॐ एकादशे विष्णुपिण्डे जलधारापयोधारा उपतिष्ठतु ॥११॥
फिर अपसव्य होकर बचे हुए जल को एक ही साथ ग्यारहों पिण्डों पर अगले पांच मंत्रों से देवे –
- ॐ अनादिनिधनोदेवः शङ्खचक्रगदाधरः । अक्षय्यः पुण्डरीकाक्षः प्रेतमोक्षप्रदो भव ॥१॥
- अतसीपुष्प संकाशं पीतवाससमच्युतम् । ये नमस्यन्ति गोविन्दं न तेषां विद्यते भयम् ॥२॥
- कृष्ण कृष्ण कृपालुस्त्वमगतीनां गतिर्भव । संसारार्णवमग्नानां प्रसीद पुरुषोत्तम ॥३॥
- नारायण सुरश्रेष्ठ लक्ष्मीकान्तवरप्रद । अनेन तर्पणेनाथ प्रेतमोक्षप्रदो भव ॥४॥
- हिरण्यगर्भपुरुष व्यक्ताव्यक्तस्वरूपधृद् । अस्य प्रेतस्य मोक्षार्थं सुप्रीतो भव सर्वदा ॥५॥
एकादश दान
हिरण्यं रजतं वस्त्रं गुडाज्ये लवणं तथा। लौहदंडः तिला धान्यं महिषी चामरं तथा ॥ अभाव में द्रव्य अर्पित करे : एकादशदान प्रत्यम्नायभूतं (मनसोद्दिष्टं) इदं द्रव्यं ॐ भूर्भुवः स्वः विष्णवादि विष्णुपर्यन्तेभ्यः स्वाहा ॥
करबद्ध होकर पढ़े : तीर्थ विष्णोः प्रसादादेकादशश्राद्धानां परिपूर्णताऽस्तु। एभिः एकादशश्राद्धैः अमुक गोत्रस्या अमुक प्रेतस्य (गोत्रायाः प्रेतायाः वा) असद्गतिविनाशपूर्वक – सद्गतिप्राप्तिश्च भवतु ॥
विसर्जन
- विनम्रभाव से पिण्डों को सूंघकर दोनों हाथों से थोड़ा उठाकर फिर रख दे ।
- पिण्डतलस्थ कुशों और अंगारभ्रमण वाली अंगार को आग में दे दे ।
- सव्य होकर देवार्घपात्रों का पूर्वाग्र हिला दे ।
- पुनः अप० दक्षि० होकर प्रेत के अधोमुखी अर्घ्यपात्र को उत्तान कर दे ।
पिण्डों का विसर्जन – ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भ्रदं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा ᳪ सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः ॥ और पिण्डों को किसी पात्र में उठाकर रख दे।
फिर ग्यारह जगह कच्चा अन्न या उसका मूल्य रख और – ॐ अद्यैतानि एकादशामान्नानि तन्मूल्यं वा ब्राह्मणेभ्यः सम्प्रददे ॥ ॐ तत्सत् ॥
तीन बार गायत्री मंत्र जप करे। तीन बार देवताभ्यः मंत्र पढ़े : ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः ॥३॥ स.पू.त्रि.
विष्णुस्मरण : ॐ यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु। न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ॥ प्रमादात्कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत्। स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णं स्यादितिश्रुतिः ॥ ॐ विष्णुर्विष्णुर्हरिर्हरिः हाथ-पैर धोकर पुनः पञ्चश्राद्ध करे।