स्वस्ति अर्थात कल्याण, वाचन अर्थात बोलना, इस प्रकार स्वस्तिवाचन अर्थात जिन वचनों/मंत्रों से कल्याण हो। वेद में कल्याणकारी ऋचाओं के समूह को भद्रसूक्त या स्वस्तिवाचन कहा जाता है। ब्राह्मण को विराट्पुरुष का शिर कहा गया है और ब्राह्मणों के वचन को विशेष महत्व दिया गया है। इस लिये वैदिक ब्राह्मणों द्वारा कल्याण की कामना से भद्रसूक्त का पाठ करना स्वस्तिवाचन कहलाता है। इस आलेख में हस्तस्वर सहित भद्रसूक्त अर्थात स्वस्तिवाचन मंत्र संस्कृत में दिया गया है।
स्वस्तिवाचन मंत्र संस्कृत में – Swastiwachan No.1
स्वस्तिवाचन वेद की ऋचाएं हैं जिनका प्रत्येक कर्मकांड के आरम्भ में पाठ किया जाता है। इसके अतिरिक्त नित्य पूजा में भी पाठ किया जा सकता है। यहां पौराणिक मंत्रों सहित स्वस्तिवाचन दिया गया है साथ ही हस्तस्वर सहित दिया गया है। हस्तस्वर सहित होने से इसकी उपयोगिता में और वृद्धि होती है।
स्वस्तिवाचन का अर्थ
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है, स्वस्तिवाचन का अर्थ है, स्वस्ति प्रदायक अर्थात कल्याण करने वाले मंत्रों का पाठ करना। स्वस्तिवाचन के कुछ नियम :
- स्वस्तिवाचन किसी भी पूजा के आरंभ में करनी चाहिये।
- स्वस्तिवाचन के बाद सभी दिशाओं में कलश का जल (अभिमंत्रित जल) या पूजा में इस्तेमाल किया गया जल छिड़कना चाहिये।
- गृहप्रवेश (नए घर में प्रवेश) के समय भी स्वस्तिवाचन एवं वेद पाठ करना शुभद होता है।
- विवाह के विधि-विधान में भी स्वस्तिवाचन एवं वेदपाठ का महत्व है।
- श्राद्ध के बाद भी स्वस्तिवाचन करना चाहिये।
- यज्ञ-अनुष्ठानों में प्रतिदिन स्वस्तिवाचन करना चाहिये।
- स्वस्तिवाचन के समय यजमान हाथों में अक्षत-पुष्पादि रखें और स्वस्तिवाचन के बाद अक्षत को पूजा के अक्षत और पुष्प को पूजा के पुष्पों में मिला दे।

स्वस्तिवाचन कब किया जाता है ?
- सभी प्रकार के पूजा-पाठों में स्वस्तिवाचन किया जाता है।
- उपनयन हो या विवाह, जप हो या हवन, यज्ञ हो या अनुष्ठान, श्राद्ध हो या दान सभी कर्मों में स्वस्तिवाचन करना चाहिये।
- नई दुकान खोलनी हो, नया घर बनाना हो, नये घर में प्रवेश करना हो, व्यापार आरम्भ करना हो, नयी यात्रा करनी हो, व्यापार में कोई और नई शुरुआत करनी हो, आजीविका लाभ या उन्नति की इच्छा/कामना हो तो भी स्वस्तिवाचन करना चाहिये।