क्या आप उपनयन संस्कार के इन महत्वपूर्ण तथ्यों को जानते हैं – upnayan sanskar

क्या आप उपनयन संस्कार के इन महत्वपूर्ण तथ्यों को जानते हैं – upnayan sanskar

षोडश संस्कारों में से कई संस्कार व्यवहार में प्रचलन से बाहर हो गये हैं तथापि कुछ संस्कार हैं जो संस्कार की विधि से करें या स्वछंद व्यवहार करें परन्तु नाममात्र के लिये प्रचलित अवश्य हैं जैसे उपनयन, विवाह। द्विजत्व सिद्धि हेतु उपनयन संस्कार की शास्त्रों में अनिवार्यता सिद्ध होती है। उपनयन संस्कार होने के बाद ही वेदाध्ययन और यज्ञ का अधिकार प्राप्त होता है। इस आलेख में उपनयन के विषय में विस्तृत चर्चा की गयी है, जिसमें शास्त्रोक्त प्रमाणों को भी समाहित किया गया है जिससे प्रामाणिकता की सिद्धि होती है।

उपरोक्त चारों वर्णों में प्रथम तीन अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को द्विज भी कहा जाता है। द्विज का तात्पर्य दुबारा जन्म लेने वाला होता है। अर्थात उपनयन के द्वारा इन तीनों वर्णों का नया जीवन आरम्भ होता है जिसमें गायत्री, वेद, यज्ञ आदि का अधिकार प्राप्त होता है। उपनयन होने के बाद ही उपनीत को श्रौत और स्मार्त कर्म का अधिकार प्राप्त होता है।

जीवन को चार आश्रमों में भी बांटा गया है – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास। चारों आश्रमों में प्रथम आश्रम ब्रह्मचर्याश्रम का आरम्भ उपनयन से ही होता है। उपनयन होने के बाद ही उपनीत ब्रह्मचारी संज्ञक होता है। तत्पश्चात वेदाध्ययन करके समावर्तन से ब्रह्मचर्याश्रम का त्याग होता है एवं विवाह होने पर गृहस्थाश्रम का आरम्भ होता है।

उपनयन संस्कार क्या है – upnayan sanskar kya hai

upnayan sanskar kya hai
उपनयन संस्कार क्या है

उपनयन का उपरोक्त अर्थ जो सर्वत्र बताया जाता है एक अन्य विधि से भी खण्डित होता है। यदि मात्र गुरु के निकट ले जाना उपनयन है तो संस्कार की जो विधि है वह पूर्व ही कर्तव्य होगा किन्तु संस्कार गुरु के निकट जाने के उपरान्त होता है अतः उपरोक्त अर्थ पुनः खण्डित हो जाता है।

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