देश का विकास और शांति के लिये चाहिये एक नया कानून – जैसे को तैसा …

देश को विकास के पथ पर आगे बढने और शांति स्थापन हेतु निरंतर प्रयास होते ही रहते हैं। लेकिन एक विषय पर संभवतः विचार ही नहीं किया जाता “सख्ती की मात्रा” । किस व्यक्ति या वर्ग का व्यवहार और प्रवृत्ति क्या है और उसके अनुसार कितनी सख्ती की आवश्यकता है; जब तक इसका निर्णय नहीं कर लिया जाय तब तक उचित सख्ती न कर पाने के कारण शान्ति-व्यवस्था और उचित न्याय होना सम्भव नहीं हो सकता।

देश का विकास और शांति के लिये चाहिये एक नया कानून – जैसे को तैसा … tit for tat

वास्तविक न्याय भी उसी को कहा जा सकता है जिसका मूल सिद्धांत “जैसे को तैसा” हो। न्याय तंत्र का ध्येय ये होना कि अपराध होने के बाद ही हम सक्रिय होंगे लेकिन अपराध रोकने के लिये हम सक्रिय नहीं हो सकते और सरकार/प्रशासन/समाज सबके हाथ भी बांध देंगे ताकि अपराध हो जिससे हमारा (न्याय तंत्र) औचित्य, प्रभाव, शक्ति बढ़ता जाये उचित नहीं है।

न्याय तंत्र का अनुचित शक्तिवृद्धि करना अन्यायपूर्ण है :

न्याय तंत्र ने अपनी शक्ति में इतनी वृद्धि कर लिया है कि समाज और परिवार पंगु हो गया है। किसी भी तंत्र की शक्ति में वृद्धि का अर्थ यही होता है कि अन्य तंत्रों की शक्ति का हरण किया गया है। न्याय तंत्र की शक्ति में वृद्धि से ये तो स्पष्ट दिखता है कि कार्यपालिका और विधायिका इन दोनों की शक्तियों का न्यायपालिका हरण/अपहरण कर रही है लेकिन परिवार और समाज की शक्तियां तो 3 चौथाई तक छीन लिया है।

परिवार और समाज की शक्ति का अपहरण मात्र न्यायपालिका ने किया है ये कहना भी सही नहीं होगा राज्य ने किया है ये कथन सही होगा। लेकिन ये अलग विषय है जिसपर अधिक चर्चा करना विषयांतर होना सिद्ध होगा। राज्य विषयक चर्चा अलग से करने की आवश्यकता है और यहां इस बिंदु को उठाने का उद्देश्य राज्य की इच्छा को समझना है। भले ही सभी कानूनों में अपराध नियंत्रण के लिये कारण बताया गया हो लेकिन अपराध नियंत्रण की दिशा में राज्य आगे बढ़ना ही नहीं चाहता।

चर्चा का विषय है अपराध नियंत्रण का उपाय जिसके लिये एक ही सिद्धांत प्रभावी रूप से कार्य कर सकता है – “जैसे को तैसा”

सनातन विरोधी तत्वों का राज्य संचालन में उपस्थिति भले ही मूल कारण न माना जाय लेकिन मुख्य कारण तो अवश्य है। कारण कुछ भी हो लेकिन भारत में सेकुलरिज्म का जो रूप दिखा वो यही था कि सनातन संस्कृति जो कि भारत की संस्कृति है; को जितना अधिक क्षति पहुंचाया जा सके और अन्य सनातन विरोधी पंथों का जितना संरक्षण-संवर्द्धन संभव हो किया जाय। और ये अवधारणा “जैसे को तैसा” सिद्धांत का सबसे बड़ा बाधक है।

इस विषय में घिनौनी मीडिया की चर्चा न ही की जाय तो अच्छा रहेगा, आज वो वर्ग बचाव के लिये ही सही स्वयं इस सत्य को स्वीकार करने लगा है कि वो सनातन विरोधी कार्य कर रहा था और कर रहा है।

