सभी प्राणी जीवनपर्यंत नाना प्रकार के विघ्नों से पीड़ित रहते ही हैं विघ्नों का निवारण भी चाहते हैं। सभी प्रकार के विघ्नों का निवारण करने के लिये सिद्धिविनायक व्रत बतायी गयी है जिसकी पूजा विधि पूर्व आलेख (सिद्धिविनायक पूजा विधि) में दी गयी है। यहां सिद्धिविनायक व्रत कथा दी जा रही है। कथायें संस्कृत में ही होती है क्योंकि संस्कृत ही देववाणी है और कथायें यदि समझने के लिये हिंदी अथवा अपनी स्थानीय भाषाओं में सुनी भी जाय तो भी संस्कृत में अनिवार्यतः श्रवणीय होती है। यहां संस्कृत में कथा भी दी गयी है और समझने हेतु भाव हिंदी में भी उल्लिखित किया गया है।
सिद्धिविनायक व्रत कथा – Siddhivinayak Vrat Katha
भरद्वाज उवाच
निर्विघ्नेन तु कार्याणि कथं सिद्धयन्ति सूत नः । अर्थसिद्धिः कथं नृणां पुत्रपौत्रादिसम्पदः ॥१॥
दम्पत्योः कलहे चैक्यं बन्धुभेदे तथा नृणाम्।
सूत उवाच
सन्नद्धयोः पुरा विप्र कुरुपाण्डवसेनयोः ॥२॥ पृष्टवान् देवकीपुत्रं कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः ।
युधिष्ठिर उवाच
निर्विघ्नो विजयो मह्यं देवदेव कथं भवेत् ॥३॥ कां देवतां नमस्कृत्य सम्यग्राज्यं लभेमहि ।
श्रीकृष्ण उवाच
पूजयस्व गणाध्यक्षमुमापुत्रं वरप्रदम् । तस्मिन् सम्पूजिते वीर सम्यग् राज्यमवाप्स्यसि ॥४॥
युधिष्ठिर उवाच
देव केन विधानेन पूजयामि विनायकम् । सम्पूज्यश्च तिथौ कस्यां सिद्धिदो गणपो भवेत् ॥५॥
श्रीकृष्ण उवाच
भाद्रे मासि सिते पक्षे चतुर्थ्यां पूजयेन्नृप ॥६॥
यदा चोद्वहते भक्ति तदा पूज्यो गणाधिपः । प्रातः शुक्लतिलैः स्नात्वा मध्याह्ने देवमर्चयेत् ॥७॥
चन्दनेन समालिप्तं कर्णिकायां न्यसेत्तु तम् । आवाहनार्चनार्घादि कुर्याच्चैवं प्रयत्नतः ॥८॥
पूजां कृत्वा विधानेन स्नात्वा पञ्चामृतैः पृथक् । वस्त्रं सर्वप्रदं दद्याद्रक्तं युग्मञ्च शक्तितः ॥९॥
विनायकेति नाम्ना वै गन्धं दद्यात् प्रयत्नतः । विनायकेति पुष्पाणि धूपञ्चोमासुताय च ॥१०॥
दीपं रुद्रप्रियायेति नैवेद्यं विघ्ननाशिने । ततो दुर्वाऽङ्कुरान् पुष्पं दद्याद्विंशतिमेव च ॥११॥
कुमारगुरवे तुभ्यं पूजनीयं प्रयत्नतः । पूजयेत् परया भक्त्या गणेशं सिद्धिनायकम् ॥१२॥
इत्येकविंशतिञ्चैव मोदकान् घृतपाचितान्। स्थापयित्वा गणाध्यक्षसमीपे कुरुनन्दन ॥१३॥
दश विप्राय दातव्यं गृहीत्वा दशभिः स्वयम् । एकं गणाधिपे दद्यात् नैवेद्यञ्च नृपोत्तम ॥१४॥
गणेशः प्रतिगृह्णाति गणनाथो ददाति च । दीयते गणनाथाय प्रीयतां मे गणाधिप ॥१५॥
सौमनस्यञ्च नित्यम्मे करोतु गणनायकः । इति मन्त्रं समुच्चार्य दश दद्याद् द्विजातये ॥१६॥
कृत्वा नैमित्तिकं कर्म पूजयेदिष्टदेवताम् । ब्राह्मणान् भोजयित्वा च भुञ्जीयात्तैलवर्जितम् ॥१७॥
एवं कृते धर्मराज गणनाथस्य पूजने । विजयस्ते भवेन्नित्यं सत्यं सत्यं मयोदितम् ॥१८॥
त्रिपुरं दग्धुकामेन पूजितः शूलपाणिना । शक्रेण पूजितः पूर्वं तथा वृत्रवधेषु च ॥१९॥
नलस्यान्वेषणे तद्वद्दमयन्त्या पुरार्चितः । रामचन्द्रेण तद्वच्च सीतां चानयता पुरा ॥२०॥
अमृतोत्पादनार्थाय पूजितश्च सुरैरपि । अमृताहरणात् पूर्वं वैनतेयेन पक्षिणा ॥२१॥
यदा पूर्वं हि दैत्येन हृतो रुक्मिणिनन्दनः । आराधितो महाराज रुक्मिणीसहितं मया ॥२२॥
कुष्ठव्याधिगते नाथ शाम्बेनाराधितः पुरा । विजयश्च भवेन्नित्यं सत्यं सत्यं मयोदितम् ॥२३॥
प्राप्स्यसि त्वं स्वकं राज्यं हत्वा शत्रून् रणाजिरे । सिद्धयन्ति सर्वकार्याणि मनसा चिन्तितान्यपि ॥२४॥
सूत उवाच
एवमुक्तस्तु कृष्णेन सानुजः पाण्डुनन्दनः । पूजयामास देवस्य पुत्रं त्रिपुरघातिनः ॥२५॥
सिध्यन्ति सर्वकार्याणि नात्र कार्या विचारणा । कार्येष्वारभ्यमाणेषु गजवक्त्रं प्रपूजयेत् ॥२६॥
विद्याकामो लभेद्विद्यां धनकामो लभेद्धनम् । जयञ्च जयकामश्च पुत्रार्थी लभते सुतान् ॥२७॥
पतिकामा च भर्तारं सौभाग्यञ्च सुवासिनी । विघ्नेशं पूजयित्वा तु वैधव्यं नाप्नुयात् कचित् ॥२८॥
