महामृत्युंजय स्तोत्र pdf सहित

मृत्युञ्जय महादेव स्तवः – Mrityunjaya Stotra

मृत्युञ्जय महादेव स्तवः – Mrityunjaya Stotra : शिवरहस्य में मेधावी मुनि कृत मृत्युञ्जयमहादेवस्तवः मिलता है जो मृत्युंजय की उपासना में विशेष महत्वपूर्ण है। मेधावी मुनि भी मृत्युंजय के कृपापात्र थे इस कारण उनके द्वारा की गयी मृत्युंजय स्तवन अपना विशेष महत्व रखता है।

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पढ़ें महारक्षक पाशुपतास्त्र स्तोत्र संस्कृत में - pashupatastra stotra

पढ़ें महारक्षक पाशुपतास्त्र स्तोत्र संस्कृत में – pashupatastra stotra

पढ़ें महारक्षक पाशुपतास्त्र स्तोत्र संस्कृत में – pashupatastra stotra : सभी प्रकार के शान्त्यादि कर्मों के आरम्भ में इसका प्रयोग करने से विघ्नादि का निवारण होता है। विजय की कामना होने पर शतवृत्ति प्रयोग बताया गया है। इसी प्रकार से असाध्य साधन में घृत मिश्रित गुग्गुल होम करने का विधान कहा गया है।

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कल्याणकारी पशुपति स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित - pashupati stotra

कल्याणकारी पशुपति स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित – pashupati stotra

कल्याणकारी पशुपति स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित – pashupati stotra : पशुपति अर्थात पशुओं के पति या स्वामी। अब प्रश्न है पशु कौन तो इसका उत्तर है समस्त जीव पशु है। इस कारण सभी जीवों के जो स्वामी हैं वो पशुपति हैं।

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अघोर कवच स्तोत्र - aghor kavach

अघोर कवच स्तोत्र – aghor kavach

अघोर कवच स्तोत्र – aghor kavach : शिव कल्याणकारी हैं, अघोर हैं, अभयंकर हैं। शिव के अघोर स्वरूप में उनका नाम ही अघोर है। अघोर के उपासक ही अघोरी कहलाते हैं। शिव के अघोर रूप की उपासना में अघोर कवच की भी आवश्यकता होती है। यहां अघोर कवच (aghor kavach) संस्कृत में दिया गया है।

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पढ़िये अघोर स्तव संस्कृत में ~ aghor stotra

पढ़िये अघोर स्तव संस्कृत में ~ aghor stotra

पढ़िये अघोर स्तव संस्कृत में ~ aghor stotra : अघोर का तात्पर्य है जो घोर न हो अर्थात भयंकर न हो। भगवान शिव का ही एक नाम अघोर भी है और इनके अघोर रूप की उपासना के लिये मंत्र, स्तोत्र आदि भी मिलते हैं। यहां अघोर स्तव संस्कृत में दिया गया है।

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उपमन्युकृत अर्द्धनारीश्वर अष्टक स्तोत्र - ardhnarishwar ashtak

उपमन्युकृत अर्द्धनारीश्वर अष्टक स्तोत्र – ardhnarishwar ashtak

उपमन्युकृत अर्द्धनारीश्वर अष्टक स्तोत्र – ardhnarishwar ashtak : शास्त्रों में भी शिव और शक्ति को भिन्न नहीं माना गया है। शिव और शक्ति एक-दूसरे से उसी प्रकार अभिन्न हैं, जिस प्रकार सूर्य और उसका प्रकाश, अग्नि और उसका ताप तथा दूध और उसकी धवलता, चन्द्रमा और उसकी शीतलता ।

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लिङ्गोत्पत्तिस्तवः - ब्रह्मा और विष्णु द्वारा किया गया लिंग स्तोत्र | ling stotra

लिङ्गोत्पत्तिस्तवः – ब्रह्मा और विष्णु द्वारा किया गया लिंग स्तोत्र | ling stotra

लिङ्गोत्पत्तिस्तवः – ब्रह्मा और विष्णु द्वारा किया गया लिंग स्तोत्र | ling stotra : शिवरहस्य में ब्रह्मा और विष्णु द्वारा किया गया एक लिङ्गोत्पत्तिस्तव अर्थात लिंग स्तवन मिलता है जिसके महत्वपूर्ण होने का सबसे बड़ा कारण तो यही है कि यह ब्रह्मा और विष्णु द्वारा किया गया है। इस स्तोत्र का पाठ करने वाला पापरहित हो जाता है ऐसा स्तोत्र में ही कहा गया है।

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यहां पढें रुद्र मृत्युञ्जय स्तोत्र संस्कृत में - rudra mrityunjay stotra

यहां पढें रुद्र मृत्युंजय स्तोत्र संस्कृत में – rudra mrityunjay stotra

यहां पढें रुद्र मृत्युंजय स्तोत्र संस्कृत में – rudra mrityunjay stotra : आवश्यकतानुसार अन्य सांसारिक सिद्धियां तो स्वतः सिद्ध हो जाती हैं, अर्थात यह नहीं समझना चाहिये कि सांसारिक सुख की प्राप्ति नहीं होगी। किन्तु सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के लिये इस स्तोत्र का प्रयोग नहीं करना चाहिये।

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यहां पढें रुद्र गीता संस्कृत में - rudra gita

यहां पढें रुद्र गीता संस्कृत में – rudra gita

यहां पढें रुद्र गीता संस्कृत में – rudra gita : श्रीमद्भगवगीता के बारे में तो सभी जानते हैं किन्तु रुद्रगीता के बारे में नहीं जानते। वराहपुराण में १९ अध्याय के रूप में रुद्रगीता पायी जाती है। यहां रुद्र गीता (rudra gita) संस्कृत में दी गयी है।

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