जैसे को तैसा
जैसे को तैसा

इस विषय में फिल्म जगत (धारावाहिक सहित) ने तो सबसे बड़ी भूमिका निभाई है।

  • 99.99% फिल्मों में एक ही चीज दिखाई जाती रही है सनातन में केवल कुरीतियां हैं, और इस्लाम-ईसाइयत में बहुत अच्छाईयां हैं,
  • पंडित-साधु सभी पाखण्डी होते है और उनका अपमान जितना किया जा सकता था किया, मौलाना-फादर सम्माननीय होते हैं,
  • सनातन शास्त्रों को आग लगा देना चाहिये, कुरान-बाइबल पढ़ना चाहिये,
  • माता-पिता-परिवार-समाज शत्रु होता है, बच्चों को इनका विरोध और अपमान करके प्रेम-विवाह करना चाहिये, बच्चों के मन में आधुनिक सोच के नाम पर इस तरह के जहर बोये गये,
  • सनातन संस्कृति की जहां कहीं चर्चा हुयी तो बीसवीं सदी और इक्कीसवीं सदी के नाम पर उसका तिरस्कार करना सिखाया गया। कितना कहा जाय, जितना कहें कम ही होगा।

एक और बड़ी बाधा है मात्र लाभ या स्वार्थ सिद्धि के लिये सभी कार्य करना। ये भी स्वतंत्र विषय है जिसपर विचार करना आवश्यक है। उपरोक्त सभी तत्वों जिसकी मुख्य भूमिका रही है उनका स्वार्थ, लाभ प्राप्त करने की इच्छा भी सही दिशा में आगे बढ़ने से रोकने और गलत दिशा में आगे बढ़ने का मुख्य कारण रहा है। यदि हमारे लेख का उद्देश्य किसी प्रकार का लाभ प्राप्त करना या स्वार्थ सिद्धि करना हो तो लेख को उन तत्वों के अनुकूल होना पड़ेगा जिनसे हमें लाभ प्राप्त हो या स्वार्थ सिद्धि हो।

हम कोई भी कार्य कर रहे हों हमारा पहला दायित्व संस्कृति और राष्ट्र हित होना चाहिये, दूसरा दायित्व उस कार्य के प्रति न्याय होना चाहिये स्वार्थ सिद्धि नहीं, आर्थिक लाभ या पद-प्रभुत्व की प्राप्ति नहीं।

संस्कृति और राष्ट्र हित
संस्कृति और राष्ट्र हित

वर्त्तमान भारत में भारत की मूल भाषा संस्कृत से अधिक महत्व अंग्रेजी और उर्दू आदि का क्यों है ? ये एक यक्ष प्रश्न है और राष्ट्र विरोधी, संस्कृति विरोधी कार्य देश में किया गया है इसका प्रमाण है।

जैसे को तैसा सिद्धांत – tit for tat rule

जैसे को तैसा सिद्धांत का आधार : इस सिद्धांत का आधार है व्यक्ति, परिवार, समुदाय जिसका जो व्यवहार हो उसके साथ राज्य (कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका तीनों) उसी के सापेक्ष व्यवहार करे।

जैसे को तैसा सिद्धांत के उद्देश्य : इस सिद्धांत का का उद्देश्य अपराध होने के बाद की सक्रियता नहीं होकर अपराध न हो या न्यूनतम हो यह होना चाहिये।

इस उद्देश्य से न्यायपालिका के औचित्य का ह्रास हो सकता है क्योंकि न्यायपालिका का औचित्य तो अपराध के बाद ही होता है और यदि अपराध ही कम होने लगे तो निश्चित रूप से न्यायपालिका का औचित्य भी कम होगा। लेकिन न्यायपलिका का औचित्य बढे; बढ़ता रहे इसलिये अपराध भी बढ़ना आवश्यक है; न्यायपालिका का औचित्य कम हो जायेगा इसलिये अपराध में कमी न हो यह सिद्धांत कदापि सही नहीं माना जा सकता।

