रामार्चा पूजा विधि – संपूर्ण विधि

रामार्चा पूजा विधि – संपूर्ण विधि

प्रधान पूजा विशेष रूप से की जाती है। रामार्चा बहुत विस्तृत पूजन है एवं कई भागों में है अतः भगवान राम की जितनी विस्तृत पूजा कर सकें करें, अन्य देवताओं की पंचोपचार पूजा ही करें। अन्य सभी देवताओं की षोडशोपचार पूजा करने से समय व्यतीत हो जाता है एवं भगवान राम की जो विशेष पूजा-कथा होनी चाहिये उसमें समयाभाव हो जाता है, हवन के लिये भी समयाभाव हो जाता है जबकि हवन के लिये कदापि समयाभाव नहीं होना चाहये। हवन विधि पूर्वक ही करना चाहिये क्योंकि हवन में प्रत्यक्षतः भगवान को भोजन समर्पित किया जाता है। किसी भी कर्म का वास्तविक मुख्य अंग हवन ही होता है जिसे समझने में लोग भूल करते हैं।

संकल्प मंत्र : त्रिकुशा-तिल-जल-पुष्प-चंदन-पान-सुपारी-तुलसी-द्रव्यादि लेकर संकल्प करे –

आचार्य संबंधी विशेष नियम – निकटवर्ती विद्वान ब्राह्मण को छोड़कर दूरस्थ सामान्य ब्राह्मण को ग्रहण करने में अतिक्रमण नामक दोष कहा गया है। विशेष विद्वान ब्राह्मण को आमंत्रित करने में अतिक्रमण दोष नहीं होता। एक अन्य विषय ब्राह्मणकर्म हेतु ब्राह्मण का ही वरण किया जाना चाहिये शास्त्रानुसार ब्राह्मणातिरिक्त के पास कर्मकांड संपादन के योग्य नहीं होते है।

स्वयं भगवान राम ने रावण जैसे ब्राह्मण को भी आचार्य स्वीकार किया, कभी ब्राह्मण की अवज्ञा नहीं किये फिर वही भगवान श्रीराम अपनी विशेष अर्चना में विद्वान ब्राह्मण की अवज्ञा को क्या स्वीकार कर सकते हैं। और यदि करते हैं तो शास्त्रों के बहुत सारे वचन मिथ्या हो जायेंगे।

श्रीरामार्चा में मात्र तिलक प्रकार, तुलसी की कंठी धारण के आधार पर आचार्य ग्रहण करने परम्परा प्रयुक्त होती दिखती है विद्वता के आधार पर नहीं। यहां पर यह प्रश्न अनुत्तर ही रहेगा फिर स्वयं श्रीराम ने रावण को क्यों आचार्य बनाया ? क्या रावण तुलसी कंठी धारण करने वाला ब्राह्मण था ? क्या रावण उर्ध्वपुण्ड्री था ? या रावण विद्वान था ?

ब्राह्मण वरण के पश्चात् कलश स्थापन पूजन करें।

कलश पूजनोपरांत अन्य चार कलशों पर पूर्वादि क्रम से 1. इंद्र – ॐ इन्द्राय नमः। 2. ब्रह्मा – ॐ ब्रह्मणे नमः। 3. विष्णु – ॐ विष्णवे नमः। 4. रूद्र – ॐ रुद्राय नमः। पूजा करें।

पुनः उसी क्रम से चारों कलशों पर वेदों की पूजा करें 1. ऋग्वेद – ॐ ऋग्वेदाय नमः। 2. यजुर्वेद – ॐ यजुर्वेदाय नमः। 3. सामवेद – ॐ सामवेदाय नमः। 4. अथर्ववेद – ॐ अथर्ववेदाय नमः।

यदि चार द्वार बनाये गये हों तो सभी द्वारों पर दोनों और कलश स्थापित करके उन आठों कलशों की भी यज्ञविधि से पूजा करें। तत्पश्चात यदि वास्तुवेदी बनायें तो वास्तु पूजन करके आवरण पूजा करें। यदि वास्तु पूजा न कर रहे हों तो आवरण पूजा आरंभ करें। आवरण पूजा में सबकी विशेष पूजा अनिवार्य नहीं होती पंचोपचार पूजा की जा सकती है। विशेष पूजा भगवान राम की होनी चाहिये और हवन में विधिलोप नहीं करना चाहिये।

तत्पश्चात वास्तु मंडल पूजन करें।

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