राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में पुरी शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती को क्या दर्द है

राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में पुरी शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती को क्या दर्द है

राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में विरोधियों को बड़ा अच्छा प्रश्रय मिल रहा है और वह है शंकराचार्यों के वक्तव्य। लेकिन शंकराचार्यों के वक्तव्य में कुछ प्रच्छन्न पीड़ा भी है जो पूर्व से है। जहां तक प्राण प्रतिष्ठा संबंधी विहित-निषिद्ध, उचित-अनुचित आदि वाली बातें हैं उसके लिये शंकराचार्य का कोई दायित्व ही नहीं है यदि उपस्थित न हों ।

पूर्व लेख में जिस पर्षद की चर्चा हुई थी वो भी समाप्त ही है क्योंकि मोदी कहीं और से आज्ञा लेकर कर्मारंभ भी कर चुके हैं। अन्य व्रती के लिये शंकराचार्य का पर्षद बने यह अनपेक्षित हो जायेगा, प्रदानमंत्री के लिये शंकराचार्यों का ही पर्षद होना चाहिये था यदि शंकराचार्यों की स्वीकृति रहती तो।

वैसे भी शंकराचार्य ज्ञान पक्ष में होते हैं। कर्मकांड में शंकराचार्य की भूमिका नगण्य होती है अथवा बिल्कुल ही नहीं होती।

लेकिन इस भ्रम को भी दूर करना आवश्यक हो जाता है कि शंकराचार्य ज्ञानमार्गी थे। यदि देव्यपराधक्षमापन स्तोत्र शंकराचार्य की कृति न हो तो यह माना जा सकता है। क्योंकि ज्ञानमार्गी शंकराचार्य को अपने अपराध का ज्ञान जब हुआ था तब उन्होंने भक्ति अपनाया और क्षमायाचना करते हुये लिखा – कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥

शंकराचार्य ज्ञानमार्गी थे, लेकिन अंत में भक्तिमार्गी हो गये और इसी का प्रमाण है – देव्यपराधक्षमापन स्तोत्र

राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में पुरी शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती को क्या दर्द है ?

इस विषय को भली-भांति समझने के लिये एक घटना को उद्धृत करना अपेक्षित है :

लगभग १०-१२ वर्ष पूर्व एक व्यक्ति के यहां एक वाहन आया जिसके ऊपर शंकराचार्य का बोर्ड लगा हुआ था। उस व्यक्ति ने मुझे भी बुलाया था इसलिये उस घटना का ६ सदस्य ही वर्णन कर सकते हैं – पहला आयोजक, दूसरा आमंत्रित (स्वघोषित शंकराचार्य), तीसरा-चौथ उनके साथ आये हुए दो अकर्मकांडी (घोषित पंडित), पांचवां मैं और छठा आयोजक के चाचा ।

ज्ञात हुआ कि किसी शक्तिपीठ के प्रमुख हैं और ऐसे सैंकड़ों स्वघोषित शंकराचार्य हैं । पूजन आरंभ होते ही समझ में यह आ गया कि दोनों पंडित में से कोई भी कर्मकाण्डी नहीं है और वहां रहना मुझे अनुचित लगा इसलिये मैं निकल गया।

पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती पहले से जो बिंदू उठा रहे हैं वो यही है स्वघोषित शंकराचार्यों की भरमार लेकिन पूर्ण रूप से यह भी नहीं है क्योंकि वो किसी एक की चर्चा करते हैं सबकी नहीं।

शंकराचार्य
शंकराचार्य

शंकराचार्य पद है और इसकी संख्या चार है पांचवां शंकराचार्य कोई नहीं हो सकता। यह शंकराचार्य परम्परा का नियम है और जो कोई भी पांचवां स्वयं को शंकराचार्य बता रहा है वह इस परम्परा पर आघात कर रहा है। साथ ही अभी चार में से चौथे (शं० अविमुक्तेश्वरानंद) पर भी प्रश्नचिह्न है, उनके वक्तव्यों, भाषाशैली, इंटरव्यू आदि से लगता है कि कांग्रेस द्वारा प्रक्षिप्त हैं । और प्रश्न केवल एक (स्वामी अधोक्षजानंद जो कि कांग्रेस द्वारा ही प्रक्षिप्त हैं) को लेकर हो तो स्वीकार्य नहीं हो सकता।

