जीवन के सभी क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले विघ्न, बाधाओं, असफलताओं, अनिष्टों आदि के पीड़ित होने पर विघ्नराज गणपति की अराधना करनी चाहिये। शांति के लिये एक विशेष विधि बताई गई है जिसे विनायक शांति कहते हैं। जीवन के सभी क्षेत्रों का तात्पर्य इसमें मङ्गल कार्य आदि भी समाहित हैं जैसे मुंडन, उपनयन, विवाह, गृहारम्भ, गृहप्रवेश आदि में भी निर्धारित काल में यदि विघ्न उपस्थित हो जाये अथवा किसी की मृत्यु आदि हो जाये तो उसे विघ्नों के निवारण हेतु विनायक शांति करनी चाहिये।
किसी भी कार्य में जब बार-बार विघ्न उत्पन्न हो रहा हो तो विघ्नराज गणपति की अराधना करनी चाहिये। इसके लिये विनायक शांति करने की विधि बताई गई है। इस आलेख में विनायक शांति विधि दिया गया है।
विनायक शांति पूजा विधि | vinayak shanti
मुहूर्त : विवाहादि मंगलकार्यों में सामान्य शांति मुहूर्त को भी ग्रहण किया जा सकता है तथापि विनायक शांति हेतु कुछ विशेष महत्वपूर्ण नक्षत्रादि का भी विष्णु धर्मोत्तर में उल्लेख किया गया है –
हस्तपुष्याश्वयुक्सौम्यवैष्णवेचोत्तरात्रये ॥ नक्षत्रै चमुहूर्तेच मैत्रेवाब्रह्मदैवते ॥१॥
शुक्लपक्षे चतुर्थ्यां च वासरेधिषणस्यच ॥ विघ्नस्यपरिहारार्थशांतिकुर्याद्विनायकीम् ॥२॥
विनायक शांति के लिये : हस्त, पुष्य, अश्विनी, अनुराधा, रोहिणी, विशाखा, श्रवण, उत्तरा तीनों आदि नक्षत्र, शुक्ल चतुर्थी, बुधवार को विशेष महत्वपूर्ण माना गया है।
ब्राह्मणों की संख्या : विनायक शांति के लिये ब्राह्मणों की संख्या 8 अथवा 4 कही गयी है, अर्थात न्यूनतम 4 ब्राह्मण की आवश्यकता होती है। आचार्य की गणना इसमें नहीं की गई है।
यजमान : मुख्य यजमान संस्कार कर्ता होता है न कि अनुपनीत बालक अथवा कन्या। जिसका संस्कार होना है वह माता-पिता के निकट (पुत्र दाहिने और पुत्री बांयी ओर) बैठे।
विनायक शान्ति विधि के लिये विशेष ध्यातव्य तथ्य : विनायक शान्ति करने के लिये आचार्य को हवन विधि का विशेष ज्ञान होना चाहिये। सामान्यतः हवन क्रिया दो भागों में होती है किन्तु विनायक शान्ति का हवन तीन भागों में होता है – प्रथम अग्निस्थापन, तत्पश्चात आगे का पूजनादि, फिर ब्रह्मास्थापन चरुनिर्माण पुनः यजमान का अभिषेकादि, पुनः पवित्रीनिर्माण से आगे की हवन क्रिया। सभी शांति कर्मों में यही नियम होता है।
विनायक शांति पद्धति
1 – पवित्रीधारण : ॐ पवित्रेस्थो वैष्णव्यो सवितुर्वः प्रसवऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः । तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुनेतच्छकेयम् ॥ इस मंत्र से पवित्रीधारण करे।
2. पवित्रीकरण मंत्र : ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याऽभंतर: शुचि:॥ ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॥ हाथ में गंगाजल/जल लेकर इस मंत्र से शरीर और सभी वस्तुओं पर छिड़के ।
3. आचमन : ॐ केशवाय नमः। ॐ माधवाय नमः। ॐ नारायणाय नमः। मुख व हस्त मार्जन (२ बार) ॐ हृषिकेशाय नमः॥ फिर प्राणायाम कर ले।
4. आसन पवित्रीकरण मंत्र : ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुनाधृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ इस मंत्र से आसन पर जल छिड़क कर आसनशुद्धि करें।
