पुरुष सूक्तं – सामवेदीय

पुरुष सूक्तं – सामवेदीय

प्रायः ऐसा देखा जाता है कि सामवेदीय सूक्तों के पाठ क्रम में शुक्ल यजुर्वेदी मात्र ᳪ (ग्गूं) का उच्चारण अनुस्वार कर देते हैं। परन्तु बात इतनी नहीं है; सामवेदीय सूक्तों में अन्य परिवर्तन भी होते हैं जो यहाँ दिये गये सामवेदीय पुरुष सूक्त से स्पष्ट हो जाता है।

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मैत्र सूक्त अर्थात सूर्य सूक्त

मैत्र सूक्त अर्थात सूर्य सूक्त

-मित्र भगवान सूर्य का नाम है, और भगवान सूर्य के सूक्त का नाम ही मैत्रसूक्त है।
-भगवान सूर्य की स्तुतियों वाली वैदिक ऋचाओं का समूह मैत्र सूक्त कहलाता है।
-रुद्राष्टाध्यायी का चतुर्थ अध्याय ही मैत्र सूक्त है।
-मैत्रसूक्त भी विशेष महत्वपूर्ण सूक्त है और इसलिए इसे भी रुद्राष्टाध्यायी में संग्रहित किया गया है।

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यजुर्वेदीय पुरुषसूक्त – Purush Shuktam

पुरुषसूक्त – Purush Shuktam – 1

वेदों में वर्णित पुरुषसूक्त विशेष महत्वपूर्ण सूक्त है। पुरुषसूक्त के मंत्रों से सभी देवताओं की षोडशोपचार पूजा की जाती है। विष्णु यज्ञ, महा विष्णु यज्ञ, अतिविष्णु यज्ञों में पुरुष सूक्त के मंत्रों द्वारा ही आहुति दी जाती है।

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कर्मकांड क्या है – Karmkand kya hai

कर्मकांड क्या है – Karmkand kya hai : कर्मकांड से पहले ‘कर्म’ और ‘कांड’ को समझना जरूरी है। कर्म जीवन में हमारे द्वारा किए गए सभी कार्य हैं, जो अनेक दृष्टीकोणों से विश्लेषित किए जा सकते हैं। ‘कांड’ हमारे द्वारा किए गए कार्यों के खंड, भाग या घटना होते हैं। ‘कर्मकांड’ में, ‘कर्म’ अध्यात्मिकता का एक खंड होता है और इस खंड के विधान को ‘कर्मकांड’ कहते हैं। इसका उद्देश्य लौकिक और पारलौकिक सुख की प्राप्ति का मार्ग प्रदान करना है।

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