  • सबसे पहले तो चारों शंकराचार्यों को को विचारपूर्वक यह सामूहिक घोषणा करनी चाहिये कि पांचवां कोई शंकराचार्य नहीं है और यदि कोई पांचवां (वर्तमान में चौथे भी) व्यक्ति स्वयं को शंकराचार्य बताता है तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए। संभवतः शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती की यही मांग है कि सरकार इस संबंध में भी नियमावली बनाए ताकि कानूनी प्रक्रिया अपनाई जा सके । इस संबंध में कानूनी पक्ष तो मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि क्या है लेकिन संभवतः चारों शंकराचार्य मिलकर वर्तमान में भी कुछ-न-कुछ अवश्य ही कर सकते हैं।
  • जब राम मंदिर जैसे विषय के लिये भी वर्षों तक कानूनी विवाद चला, मोदी ने संसद से राम मंदिर निर्माण का निर्णय नहीं लिया। अन्य मंदिरों के लिये भी न्यायालयों में कानूनी विवाद ही चल रहा है तो फिर शंकराचार्य के लिये सरकार कोई घोषणा कर, नियमावली बनाये यह संभव नहीं है। क्योंकि सरकार नियमावली बनायेगी फिर भी न्यायालय में चुनौती मिलेगी ही और वर्षों विवाद चलेगा ही । इसलिये शंकराचार्यों को एकजुट होकर न्यायालय से ही आदेश कराना उचित होगा। और इस कार्य के लिये मोदी पर जो आरोप या वाक्प्रहार किया जा रहा है यह अनुचित है।

ये स्वघोषित ढेरों शंकराचार्य तो सनातन विरोधी सरकार के समय भी थे, तब क्यों नहीं ब्रह्मतेज का प्रयोग कर रहे थे? तब क्यों नहीं आरोप लगा रहे थे?

  • बड़ी मुश्किल से राम काज के लिये सत्ता की बागडोर सनातनी मोदी को मिली है तो उन्हें प्रताड़ित करना शंकराचार्यों के लिये अशोभनीय कार्य है।
  • सब कुछ एक झटके में मोदी ही कर दे यह सही नहीं हो सकता और यदि मेरे किसी व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ती मोदी न करे तो उसके हानि के लिये सोचना भी अपराध है यह शंकराचार्यों को भी स्वीकार कर लेना चाहिए।
  • शंकराचार्य का तात्पर्य ज्ञान है, मोदी का तात्पर्य भक्ति है । इस कारण मोदी के रक्षक तो स्वयं भगवान हैं फिर शंकराचार्य और भयंकराचार्य उनका कुछ बिगाड़ लेंगे यह भ्रम शंकराचार्यों को दूर कर लेना चाहिये और मान लिया जाय कि शंकराचार्यों के पास भी इतनी शक्ति है कि सरकार ही पलट दें तो क्या होगा फिर से सनातनविरोधी सरकार क्या-क्या कुकृत्य करेगी यह जनता भलीभांति समझ रही है किन्तु शंकराचार्य इस छोटी सी बात को नहीं समझ सके ।
  • समझें भी कैसे छोटी बातें तो छोटे लोग ही समझ सकते हैं शंकराचार्य तो वेद और वेदान्त की बातें समझने – समझाने के लिये बनते हैं।

लेकिन इस विरोध का भी कोई सुफल प्राप्त हो हम तो यही चाहेंगे। जनता मोदी से जब तक १५ लाख ले न ले उसे भागने नहीं देगी ऐसा निर्णय कर चुकी है । इसमें मैं भी यही चाहता हूं कि मेरे १५ लाख भी दिये बिना मोदी को भागने न दूं ।

रही बात ब्रह्मतेज की तो ब्रह्मतेज शंकराचार्य पद से बंधी हुई नहीं है । अनगिनत ब्राह्मणों के पास ब्रह्मतेज है और ब्रह्मतेज सत्य ज्ञान रहित नहीं हो सकता अर्थात् ब्रह्मतेज उन्हीं ब्राह्मणों में से कुछ के पास होगी जो इस सत्य को जानते हैं कि पिछली सरकार सत्य सनातन धर्म की विरोधी थी, मोदी सरकार सत्य सनातन धर्म के पुनरुत्थान का कार्य क्षमता से अधिक कर रही है फिर ब्रह्मतेज का समुचित प्रयोग मोदी सरकार की रक्षा हेतु ही करेगी ।

  • वैसे ब्रह्मतेज का प्रयोग दुष्टात्मा वेन पर किया गया था और इस दृष्टिकोण से भी यदि ब्रह्मतेज प्रयोग की बात आई है तो जो सरकार ५० – ६० वर्ष पहले ही करना चाहिये था ।
  • मोदी के हाथों सत्ता समुचित प्रकार से चल रही है हां कुछ त्रुटियां संभावित तो रहती ही है।
  • प्रतिदिन भोजन बनाने वाले से भी कभी नमक कम तो कभी अधिक, कभी कच्चा रहना तो कभी जल जाना ये त्रुटियां तो होती ही है लेकिन बनाने वाले का उदार चित्त भी समझना चाहिये कि दूसरों को बढिया रोटी खिलाकर कच्चा-जला स्वयं ही खाते हैं।
  • फिर भी यदि इसके लिये कोई दण्डित करने की बात करे तो ज्ञानचक्षु में त्रुटि है, ज्ञानी नहीं कर सकता।
  • पुराणों में राजा वेन की कथा आती है जो कि दुष्टात्मा था और उससे मोदी की उपमा ???
राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में पुरी शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती को क्या दर्द है ?

वैसे कुछ शक्तियां तो उन लोगों के पास भी होती ही है जो नकारात्मक विचार के होते हैं जैसे भगवान कृष्ण को मारने के लिये कंस का भेजा हुआ कृत्या बनाने वाला ब्राह्मण । लेकिन परिणाम क्या हुआ ?

