नित्य कर्म विधि
सारांश : नित्यकर्म दैनिक जीवन के दोषों को मार्जित करने, ऋणों का भुगतान करने और नैमित्तिक व काम्य कर्म का अधिकारी बनने के लिये आवश्यक होता है। ऐसे कर्म, जो शास्त्रोक्त विधि के अनुसार प्रतिदिन नियतकाल में किये जाते हैं, नित्यकर्म कहलाते हैं। ये न केवल सामान्य नित्यकर्म होते हैं, बल्कि मनुष्यत्व के सार्थकता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। नित्यकर्मरहित मनुष्य का विवेक निष्फल होता है एवं ऐसा व्यक्ति पशुतुल्य होता है।

हम अनेकों वाक्यांश सुनते हैं जैसे – नित्य कर्म पूजा पद्धति, नित्य कर्म मंत्र, वैदिक नित्य कर्म विधि इत्यादि सबका वास्तविक तात्पर्य सम्पूर्ण नित्य कर्म विधि होता है, भले ही उसमें केवल कोई एक भाग ही संकलित किया गया हो या केवल कुछ मंत्र ही दिया गया है।
कोई भी पुस्तक सम्पूर्ण नहीं माना जा सकता। ऐसा नहीं कहा जा सकता की किसी पुस्तक में कोई विषय आदि से अंत तक संग्रहित कर लिया गया है। सनातन का न तो आदि है न ही अंत। वेदों-पुराणों के सभी मंत्र संकलित किये जाते हैं उनके भाव को सम्पूर्णतः संकलित नहीं किया जा सकता। यहां पर हम नित्य कर्मों को पांच भागों में विभाजित करते हुये नित्य कर्म की विधि एवं मंत्रों का अवलोकन करेंगे।
- भाग १ – भगवद्स्मरण : इसमें प्रातः काल उठने के बाद के नियम और भगवद्स्मरण के मंत्रों का अवलोकन करेंगे।
- भाग २ – शुद्धिकरण : इसमें शारीरिक शुद्धि को वर्तमान युग के तारतम्यानुसार समझेंगे।
- भाग ३ – पूजन : इसमें संध्या, तर्पण और पंचदेवता पूजा एवं विष्णु पूजन विधि का अवलोकन करेंगे।
- भाग ४ – पञ्चयज्ञ : इसमें पञ्च महायज्ञों या बलिवैश्वदेव कर्म का अवलोकन करेंगे।
- भाग ५ – इस भाग में भोजन, सायं कृत्य, शयन इत्यादि तथ्यों या विधियों को समझेंगे।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।