प्रतिमा निर्माण, प्रतिमा निर्माण में मुहूर्त दोष, प्रतिमा निर्माण में हुई जीवहत्या, अनुक्तमंत्र प्रयोग, स्पृष्य दोष, स्थान दोष आदि अनेक दोषों के निवारण हेतु स्नपन अनिवार्य होता है। मंदिरों में जब देवता प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करनी होती है तो प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व देवप्रतिमा का विशेष विधि से स्नपन कराया जाता है। स्नपन का मंडप भी अलग होता है और स्नपन मंडप में तीन वेदियों पर देव प्रतिमा का स्नपन कराया जाता है। इस आलेख में स्नपन विधि से संबंधित जानकारी दी गयी है।
स्नपन का तात्पर्य : स्नपन का तात्पर्य है स्नान क्रिया से होता है। देव स्नपन का तात्पर्य पवित्र जलादि द्रव्यों द्वारा शास्त्रोक्त विधि से देवता को स्नान कराना या अभिषेक करना होता है। स्नपन हेतु कई प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग होता है।
देव स्नपन – प्राण प्रतिष्ठा विधि
प्राण प्रतिष्ठा में देव स्नपन ३ प्रकार के स्नपन होता है।
- प्रथम स्नपन अग्न्युत्तारण में होता है। यह अग्न्युत्तारण का ही अंग होता है।
- द्वितीय स्नपन (मलापकर्षण निमित्त) विभिन्न अधिवासों के उपरान्त होता है। यह अधिवासन का ही अंग होता है।
- तृतीय स्नपन शय्याधिवास से पूर्व होता है। मुख्य स्नपन यही कहलाता है। किन्तु अग्न्युत्तारण प्रकरण में भी किया जा सकता है। पद्धतिभेद से दोनों प्रकार पाये जाते हैं।
- एक चतुर्थ स्नपन भी होता है जो प्रासाद स्नपन होता है। प्रसाद स्नपन देवता का नहीं मंदिर का होता है। यह देवता स्नपन भले न हो परन्तु यह भी मुख्य ही होता है।
- यदि जलाधिवास में कुटीर होम न किया जा सका हो तो स्नपन में कुटीर होम अवश्य करना चाहिये, विधि लोप नहीं हो यह आवश्यक होता है।
यहां हम तृतीय स्नपन की विधि और मंत्रों की चर्चा करेंगे। प्राण प्रतिष्ठा में स्नपन का मुख्य तात्पर्य यही होता है।
- यह स्नपन शय्याधिवास से पूर्व किया जाता है। किन्तु अग्न्युत्तारण प्रकरण में भी किया जा सकता है। पद्धतिभेद से दोनों प्रकार पाये जाते हैं।
- विधिवत स्नपन हेतु एक अन्य स्नपन मंडप की आवश्यकता होती है।
- मंडप का अर्द्धप्रमाण, तिहाई अथवा चौथाई भाग प्रमाण का स्नपन मंडप, यज्ञ मण्डप के उत्तर भाग में बनाये।
- १, २ अथवा ३ वेदी बनाए ।
- वेदी प्रमाण – बालूका की हस्तमात्र ४ अंगुल या १२ अंगुल ऊंची वेदी बनाये ।
- स्नपन में कलशों की संख्या को लेकर षोडश पक्ष बताये गये हैं। १, ४, ८, १६, २४, २५, ३६, ४८, ६४, ९०, ८४, ८८, १३०, २५०, ५००, १००८ कलशों का भी प्रयोग किया जाता है। लेकिन द्रव्य निक्षेप पूर्वक एक अन्य विशेष विधि प्रतिष्ठा पद्धतियों में वर्णित है।
इसमें से दशम प्रकार ९० कलश जिसमें ३ वेदी होती है, की विधि कई प्रतिष्ठा पुस्तकों में दी गयी है। यहां यही विधि बताई जायेगी, किन्तु कालांतर में अन्य प्रकारों को भी समाहित करने का प्रयास किया जायेगा।
स्नपन वेदी-कलश स्थापन
यह कलश स्थापन विधि प्रतिष्ठामयूख निर्देश पर आधारित है, किन्तु पुस्तकोक्त चित्र से पंक्तिक्रम विपरीत है।
- पञ्चगव्य निर्माण करके देवता के मूलमंत्र से जैसे विष्णु का ॐ नमो नारायणाय, शिव का ॐ नमः शिवाय; पञ्चगव्य को अभिमंत्रित करे।
- देवता के मूलमंत्र से अभिमंत्रित पञ्चगव्य से स्नपन मंडप का प्रोक्षण करे।
- तत्पश्चात मंडप में बालू की तीन वेदी बनाये – दक्षिण, मध्य और उत्तर में।
- वेदी बनाते समय कलश स्थान का ध्यान रखे।
- तीनों वेदियों पर चावल से स्वास्तिक बनाये।
- तत्पश्चात भद्रपीठ स्थापित करके विश्वकर्मा का ध्यान करे :
- विश्वकर्मा ध्यान मंत्र : ॐ विश्वकर्मा तु कर्तव्यः श्मश्रुलोमांसलाधरः। सन्दंशपाणिर्द्विभुजस्तेजोमूर्तिः प्रतापवान् ॥