वैष्णव्यादिषु दीक्षासु पठनीयः प्रयत्नतः । चण्डिकाद्या मातृगणाः परितुष्टा भवन्ति च ॥२९॥
तस्मिन् सम्पूजिते चैव भक्त्या सिद्धिविनायके । यः पठेच्छृणुयाद्वापि भक्तिमान् सुसमाहितः ॥३०॥
सिद्धयन्ति सर्वकार्याणि गणनाथप्रसादतः ॥३१॥
॥ इति श्रीसिद्धिविनायकव्रतकथा समाप्ता ॥
सिद्धिविनायक व्रत की कथा भरद्वाज मुनि सूत जी से पूछते हैं। प्रश्न विघ्नों का निवारण कैसे होगा यह है। अर्थसिद्धि हो, संततिलाभ, वंशवृद्धि आदि हो, दाम्पत्य कलह निवारण हो अथवा बन्धुवैर का निवारण हो अथवा कार्य सिद्धि हो कैसे प्राप्त होगा इसके उपाय का है।
उत्तर देते हुये सूत जी ने महाभारत प्रसंग का उल्लेख किया। राज्य से वंचित पांडवों की ओर से धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पुनः राज्य प्राप्ति कैसे होगा यह प्रश्न किया और उसका उत्तर भगवान श्रीकृष्ण ने दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने विघ्नहर्ता सिद्धिविनायक की पूजा-व्रत करने को कहा तो युधिष्ठिर ने विधि पूछा, किसी पूजा करनी चाहिये और कैसे करनी चाहिये यह भी पूछा।
भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि भाद्र शुक्ल चतुर्थी को सिद्धिविनायक की पूजा करनी चाहिये। अथवा जब कभी भी भक्तिभाव उत्पन्न हो तब भी करनी चाहिये। व्रत के दिन प्रातःकाल शुक्ल (श्वेत) तिल (उबटन आदि लगाकर, जल में मिलाकर) स्नान करे और मध्याह्न में पूजा करे। चंदनादि से अष्टदल बनाकर उसपर गणपति का आवाहन करे और विभिन्न उपचारों से पूजन करे।
पञ्चामृत से स्नान करावे व पृथक-पृथक भी स्नान कराये। युगल रक्त वस्त्र अर्पित करे। विनायक नाम से गंध-पुष्प अर्पित करे, धूप उमासुत नाम से दे, दीप रुद्रप्रिय नाम से दे, तत्पश्चात दुर्वांकुर व 20 अन्य पुष्प-पत्र अर्पित करे। फिर घृत में बनाये हुये 21 मोदक गणाध्यक्ष के निकट रखे। उसमें से 10 मोदक ब्राह्मण को प्रदान करे व 10 स्वयं ग्रहण करे, 1 मोदक गणाधिप को नैवेद्य में अर्पित करे। विधिवत पूजा करके तेल रहित भोजन ब्राह्मणों को कराये और स्वयं भी करे।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा इस प्रकार सिद्धिविनायक की पूजा करने से निश्चित ही नष्टराज्य की पुनः प्राप्ति होगी यह मैं सच-सच बता रहा हूँ। पूर्व काल में त्रिपुरासुर वध करने के लिये स्वयं भगवान शूलपाणि (शंकर) ने भी विनायक को पूजा था, वृत्रासुर वध के लिये देवराज इंद्र ने, नल को पुनः प्राप्त करने के लिये दमयंती ने, सीताहरण होने के बाद भगवान राम ने, सागरमंथन से अमृत प्राप्ति के लिये देवताओं ने, अमृतहरण करने के लिये गरुड़ ने, जब रुक्मिणीनंदन (प्रद्युम्न) का दैत्य ने अपहरण किया था तो मैंने भी रुक्मिणी के साथ विनायक की पूजा की थी। कुष्ठपीड़ित होने पर शाम्ब ने भी विनायक को पूजा था।
पुनः भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं इस प्रकार सिद्धिविनायक की पूजा करो इससे तुम अपने नष्ट राज्य को पुनः प्राप्त कर सकोगे साथ ही अन्य मनोरथ भी जो मन में होंगे वो भी सिद्ध होंगे।
सूत जी कहते हैं इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बताने के बाद पांडवों ने सिद्धिविनायक की पूजा की और अपने नष्ट राज्य को पुनः प्राप्त किया। सिद्धिविनायक की पूजा करने से सभी कार्यों की सिद्धि होती है, किसी भी कार्य के आरम्भ में निर्विघ्नता हेतु विनायक की पूजा अवश्य करनी चाहिये। विद्या, धन, विजय, पुत्र, पति, सौभाग्य आदि सभी कामनाओं की पूर्ति के लिये विनायक की पूजा करनी चाहिये। वैष्णव आदि अन्य देवों की दीक्षा लेनी हो, चंडिका-मातृका आदि को प्रसन्न करना हो तब भी विनायक की पूजा अवश्य करे।
इस कथा को भक्तिभाव पठन-श्रवण करने पर भी गणनाथ की कृपा से सभी कार्यों में सिद्धि की प्राप्ति होती है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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