देवस्नपनं उत्तरवेदी – प्राण प्रतिष्ठा विधि

देवस्नपनं उत्तरवेदी – प्राण प्रतिष्ठा विधि

फिर चतुर्थ पंक्ति के पुष्पादिक दश कलशों से स्नान करे :

  1. श्वेतपुष्प कलश : ॐ ओषधी: प्रति मोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः । अश्वा इव सजित्वरीर्वीरुध: पारयिष्ण्व: ॥
  2. अष्टफल (फलोदक) कलश : ॐ याफलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी। बृहस्पति प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ᳪ हस:॥
  3. सुवर्णोदक : ॐ हिरण्यगर्ब्भ: समवर्त्तताग्ग्रे भूतस्य जात: पतिरेकऽआसीत । स दाधार पृथ्वीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥
  4. गोशृङ्गोदक : ॐ हविष्मतीरिमा ऽआपो हविष्माँ ऽआविवासति । हविष्मान्‌ देवो ऽअदध्वरो हविष्माँ ऽअस्तु सूर्य: ॥
  5. सप्तधान्योदक : ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्वो दानाय त्वा व्यानाय त्वा। दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धान्देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि॥
  6. सहस्रधार कलश : ॐ सहस्राणि सहस्रशो बाह्वोस्तव हेतयः । तासामीशानो भगवः पराचीना मुखा कृधि ॥
  7. सर्वौषधी कलश : ॐ या ऽओषधी: सोमराज्ञीर्विष्ठिता पृथिवीमनु। बृहस्पतिप्रसूता ऽअस्यैसन्दत्तवीर्यम् ॥
  8. पञ्चपल्लवोदक : ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु। ये ऽअंतरिक्षे ये दिवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम: ॥
  9. नवरत्नोदक : ॐ अष्टौ व्यख्यत्त्ककुभ: पृथिव्यास्त्रीधन्व योजना सप्तसिन्धून्‌ । हिरण्याक्ष: सवितादेव ऽआगादधद्रत्नादाशुषे वार्याणि ॥
  10. तीर्थोदक : ॐ ये तीर्थानि प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः। तेषा ᳪ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥

फिर वेदी के पूर्वादि ८ दिशाओं में स्थापित समुद्रसंज्ञक अष्टकलशों से स्नान कराये :

  1. पूर्व क्षारोदककलश : ॐ कयानश्चित्र ऽआभुवदूतीसदा वृध: सखा कयाशश्चिष्ठया वृता ॥
  2. आग्नेय क्षीरकलश : ॐ आप्यायस्वसमेतुतेविश्वत: सोमवृष्ण्यम्‌ । भवावाजस्य सङ्गथे ॥
  1. दक्षिण दधिकलश : ॐ दधिक्राव्णो ऽअकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः। सुरभि नो मुखा करत्प्रण ऽआयू ᳪ षि तारिषत् ॥
  2. नैऋत्य घृतकलश : ॐ घृतवती भुवनानामभिश्रियोर्वी पृथ्वी मधु दुधे सुपेशसा । द्यावापृथिवी वरुणस्य धर्मणा विष्कभितेऽअजरे भूरिरेतसा ॥
  3. पश्चिम इक्षुरस : ॐ पयः पृथिव्यां पय ऽओषधीषु, पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥
  4. वायव्य सुरोदक (शर्करामिश्रित पय – दूध/पानी) : ॐ देवंबहिर्वारितीनामध्वरेस्तीर्णमश्विभ्यामूर्णम्रदाः सरस्वत्यास्योनमिन्द्र ते सदः । ईशायै मन्यु राजानं बर्हिषा दधुरिन्द्रियं वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज ॥
  5. उत्तर स्वादूदक : ॐ स्वादिष्ठयामदिष्ठयापवस्वसोम धारया । इन्द्राय पातवेसुत: ॥
  6. ईशान गर्भोदक (नारियल का जल) : ॐ सरस्वती योन्यां गर्भमन्तरश्विभ्यं पत्नी सुकृतं बिभर्ति । अपा ᳪ रसेन वरुणो न साम्नेन्द्र ᳪ श्रियै जनयन्नप्सु राजा ॥
प्राण प्रतिष्ठा विधि
प्राण प्रतिष्ठा विधि

फिर पञ्चम पंक्ति कलश कदम्बादि (लोकपाल पल्लव) जल से स्नान कराये :

  1. कदम्ब जल : ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रᳪ हवे हवे सुहव ᳪ शूरमिन्द्रम्, ह्वायामि शक्रम्पुरुहूतमिन्द्र ᳪ स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः ॥
  2. शाल्मली जल : ॐ त्वन्नोऽअग्ने तव पायुभिर्मघोनो रक्ष तन्वश्च वन्द्य। त्राता तोकस्य तनये गवामस्य निमेष ᳪ रक्षमाणस्तवव्व्रते ॥
  3. जम्बू जल : ॐ यमाय त्वांगिरस्वते पितृमते स्वाहा धर्माय स्वाहा धर्मः पित्रे ॥
  4. अशोक जल : ॐ असुन्नवन्तमयजमानमिच्छस्तेनस्येत्यामन्विहितस्करस्य अन्यमस्मदिच्छसात ऽइत्यानमो देवि निर्ऋते तुभ्यमस्तु ॥
  5. प्लक्ष जल : ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश ᳪ समानऽआयुः प्रमोषीः ॥
  6. चूत (आम्र) जल : ॐ आ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वर ᳪ सहश्रिणीभिरुपयाहि यज्ञम्, वायो ऽअस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयम्पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥
  7. वट जल : ॐ वय ᳪ सोमव्रते तव मनस्तनूषु बिभ्रतः प्रजावन्तः सचेमहि ॥
  8. बिल्व जल : ॐ तमीशानञ्जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयं। पूषा नो यथा वेदसामसद्वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ॥
  9. नागवल्ली जल : ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु। ये ऽअंतरिक्षे ये दिवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम: ॥
  10. पलाश जल : ॐ ब्रह्म यज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः। सबुध्न्या उपमाऽअस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसश्च विवः ॥

ततपश्चात् शङ्ख, भेरी आदि मङ्गलवाद्य बजाते हुए वेदी से षष्ठ (अंतिम) पंक्ति स्थित ४ कलशों से स्नपन करे : ॐ आनो भद्राः क्रतवो यन्तु …… ॥ अथवा देवता संबंधी वेद सूक्त पाठ करे ।

फिर शुद्ध- सुवासित श्वेत वस्त्र से मार्जन करे : ॐ यज्ञा यज्ञा वो ऽअग्नये गिरा गिरा च दक्षसे । प्रप्रवयममृतञ्जातवेदस ᳪ प्रियं मित्रं न श सिषम्‌ ॥

सकलीकरण :

फिर विश्वतश्चक्षु मंत्र से सकलीकरण करे : ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात्‌। सं बाहुभ्यां धमति संपतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन्देव ऽएकः॥

  1. ॐ विश्वतश्चक्षुरुत …. हृदयाय नमः ॥
  2. ॐ विश्वतश्चक्षुरुत …. शिरसे स्वाहा ॥
  3. ॐ विश्वतश्चक्षुरुत …. शिखायै वषट्॥
  4. ॐ विश्वतश्चक्षुरुत …. कवचाय हुम् ॥
  5. ॐ विश्वतश्चक्षुरुत …. नेत्राभ्यां (नेत्रत्रयाय) वौषट् ॥
  6. ॐ विश्वतश्चक्षुरुत …. अस्त्राय फट्॥

फिर पञ्चोपचार-षोडशोपचार पूजन करे।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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