अन्य वेदों की तरह सामवेद में भी पुरुष सूक्त है। प्रायः ऐसा देखा जाता है कि सामवेदीय सूक्तों के पाठ क्रम में शुक्ल यजुर्वेदी मात्र ᳪ (ग्गूं) का उच्चारण अनुस्वार कर देते हैं। परन्तु बात इतनी नहीं है; सामवेदीय सूक्तों में अन्य परिवर्तन भी होते हैं जो यहाँ दिये गये सामवेदीय पुरुष सूक्त से स्पष्ट हो जाता है।
पुरुष सूक्तं – सामवेदीय
- सर्वप्रथम तो पुरुष सूक्त ही सभी सूक्तों में विशेष महत्वपूर्ण है।
- उसके बाद बात जब सामवेद की आती है तो भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में स्वयं कहा है – वेदानां सामवेदोऽस्मि।
- अर्थात वेदों में सामवेद की विशेष महत्ता भी है।
- और इस कारण सामवेदीय पुरुषसूक्त की भी विशेष महत्ता हो जाती है।
यहां सामान्य जनों के लाभ हेतु सामवेदोक्त पुरुष सूक्त दिया जा रहा है। यदि आप मात्र शुक्ल यजुर्वेद के पुरुष सूक्त में ᳪ (ग्गूं) का उच्चारण अनुस्वार करके उसे सामवेदीय पुरुष सूक्त समझते हैं तो यह एक त्रुटि है।

सामवेदी
विषय के कारण हमें सामवेदी कौन होते हैं यह भी समझना आवश्यक हो जाता है। सामवेदियों के संबंध में जो श्लोक प्राप्त होता है वह इस प्रकार है :
कश्यपौवत्सशाण्डिल्यो कौशिकश्च धनञ्जयः।
षडेते सामगाः विप्राः शेषा वाजसनेयिनः॥
कश्यप और काश्यप दोनों अलग माना गया है, वत्स, शांडिल्य, कौशिक और धनञ्जय ये छः गोत्र के ब्राह्मण सामवेदी कहे गये हैं। यजमान के लिये उनके पुरोहित का वेद/शाखा आदि ग्राह्य होता है।

कश्यपः काश्यपश्चैव गर्गः शांडिल्य एव च।
चत्वारः सामगा ह्येते शेषा वाजसनेयिनः ॥
:- ब्राह्मणोत्पत्तिमार्तण्ड
कश्यप, काश्यप, गर्ग और शांडिल्य ये चारों सामवेदी हैं।
कश्यपः काश्यपश्चैव गर्गः शांडिल्य एव च।
पञ्चमश्च धनञ्जयः शेषा वाजसनेयिनः॥
पाठभेद से।
पाठ भेद उपलब्ध होने से इसमें धनञ्जय भी गिने जाते हैं।