जैसे को तैसा सिद्धांत की स्थापना : इस सिद्धांत को स्थापित करने के लिये एक और चतुर्थ स्वतंत्र स्तम्भ विकसित किया जाना चाहिये। मीडिया पांचवां स्तम्भ होना चाहिये चौथा नहीं।

यदि ऐसा चतुर्थ स्तम्भ अस्तित्व में होता तो आज ७ दशक बाद भी पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र के पर्व चुनाव तक में हिंसा नहीं होती। मनु-स्मृति जलाये न जाते, देशविरोधी नारे नहीं लगते, दस कोड़ वाले अस्सी कोड़ वाले को धमकी नहीं दिया करते , सर तन से जुदा के नारे नहीं लगते, शोभायात्राओं पर पत्थरबाजी नहीं होती, साधुओं को चोर कहके पीटा नहीं जाता, कुछ उपद्रवी तत्व सड़कों पर आकर कानून वापस करने के लिये सरकार को बाध्य नहीं कर सकते इत्यादि-इत्यादि बहुत सारी बातें हैं।

जैसे को तैसा सिद्धांत क्रियान्वयन : इस सिद्धांत के क्रियान्वयन हेतु विस्तृत विधान की आवश्यकता होगी। चतुर्थ स्तम्भ के लिये निजता का नियम भी उतना ही बाधक हो सकता है जितना वास्तविक निजता अनिवार्य है, बाद बाकि संदिग्ध के संबंध में निजता का कोई नियम चतुर्थ स्तम्भ के लिये अवरोधक नहीं हो सकता।

चतुर्थ स्तम्भ के कार्यक्षेत्र में व्यक्ति, समुदाय, संगठन, संस्था, मीडिया, चुनाव आयोग, सरकार के तीनों अंग सभी को रखना होगा। कोई मंत्री यदि संदिग्ध है तो वह भी, कोई न्यायाधीश यदि संदिग्ध निर्णय लेते दिखें तो वो भी निगरानी के पात्र हों यह सुनिश्चित करना होगा। ये अलग बात है कि चतुर्थ स्तम्भ के पास किसी को पदमुक्त करने का अधिकार नहीं होगा किन्तु स्वतः संज्ञान पूर्वक निगरानी के साथ अन्वेषण पूर्वक संदिग्धों की गतिविधि सम्बन्धी सूचना प्राधिकृत संस्था/समिति को प्रेषित करने का अधिकार होगा।

राज्यों के चुनाव सम्बन्धी नियमों में भी कुछ सुधार की आवश्यकता होगी और किसी राज्य के चुनाव में यदि हिंसा हो जैसे पश्चिम बंगाल में लगातार देखा जा रहा है तो उसके लिये भी जांच का अधिकार होगा और यदि जितने वाली पार्टी के द्वारा हिंसा किया गया हो तो उस सरकार को निरस्त कर राष्ट्रपति शासन (पूरे चुनावी सत्र के लिये) की अनुशंसा करने का भी अधिकार हो।

मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग आदि भी उस चतुर्थ स्तम्भ के कार्यों के अड़ंगा नहीं अड़ा सके इतना अधिकार देना होगा। मानवाधिकार आयोग को सामान्य नागरिकों के लिये कभी सक्रिय होते नहीं पाया जाता है, इनको अधिकतर आतंकवादियों, उपद्रवी तत्वों और उनके समर्थकों आदि के लिये ही अधिकतर सक्रिय देखा जाता है और इनकी भूमिका ही वर्त्तमान में संदिग्ध प्रतीत होती है।

चतुर्थ स्तम्भ के पास जैसे को तैसा सिद्धांत क्रियान्वित करने के लिये किसके प्रति कितनी सख्ती करने की आवश्यकता है यह निर्धारण करने का अधिकार होगा।

ऐसा देखा जाता है कि अगर किसी ने गलती से चोरी का मोबाईल खरीद लिया तो महीनों तक जेल में रहता है और घोटाले का दोषी जिसको सजा भी मिल गयी हो यदि नेता है तो बाहर घूमता रहता है। ऐसे में चतुर्थ स्तम्भ ये अन्वेषण करेगा कि किसकी गलती से ऐसा हुआ ?

