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संकष्टहर या संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि – sankashti ganesh chaturthi

संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि - sankashti ganesh chaturthi

माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेशावतार हुआ था और इस दिन भगवान गणेश का चर्तुर्थी व्रत सभी संकटों को हरण करने वाला होता है इसी कारण इसे संकष्टहर गणेश चतुर्थी व्रत अथवा संकटहर गणेश चतुर्थी या संकष्टी चतुर्थी व्रत भी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश का व्रत करके विशेष विधि से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है एवं इसका विशेष माहात्म्य भी बताया गया है। यहां संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि और कथा दी गयी है।

संकष्टहर या संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि – sankashti ganesh chaturthi

भगवान गणपति प्रथम पूज्य हैं और इनके अवतरण की भी अनेकों कथायें हैं। एक कथा के अनुसार भाद्र शुक्ल चतुर्थी को भगवान गणपति अवतरित हुये थे तो दूसरी कथा के अनुसार माघ कृष्ण चतुर्थी को अवतरित हुये थे। माघ कृष्ण चतुर्थी के दिन भी गणेश जन्मोत्सव होता है। सर्वदेवमयः साक्षात् सर्वमङ्गलकारकः । माघकृष्णचतुर्थ्यां तु प्रादुर्भूतो गणाधिपः ॥ – शिवधर्म

इस चतुर्थी को संकष्टहरण चतुर्थी कहा जाता है, जो मौखिक रूप से संकटहरण के रूप में या संकष्टी चतुर्थी के रूप में सुना जाता है। माघ कृष्ण चतुर्थी को व्रतपूर्वक भगवान गणपति की पूजा-कथा से संकटों का निवारण होता है, इसी कारण इसे संकष्टहरण चतुर्थी कहा जाता है। यहां सर्वप्रथम संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि और मंत्र दी गयी है तत्पश्चात संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा एवं अंत में विसर्जनादि उत्तरक्रिया।

संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत पूजा विधि और मंत्र

व्रत के दिन नित्यकर्मादि करके प्रदोषकाल में भगवान गणपति की पूजा करे। संकष्टी चतुर्थी में कर्मकाल प्रदोष काल ही सिद्ध होता है – “गणेशं पूजयित्वा तु चन्द्रायार्घश्च दीयते” अर्थात गणपति की पूजा करके चंद्र को अर्घ्य दे। इस प्रकार प्रदोष काल में संकष्टी व्रत की पूजा-कथा करे। पूजा हेतु भगवान गणपति की स्वर्ण-प्रतिमा अथवा असमर्थ होने पर मृण्मयी प्रतिमा स्थापित करे।

पूजा-कथा हेतु विद्वान ब्राह्मण को आमंत्रित करे। पूजा सामग्री व्यवस्थित करके पूजा आरम्भ करे। सर्वप्रथम पवित्रीकरण, दिग्बंधन, स्वस्तिवाचन आदि करे और तत्पश्चात संकल्प करे।

पवित्रीकरण मंत्र : ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याऽभंतर: शुचि:  ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु  हाथ में गंगाजल/जल लेकर इस मंत्र से शरीर और सभी वस्तुओं  पर छिड़के ।

आचमन मंत्र : तीन बार आचमन करे – ॐ केशवाय नमः॥ ॐ माधवाय नमः॥ ॐ नारायणाय नमः॥ आचमन करके अंगुष्ठमूल से ओष्ठ को पोंछे ले और फिर हस्तप्रक्षालन (बांयी ओर) करे – ॐ हृषिकेशाय नमः॥ (२ बार)

आसन पवित्रीकरण मंत्र : ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुनाधृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ इस मंत्र से आसन पर जल छिड़क कर आसनशुद्धि करें।

दिग्बंधन मंत्र : ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिताः । ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया । अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतोदिशम्। सर्वेषामविरोधेन पूजाकर्म समारभे ॥

पूजा में अधिक विस्तृत प्रयोग हेतु सम्बंधित विषयों के लिंक संलग्न किये गये हैं। आगे संकल्प करने के लिये त्रिकुशा-तिल-जल-गंधपुष्पाक्षत-द्रव्यादि लेकर संकल्प करे :

संकल्प मंत्र : ॐ अद्य …….. माघे मासि कृष्णे पक्षे चतुर्थान्तिथौ ………. गोत्रस्य मम ……….. शर्मणः (वर्मणादि यथोचित) सर्वसङ्कष्ट निवारणपूर्वक दीर्घायुष्ट्वबलपुष्टिनैरुज्य प्राप्तिकामनया श्रीसङ्कष्टहर गणेशपूजनं तत्कथा श्रवणं चाहं करिष्ये ॥

संकल्प के पश्चात् कलश स्थापन-पूजन करना हो तो करके नवग्रह-दशदिक्पाल की भी तंत्र से पूजा कर ले। तत्पश्चात भगवान गणेश का आवाहन-पूजन करे :

गणपति की पूजा के लिये किसी वेदी बनाकर उस पर गन्धादि से अष्टदल निर्माण करके भगवान गणेश की जो भी प्रतिमा हो स्थापित करे। सर्वप्रथम पुष्प-दूर्वा लेकर ध्यान करे :

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