सीताराम स्तोत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अनन्य रामभक्त हनुमानकृत है और इस कारण यह स्तोत्र विशेष महत्वपूर्ण हो जाता है। इस स्तोत्र में अनन्य रामभक्त हनुमान ने राम और सीता के युगल जोड़ी की स्तुति किया है। प्रातः काल उठकर पाठ करने वालों की समस्त मनोकामनायें पूर्ण होगी, ऐसा स्तोत्र में हनुमान जी के द्वारा ही व्यक्त किया गया है। यहां सीताराम स्तोत्र (sita ram stotra) संस्कृत में दिया गया है।
सीताराम स्तोत्र – sita ram stotra
अयोध्यापुर-नेतारं मिथिलापुर-नायिकाम् ।
राघवाणामलङ्कारं वैदेहानामलङ्क्रियाम् ॥१॥
रघूणां कुलदीपं च निमीनां कुलदीपिकाम् ।
सूर्यवंश-समुद्भूतं सोमवंश-समुद्भवाम् ॥२॥
पुत्रं दशरथस्याद्यं पुत्रीं जनकभूपतेः ।
वशिष्ठानुमताचारं शतानन्दमतानुगाम् ॥३॥
कौसल्यागर्भ-सम्भूतं वेदिगर्भोदितां स्वयम् ।
पुण्डरीक-विशालाक्षं स्फुरदिन्दीवरेक्षणाम् ॥४॥
चन्द्रकान्ताननाम्भोजं चन्द्रबिम्बोपमाननाम् ।
मत्त-मातङ्ग-गमनं मत्त-हंस-वधू-गताम् ॥५॥
चन्दनार्द्र-भुजामध्यं कुङ्कुमार्द्र-कुचस्थलीम् ।
चापालङ्कृत-हस्ताब्जं पद्मालङ्कृत-पाणिकाम् ॥६॥
शरणागत-गोप्तारं प्रणिपाद-प्रसादिकाम् ।
कालमेघनिभं रामं कार्तस्वर-सम-प्रभाम् ॥७॥
दिव्य-सिंहासनासीनं दिव्य-स्रग्वस्त्र-भूषणाम् ।
अनुक्षणं कटाक्षाभ्यां अन्योन्येक्षण-काङ्क्षिणौ ॥८॥
अन्योन्य-सदृशाकारौ त्रैलोक्यगृहदम्पती।
इमौ युवां प्रणम्याहं भजाम्यद्य कृतार्थताम् ॥९॥
अनेन स्तौति यः स्तुत्यं रामं सीतां च भक्तितः ।
तस्य तौ तनुतां पुण्यास्सम्पदः सकलार्थदाः ॥१०॥
एवं श्रीरामचन्द्रस्य जानक्याश्च विशेषतः ।
कृतं हनूमता पुण्यं स्तोत्रं सद्यो विमुक्तिदम् ।
यः पठेत्प्रातरुत्थाय सर्वान् कामानवाप्नुयात् ॥११॥
॥ इति हनूमत्कृत-सीताराम स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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