नवग्रहों में शुक्र का छठा क्रम आता है। जैसे सूर्य, चंद्र, मंगल आदि ग्रहों की शांति विधि मिलती है उसी प्रकार शुक्र के लिये भी शांति विधि प्राप्त होती है। शुक्र को सौम्य, शुभ ग्रह कहा जाता है और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसे भी शुभद कर देता है। तथापि असुर गुरु होने के कारण शुक्र विलासिता के कारक होते है, सर्वाधिक पाप विलासिता हेतु ही किये जाते हैं। इस आलेख में शुक्र शांति विधि दी गयी है। शुक्र शांति विधि का तात्पर्य शास्त्रोक्त विधान से शुक्र के अशुभ फलों की शांति करना है।
शुक्र शांति के उपाय | शुक्र शांति मंत्र : Shukra shanti ke upay
सूर्य, चंद्र, मंगल और बुध की शांति विधि पूर्व आलेखों में दी गयी है, यहां हम शुक्र शांति विधि देखेंगे और समझेंगे। शुक्र शांति का तात्पर्य है शुक्र के अशुभ फलों के निवारण की शास्त्रोक्त विधि। यदि शुक्र निर्बल हो तो सबल करने के लिये हीरा, ओपल आदि धारण करना लाभकारी होता है। किन्तु यदि शुक्र के कोई अशुभ प्रभाव हों तो उसका निवारण रत्न धारण करना नहीं होता, ग्रहों के अशुभ प्रभाव का निवारण करने के लिये शांति ही करनी चाहिये।
शुक्र शांति के उपाय का तात्पर्य है शुक्र के अशुभत्व का निवारण करने वाला उपाय, अनिष्ट फलों का शमन करने वाला उपाय चाहे वह पूजा हो, हवन हो, जप हो, पाठ हो, दान हो, रत्न-जड़ी धारण करना हो, यंत्र धारण करना हो। अर्थात यदि शुक्र किसी प्रकार से अशुभ हों तो उनकी शांति के लिये इतने प्रकार के उपाय किये जा सकते हैं।
कमजोर (निर्बल) शुक्र के उपाय
शुक्र यदि कमजोर अर्थात निर्बल हो तो उसे सबल करने हेतु निम्न उपाय (रत्नादि धारण) किये जा सकते हैं :
- रत्न : हीरा।
- उपरत्न : ओपल।
- जड़ी : सिंहपुछ / सरपोंखा
- दिन : शुक्रवार।
- समिधा : गुल्लर
- धातु : स्वर्ण
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१२ | १० | ८ |
७ | १४ | ९ |
शुक्र शांति मंत्र – Shukra Grah Mantra
- वैदिक मंत्र (वाजसनेयी) : ॐ अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः । ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान ᳪ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु ॥
- वैदिक मंत्र (छन्दोगी) : ॐ शुक्रन्ते अन्यद्यजन्ते अन्यद्विषुरूपे अहनी द्यौरिवासि विश्वाहि माया। अवासि स्वधावन् भद्रा ते पूषन्निह रातिरस्तु ॥
- तांत्रिक मंत्र : ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः॥
- एकाक्षरी बीज मंत्र : ॐ शुं शुक्राय नमः॥
- जप संख्या : 11000
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