वर्तमान समय में नित्य कर्म करने वालों की संख्या अत्यल्प है अतः यही माना जाता है कि बिना नित्यकर्म किये हो, इस स्थिति में 10 बार गायत्री जप करके पञ्चदेवता और विष्णु पूजा कर लें।
फिर त्रिकुशा, पान, सुपारी, तिल, जल, पुष्प, चंदन, द्रव्य, दूर्वा आदि लेकर संकल्प करें। यहां प्रयोगानुसार तीन प्रकार के संकल्प दिये गये हैं इनमें से जो उचित हो वही संकल्प करे :
दुःस्वप्न शांति संकल्प : ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतो महापुरूषस्य,विष्णुराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीये परार्धे श्रीश्वेत वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे, कलियुगे कलि प्रथमचरणे, भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते ………… संवत्सरे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे ………. मासे ………… पक्षे ………… तिथौ ………… वासरे ………… गोत्रोत्पन्नः ………… शर्माऽहं (वर्माऽहं/गुप्तोऽहं) ……. दुःस्वप्ननिराशार्थ विनायकोपसर्गशांत्यर्थमनुककर्मणि निर्विघ्न्नता सिद्धयर्थं ……. फलसिद्धयर्थं वा लक्ष्मीप्राप्त्यर्थं वा विनायकशांति करिष्ये ॥
उपनयन-विवाहादि-निर्विघ्नता हेतु संकल्प : ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतो महापुरूषस्य,विष्णुराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीये परार्धे श्रीश्वेत वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे, भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते, ………… संवत्सरे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे ………. मासे ………… पक्षे ………… तिथौ ………… वासरे ………… गोत्रोत्पन्नः ………… शर्माऽहं (वर्माऽहं/गुप्तोऽहं) अस्य ……. कुमारस्य उपनयनकर्मणो (……. कुमार्या विवाह कर्मणो) निर्विघ्नतासिद्धयर्थं विनायकशांति करिष्ये ॥
मरण दोष निवारण हेतु संकल्प : ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ………… मम ……. कुमारस्य कर्तव्यउपनयने/विवाहे (…… कुमार्या विवाहे) निश्चयोत्तरं कस्यचिद् ……. सपिंडगोत्रजपुरुषस्यसंजात मृतिजनित प्रतिकूल सकलदोषपरिहारद्वारा वधूवरयोः आयुरभिवृद्धिपूर्वक संतत्यविच्छेदसकलभूतिसिद्धयर्थं श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थं सनवग्रहमखां विनायकशांति करिष्ये ॥
तदनन्तर “स्वस्तिवाचन” करके कर्मनिर्विघ्नता हेतु “गणेशाम्बिका पूजन” करके “पुण्याहवाचन,” “मातृका पूजन पूर्वक वृद्धिश्राद्ध” करे। तदनन्तर आचार्यादि वरण करे :
आचार्य वरण : बायें हाथ में वरण सामग्री लेकर दाहिने हाथ त्रिकुशा-तिल-जल लेकर पढ़े – ॐ अद्य कर्तव्य विनायक शांति कर्मणि आचार्यकर्मकर्तुं एभिः वरणीय वस्तुभिः …….. गोत्रं ……… शर्माणं ब्राह्मणं आचार्यत्वेन त्वामहं वृणे ॥ तिल, जल, वरण सामग्री पर छिड़क कर आचार्य को दे। आचार्य वृत्तोस्मि कहकर वरण सामग्री ग्रहण करें। पुनः यजमान कहे यथाविहितं कर्म कुरु आचार्य कहें कर्वाणि। फिर आचार्य पूजन करे। इसी प्रकार अन्य 4-8 ऋत्विजों का भी वरण करे।
यहां से आगे भी सभी विधियां आचार्य स्वयं करें।