उसी तरह यदि नकारात्मक विचार वाला अपनी ओछी शक्तियों का मोदी पर प्रयोग भी करें तो परिणाम वही होगा।

आपके कुछ वक्तव्य ऐसे हैं जो स्वीकार्य नहीं हैं। हो सकता है आपका दर्द हो ।

वैसे एक सूक्ति है विद्याविवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय । खलस्य साधोः विपरीतमेतत् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ॥

आपके क्षेत्र में सर्वाधिक मतांतरण (धर्मान्तरण) हुये और हो रहे हैं। कहां है आपका तेज, कहां है आपकी शक्ति। आपने योगी का भी नाम लिया, लेकिन आपको तो पटनायक बर्बाद कर रहा है उसका नाम नहीं लिया या कहीं ऐसा तो नहीं कि पटनायक के बुलडोजर से डरे हुये हैं? और राजनीतिक कारणों से मोदी-योगी पर भिड़े हुये हैं। यदि इसी तरह मोदी-योगी का विरोध करते रहे तो जनता भी आपके साथ नहीं रहने वाली है। गिने-चुने शिष्य परिवार तक सीमित रह जायेंगे। पारसी बहू का तो सुवर्णा नामकरण किया था आपने ये आपके संबंध को प्रकट करता है। कहीं इसी संबंध के कारण तो ……

कुल मिलाकर आप राम के नाम पर एक हो रहे हिन्दू को बांटना चाहते हैं और यही सभी विपक्षी दलों की मंशा है। इसका तात्पर्य तो यही होता है कि आप विपक्षियों के लिये अपना कंधा दे रहे हैं, गोली तो विपक्ष चला रहा है। जनता अच्छी तरह जान चुकी है कौन सनातनी है और कौन सनातन द्रोही, आप स्वयं का बचाव करें, अभी तो दिख रहे हैं अब कैसे इस कुचक्र से निकलेंगे ये सोचना आपका काम है।

संभवतः इसी कारण राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में आपको अपेक्षित सम्मान प्राप्त नहीं हो पा रहा है। राम द्रोही विरोधियों के पक्ष में जाने के बाद इससे अधिक और अपेक्षा भी तो नहीं की जा सकती।

यदि केवल चौथे (शं० अविमुक्तेश्वरानंद) पर ही आपका प्रश्न सीमित है तो इसमें सरकार क्या और क्यों करे ? इसको बाकी ३ मिलकर ही सम्हालिये और सरकार यदि हस्तक्षेप करना भी चाहे तो मत करने दीजिए।

अब राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मोदी कुछ बीमार हो जाएं तो इन लोगों को इतना अवसर तो अवश्य प्राप्त होगा कि कह सकें हमारी शक्ति का प्रभाव देखा। वैसे संभावना तो है कि बीमार पड़ जायें लेकिन भगवान रक्षा करें और यदि बीमार न भी पड़ें तो नाटक अवश्य करें।

अभी तक ऐसा लगा हो कि इस विवाद में सारी गलती शंकरचार्य की है तो इसका अर्थ है कि अभी भी इस लेख का तात्पर्य स्पष्ट नहीं हुआ है। शंकराचार्य की निंदा करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता, दोषी बताना तो बहुत बड़ी बात है। ये मेरी क्षमता ही नहीं कि शंकराचार्य के ऊपर टिप्पणी कर सकूँ और जो भी लिखा जा रहा है वह मात्र इसलिये की इस विवाद को समझा जाय।

॥ सत्यमेव जयति ॥
॥ सत्यमेव जयति ॥

कड़वे सवाल तो मोदी जी से ही पूछे जायेंगे ? मोदी जी आप फूलो मत, मेरे प्रश्नों का उत्तर दो :

  • आप कहते हैं अंतिम पायदान तक; पहली पंक्ति नहीं, सिरमौर क्यों दुःखी हैं ?
  • क्या इसलिये कि सिरमौर बिना आईने के नहीं दिखता ?
  • ये सच है कि शंकराचार्य के वक्तव्य में चेतावनी भी है लेकिन आपको तो उसके पीछे का दर्द दिखना चाहिये न।
  • आज यदि शंकराचार्यों के ऊपर लोग अनाप-सनाप बक रहे हैं तो इसके दोषी आप कैसे नहीं हैं ?
  • क्या आप शंकराचार्य पद की गरिमा गिरने से प्रसन्न हैं ?
  • यदि शंकराचार्य को आपसे कुछ अपेक्षा है तो इसमें बुरा क्या है ? गैर भाजपा सरकार में तो अपेक्षा सम्भव ही नहीं है।

नोट : विवाद राम लला की प्राण प्रतिष्ठा का नहीं है, विवाद स्वघोषित (प्रक्षेपित) शंकराचार्यों का है।

यजुर्वेद : ॐ आब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर ऽइषव्योतिव्याधी महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतान्निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ऽओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम् ॥२२/२२॥

॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
सुशांतिर्भवतु
सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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