यहां शुक्ल यजुर्वेदोक्त नारायण सूक्त दिया गया है। वैसे एक अन्य सूक्त भी नारायण सूक्त नाम से देखने को मिलता है। शुक्ल यजुर्वेद में ही पुरुषसूक्त के बाद वाले 6 ऋचायें ही नारायण सूक्त कही जाती है।
नारायण सूक्त अर्थ सहित
नारायण सूक्त पंचसूक्तों में से एक होने के कारण महत्वपूर्ण सूक्त है। यह शुक्ल यजुर्वेद में पुरुष सूक्त के बाद का भाग है जिसमें कुल ६ ऋचायें हैं।
- नारायण सूक्त में ब्रह्मज्ञान विषयक गूढ़ार्थ सन्निहित है।
- इसे पुरुष सूक्त का परभाग भी कहा जा सकता है।
- यह ब्रह्म ज्ञान के महत्व को भी बताता है।
- देवता ब्रह्मज्ञानियों के वश में होते हैं इसमें ऐसा भी बताया गया है।
- इसमें परमात्मा के विषय में यह बताया गया है की वह सर्वव्यापी तो है ही अर्थात उसे बाहर भी देखा जा सकता है किन्तु वह सबके भीतर भी है और उसे भीतर भी पाया या जाना जा सकता है।
- इसमें यह भी बताया गया है कि परमात्मा को जाने बिना कल्याण अर्थात मोक्ष का कोई अन्य उपाय नहीं है।

नारायण सूक्त मंत्र
ॐ अद्भ्यः सम्भृतः पृथिव्यै रसाच्च विश्वकर्मणः समवर्तताग्रे ।
तस्य त्वष्टा विदधद्रूपमेति तन्मर्त्यस्य देवत्वमाजानमग्रे ॥१॥
वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात् ।
तमेव विदित्वाति मृत्युमत्येति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय ॥२॥
प्रजापतिश्चरति गर्भे ऽअन्तरजायमानो बहुधा विजायते ।
तस्य योनिम् परिपश्यन्ति धीरास्तस्मिन् ह तस्थुर्भुवनानि विश्वा ॥३॥
यो देवेभ्य ऽआतपति यो देवानां पुरोहितः ।
पूर्वो यो देवेभ्यो जातो नमो रुचाय ब्राह्मये ॥४॥
रुचं ब्राह्मं जनयन्तो देवा ऽअग्रे तदब्रुवन् ।
यस्त्वैवं ब्राह्मणो विद्यात्तस्य देवा ऽअसन् वशे ॥५॥
श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम् ।
इष्णन्निषाणामुं म ऽइषाण । सर्वलोकं म ऽइषाण ॥६॥
॥ ॐ नमो नारायणाय ॥ ॐ नमो नारायणाय ॥ ॐ नमो नारायणाय ॥ ॐ नमो नारायणाय ॥ ॐ नमो नारायणाय ॥ ॐ नमो नारायणाय ॥ ॐ नमो नारायणाय ॥ ॐ नमो नारायणाय ॥
नारायण सूक्त का अर्थ :
- पृथ्वी आदि की सृष्टि के लिये अपने प्रेमवश वह पुरुष जल आदि से परिपूर्ण होकर पूर्व ही छा गया। उस पुरुष (परमात्मा) के रूप को धारण करता हुआ सूर्य उदित होता है, जिसका मनुष्य के लिये प्रधान देवत्व है। – १
- मैं अज्ञानान्धकार से परे आदित्यप्रतीकात्मक उस सर्वोत्कृष्ट पुरुष को जानता हूँ। मात्र उसे जानकर ही मृत्यु का अतिक्रमण होता है, अर्थात मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है । कल्याण के लिये उसकी (परमात्मा की) शरणागति के लिये अन्य कोई मार्ग नहीं। – २
- वह सर्वव्यापी परमात्मा आभ्यन्तर में भी विराजमान है। उत्पन्न न होनेवाला होकर भी नाना प्रकार से उत्पन्न होता है। संयमी पुरुष ही उसके स्वरूप का साक्षात्कार करते हैं। सम्पूर्ण भूत उसी में सन्निविष्ट हैं। – ३
- जो देवताओं के लिये सूर्य रूप से प्रकाशित होता है, जो देवताओं का कार्य साधन करने वाला है और जो देवताओं से पूर्व स्वयं भूत है, उस देदीप्यमान ब्रह्म को नमस्कार है। – ४

- उस शोभन ब्रह्म को प्रथम प्रकट करते हुए देवता बोले, “जो ब्राह्मण तुम्हें इस स्वरूप में जाने, देवता उसके वश में हों”। अर्थात जो ब्रह्म को जानने वाला ब्राह्मण होगा देवता उसके वश में रहेंगे। – ५
- समृद्धि और सौन्दर्य तुम्हारी पत्नी के रूप में हैं, दिन तथा रात तुम्हारे अगल-बगल हैं, अनन्त नक्षत्र तुम्हारे रूप हैं, द्यावा-पृथ्वी तुम्हारे मुख स्थानीय हैं। इच्छा करते समय परलोक की इच्छा करो। मैं सर्वलोकात्मक हो जाऊँ-ऐसी इच्छा करो, ऐसी इच्छा करो। – ६
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।