प्रासाद उत्सर्ग विधि – प्राण प्रतिष्ठा विधि

प्रासाद उत्सर्ग विधि – प्राण प्रतिष्ठा विधि

देवता की प्राण प्रतिष्ठा करने के उपरांत भी दो कर्म शेष होते हैं : प्रासाद उत्सर्ग और नामकरण। वैसे चतुर्थी कर्म का भी विधान पाया जाता है। प्रासाद उत्सर्ग का तात्पर्य होता है निर्मित मंदिर देवता के लिये समर्पित करना। प्रासाद स्नपन विधि पूर्व आलेख में दी जा चुकी है जिसका लिंक नीचे दिया गया है। इस आलेख में प्रासाद उत्सर्ग विधि और मंत्र दिया गया है।

प्रासाद उत्सर्ग पूजन

प्रासाद के ईशानकोण अथवा नैर्ऋत्य कोण में सपत्नीक यजमान सुंदर आसन पर पवित्रीकरणादि करके त्रिकुशा, तिल, जलादि द्रव्य लेकर संकल्प करे :

प्रासाद उत्सर्ग पूजन संकल्प : ॐ अद्य …….. अस्य वास्तोः शुभता सिद्ध्यर्थं ………. देवता प्रतिष्ठाङ्गभूतं वास्तुदेवतास्थापनं पूजनं च करिष्ये ॥

फिर ६४ पद वास्तु वेदी निर्माण करके पूजन, बलि आदि प्रदान करे – वास्तु शांति पूजा विधि

विश्वकर्मप्रकाश, प्रतिष्ठा कौमुदी आदि ग्रंथों में सुवर्ण बलि और ब्रह्मा के लिये गो उत्सर्ग भी बताया गया है किन्तु अन्य ग्रन्थों से यह कृताकृत सिद्ध होता है।

तत्पश्चात् हवनकुंड के ईशान एक कलश स्थापन पूजन करे।फिर गणपत्यादि आहुति देकर वास्तु होम करे।

तत्पश्चात् रक्षोघ्नसूक्त से प्रासाद का त्रिसूत्रीवेष्टन और पवमानसूक्त से जल व दुग्ध की धारा दे।

प्रासादोत्सर्ग
प्रासादोत्सर्ग

तत्पश्चात् वास्तु स्थापन विधि के अनुसार आकाश पद में जानुमात्र गर्त करके वास्तु स्थापन करे – वास्तु शांति पूजा विधि

फिर प्रासाद की प्रार्थना करे :

  1. पूजितोऽसि मया वास्तो होमाद्यैरर्चनैः शुभैः । प्रसीद पाहि विश्वेश देहि प्रासादजं सुखम् ॥१॥
  2. वास्तुपुरुष नमस्तेऽस्तु भूशय्याभिरत प्रभो । मद्गृहे धनधान्यादि समृद्धिं कुरु सर्वदा ॥२॥
  3. यथा मेरुगिरेः शृङ्गं देवानामालयः सदा । तथा ब्रह्मादिदेवानां मम यज्ञे स्थिरो भव ॥३॥
  4. भगवन् देवदेवेश ब्रह्मादिदेवतात्मक । तवार्चनं कृतं वास्तो प्रसादं कुरु मे प्रभो ॥४॥
  5. प्रार्थयामीत्यहं देवं प्रासादस्याधिपस्तु यः । प्रायश्चित्तं तु प्रसङ्गेन प्रासादार्थे तु यत्कृतम् ॥५॥
  6. मूलच्छेदस्तृणच्छेदः कृमिकीटनिपातनम् । हननं जलजीवानां भूमौ शस्त्रेण घातनम् ॥६॥
  7. अनृतं भाषितं यच्च किञ्चिद् वृक्षस्य पातनम् । एतत्सर्वं क्षमस्वैनो यन्मया दुष्कृतं कृतम् ॥७॥
  8. प्रासादार्थे कृतं पापमज्ञानेनाप्यचेतसा । तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रासादं च शुभं कुरु ॥८॥
  9. सशैलसागरां पृथिवीं यथा वहसि मूर्द्धनि । तथा मां वह कल्याणसम्पत्सन्ततिभिः सह ॥९॥

प्रासाद उत्सर्ग विधि

तण्डुलादि चूर्ण से निर्मित अष्टदल पर भद्रासन बिछाकर यजमान सपरिवार बैठे। पूर्वस्थापित सम्पातादि कलश जल से आचार्य अभिषेक करें।

प्रासादोत्सर्ग त्रिकुशा, तिल, (विभिन्न पद्धतियों में तिल के स्थान पर जौ का बताया गया है) जलादि द्रव्य लेकर : ॐ अद्य …….. इमं शिलेष्टकादार्वादि निर्मितं बलभीजगतीप्राकार गोपुरपरिवार देवतालयादि संयुतं तत्‌तत्‌ देवतालोकावाप्ति काम: कुलद्वय अनुग्रहाय …….. देवता प्रीतये अहं उत्सृजामि ॥

प्रासादोत्सर्ग करने के बाद प्रार्थना करे : ॐ सर्वभूतेभ्य उत्सृष्टः प्रसादोयं मायर्जितः। रमन्तु सर्वभूतानि छायासंश्रयणादिभिः॥

प्रासादोत्सर्ग देवता की प्राण प्रतिष्ठा से पहले किया जाता है।

ॐ अद्य ……..
प्रासाद उत्सर्ग विधि

ब्राह्मण भोजन कराकर, सायंपूजा, बलिदान आदि पश्चात्‌ आचार्य एवं यजमान रात्रि में जागरण करें । वेदपठन, पुराणपाठ आदि करते रहें ।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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