साथ ही सामान्य नागरिकों में भी किसके प्रति कितनी सख्ती करने की आवश्यकता होगी यह भी सुनिश्चित करना होगा। एक सामान्य सभ्य नागरिक के साथ, जो कभी अपने घर में पुलिस को आते देखना नहीं चाहता और यदि आ जाये तो उतने में ही आत्मग्लानि का शिकार बन जाता है अधिक सख्ती दिखती है और उपद्रवी तत्वों के प्रति नरमी दिखती है ये विपरीत व्यवहार समाप्त करने की आवश्यकता है। इसके लिये सभ्य और असभ्य में अंतर करना होगा।

नित्य कर्म पद्धति
देश का विकास और शांति के लिये चाहिये एक नया कानून

राष्ट्रीय स्तर पर असभ्य और अराजक तत्व को सूचीबद्ध करना होगा। असभ्य, उपद्रवी तत्वों को सूचीबद्ध करने के लिये कुछ विशेष मानक बनाया जाना चाहिये; जैसे :

  • पत्थरबाजी कौन करता है ?
  • थाने में आग कौन लगाता है ?
  • संवेदनशील इलाका किसका है ?
  • पुलिस-प्रशासन को धत्ता कौन बताता है ?
  • पुलिस पर बमबारी कौन करता है ?
  • आतंकवादियों का समर्थन कौन करता है ?
  • जमीनों पर अवैध कब्जा किसने कर रखा है ?
  • देश विरोधी तत्वों का समर्थन कौन करता है ?
  • क्या अपराध में किसी विशेष भाषा का भी योगदान है ?
  • कौन-कौन भारत का विभाजन करना चाहता है ?
  • उन सामग्रियों की पहचान करना, जिनको देखकर, पढ़कर, सुनकर या अन्य प्रकार से भी कोई अराजक हो जाता है।

अपराध नियंत्रण के लिये यह व्यावहारिक पक्ष है जिसका तात्पर्य ये है कि स्वभावतः कौन-कौन अपराध करता है, उसको चिह्नित करना और निगरानी में रखना, यदि अपराध कर दे तो तो सामान्य से दोगुनी सख्ती करना आदि और साथ ही उनका राजनीति में, मीडिया में, सोशल मीडिया में … कौन-कौन पोषण करने वाला है उसको पूर्व चिह्नित करके रखना, जब आवश्यक हो नियंत्रण करना।

इसके साथ-साथ दूसरे तरीके से इस शांति-व्यवस्था बनाये रखने सकारात्मक कार्य भी करने की आवश्यकता होगी; जैसे :

  • उन सामग्रियों को चिह्नित करना जो राष्ट्रप्रेम को बढ़ावा देने वाली हो, जो सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करते हों, सृजनात्मक शक्ति का विकास करता हो, मानवीय भाव को जगाता हो, प्रकृति-पर्यावरण का संरक्षण सिखाता हो इत्यादि-इत्यादि।
  • शांति-व्यवस्था बनाये रखने में सहयोग करने वालों को पंचायत स्तर तक सम्मानित करना और शांति-व्यवस्था भंग करने वालों को सभी प्रकार की सरकारी सुविधाओं से वंचित करना।
  • उन पंचायतों, प्रखण्डों आदि को भी प्रोत्साहित करना जहां शांति-व्यवस्था भंग न होती हो।
  • परिवार और समाज को सशक्त करने की दिशा में प्रयास करना।
  • छोटी-से-बड़ी सभी नौकरियों और चुनाव लड़ने के लिये भी देशप्रेम, संस्कृति प्रेम, शांति-प्रियता आदि गुण अनिवार्य करना।

इसके साथ ही शांति-व्यवस्था बनाये रखने के लिये एक आध्यात्मिक पक्ष भी जिसकी चर्चा इस आलेख में सुसंगत नहीं प्रतीत होती है।

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