राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में एक नया विवाद सामने आ गया है। मूल कारण तो हमें ज्ञात नहीं परन्तु पूरी के शंकराचार्य का उपस्थिति में राजनीतिक दृष्टिकोण से अनपेक्षित एक विडिओ सामने आया है, जिसमें वो स्पष्ट कहते दिख रहे हैं की वहां जाकर क्या करूँगा या इसी प्रकार का भाव प्रकट होता है।
- इस विषय में शास्त्र सम्मत चर्चा अपेक्षित है कि शंकराचार्य को निमंत्रण देना सही है या गलत ।
- निमंत्रण देने की विधि सही अथवा गलत है।
- शंकराचार्य को दर्शकदीर्घा के लिये आमंत्रित करना चाहिये या किसी अन्य कार्य के लिये।
हम वास्तविक त्रुटि को इस लेख में समझने का प्रयास करेंगे जिसका आधार शास्त्रों के प्रमाण होंगे कुतर्क नहीं। हो सकता है की राजनीतिक प्रभाववश कुछ धार्मिक विषयों को अपेक्षित मान लिया गया हो।
- राम मंदिर बनने की राह के रोड़े हटाने में RSS और भारतीय जनता पार्टी का महत्वपूर्ण योगदान है जिसे युगों-युगों तक याद रखा जायेगा।
- क्योंकि RSS को धर्मशास्त्रों में सब कुछ प्रक्षेपित ही लगता है।
- राजनितिक कारणों से ही सही कई बार RSS के वक्तव्य भी धमशास्त्रों के विरुद्ध आते रहते हैं।
- राजनीतिक कारण जो भी हो शंकराचार्य पद की गरिमा का हनन नहीं होना चाहिये।
- राम मंदिर बनने की राह में निश्चित रूप से राजनितिक योगदान रहा है और इसे कोई अस्वीकार नहीं कर सकता।
- लेकिन ये विचार करने की बात है कि क्या राजनीतिवश धार्मिक मूल्यों का क्षरण किया जा सकता है।
राम लला की प्राण प्रतिष्ठा
500 वर्षों बाद अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण होने का निःसंदेह एक राजनीतिक पक्ष भी है और वही मुख्य है, लेकिन राम लला की प्राण प्रतिष्ठा का राजनीतिक पक्ष हो भी सकता है किन्तु वह मुख्य नहीं हो सकता।
राम लला की प्राण प्रतिष्ठा का मुख्य पक्ष धर्म-कर्मकांड है और इस विषय में सबको चाहे वह श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट हो, भाजपा हो, सरकार हो या जो कोई भी हो सबको शास्त्रीय मर्यादा, नियम के अनुसार चलना मात्र आवश्यक नहीं अनिवार्य है।

विश्वव्यापी विषय होना, राजनितिक पक्ष होना यह सिद्ध नहीं करता कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के प्राण-प्रतिष्ठा में शास्त्रीय मर्यादाओ/नियमों का महत्व कम है और राजनीतिक व्यवहार का महत्व अधिक। यदि ऐसा किया जाये तो वह अनुचित होगा। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा में धार्मिक नियम/शास्त्र प्रमाण ही मुख्य पक्ष होना चाहिये।
अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा – शंकराचार्य को आमंत्रण
स्पष्ट शब्दों में कहा जाय तो शंकराचार्यों को दर्शकदीर्घा हेतु आमंत्रित करना अनुचित है। शास्त्रों में पर्षद (परिषद्) की व्यवस्था की गई है। पर्षद का तात्पर्य विद्वान ब्राह्मणों का समूह होता है जिन्हें शास्त्रों का विशेष ज्ञान हो और निर्णय करने में समर्थ हों। प्रायश्चित्त का निर्णय और आज्ञा पर्षद द्वारा ही होना चाहिये।
पर्षद (परिषद) व्यवस्था – शातातप स्मृति से :
पर्षद : धर्म से सम्बंधित किसी भी प्रकार के निर्णय करने हेतु शास्त्रों में पर्षद (परिषद्) की चर्चा की गई है। कोई विशेष यज्ञ-प्राण प्रतिष्ठा आदि कर्म हों तो उसे करने के लिये प्रायश्चित्तपूर्वक कर्माधिकार प्राप्त करना होता है। प्रायश्चित्त निर्देश और कर्माधिकार सिद्धि पर्षद में समाहित होती है।
सचैलं वाग्यतः स्नात्वा क्लिन्नवासासमाहितः।
क्षत्रियो वापि वैश्यो वा पर्षदं ह्युपतिष्ठति ॥ – अङ्गिरा
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