षोडश संस्कारों में विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार है। विवाह हेतु एक विशेष शुभ मुहूर्त की आवश्यकता होती है।इस आलेख में आगामी शुभ विवाह मुहूर्त बताये गये हैं। यहां वही मुहूर्त दिये गये हैं जो परम्परागत विधि से आवश्यक विचार करके शोधन पूर्वक पङ्चाङ्गों में अंकित किये जाते हैं।
विवाह मुहूर्त
पञ्चाङ्गों में जो विवाह मुहूर्त अर्थात तिथि-दिन-नक्षत्र का मिलता है वह काल के शुद्ध-अशुद्ध का विचार करते हुये मास, पक्ष, तिथि, नक्षत्र का विचार करके दिया गया होता है। कुछ विशेष पञ्चाङ्गों में योग और करण का भी विचार किया जाता है। यदि नक्षत्र वेध हो तो उस वेध को अंकित कर दिया जाता है। विवाह हेतु लग्न शोधन भी किया जाता है। अर्थात कन्यादान के लिये कौन सा लग्न शुभ है यह निर्धारित करना विद्वान ब्राह्मण का कार्य होता है जो पञ्चाङ्गों में अंकित नहीं किया जाता।
तथापि एक पञ्चाङ्ग ऐसा है जिसमें शोधित लग्न भी प्राप्त होता है और वह पञ्चाङ्ग है “श्रीवेङ्कटेश्वर शताब्दी पञ्चाङ्ग” । इसमें 100 वर्षों का पञ्चाङ्ग उपलब्ध है, तथापि यह ज्योतिषीमात्र के लिये उपयोगी है, सामान्य पुरोहितों के लिये उपयोगी प्रतीत नहीं होता । और भी पञ्चाङ्ग ऐसे हो सकते हैं जो शोधित लग्न भी देते हों किन्तु हमें ऐसे किसी पञ्चाङ्ग के बारे में ज्ञात नहीं है।
जनसंख्या दिन-प्रतिदिन वृद्धि को प्राप्त हो रही है, तदनुसार अनुपातिक रूप से विवाह के मुहूर्तों (शुभ लग्नों) की संख्या में वृद्धि होना संभव नहीं है। शोधित लग्नों की संख्या वर्ष में मात्र 10 – 20 ही होती है। यदि वर्ष में मात्र 5 – 15 ही विवाह मुहूर्त हों तो सबका विवाह कैसे संभव हो सकता है। अतः पञ्चाङ्गकारों का लग्नशोधनहीन मुहूर्त देना भी समुचित ही माना जाना चाहिये। तदुपरांत योग और करण का विचार करने पर भी वर्ष में मात्र 15 – 25 ही विवाह मुहूर्त की संख्या संभव हो सकती है अतः पञ्चाङ्गों में योग और करण के विचार का भी अभाव पाया जाता है ताकि विवाह दिन की संख्या में और वृद्धि हो।
वेध का विचार तो होता है किन्तु वेधनक्षत्रयुक्त विवाह दिन भी पञ्चाङ्गों में दिये जाते हैं क्योंकि वेध निवारण किया जा सकता है।
इस प्रकार प्रमुख मान्य पञ्चाङ्गों में विवाह दिन के लिये जो विचार किये जाते हैं वो हैं शुद्धाशुद्ध काल, मास, पक्ष, तिथि, वार और नक्षत्र। विवाह मुहूर्त के लिये न्यूनतम इतना विचार करना तो अपेक्षित ही होता है।
तथापि कुछ ऐसे पञ्चाङ्ग भी हैं जो शुद्धाशुद्ध काल, मास, पक्ष, तिथि, नक्षत्र, वार का भी विचार नहीं करते और ऑनलाइन भी विवाह मुहूर्त बताते हैं तथा महानगरों में विशेष प्रचलन भी है। गावों में अभी भी न्यूनतम विचार अर्थात शुद्धाशुद्ध काल, मास, पक्ष, तिथि, नक्षत्र, वार करने वाले प्राचीन परम्परा सम्मत पञ्चाङ्गों को ही वरीयता दी जाती है, न्यूनतम अर्हता रहित विचार करने वाले आधुनिक और दृक्सिद्ध पञ्चाङ्गों की नहीं।
क्या विवाह मुहूर्त हेतु न्यूनतम अर्हता अपेक्षित है ?
इस प्रश्न का उत्तर है हां विवाह मुहूर्त के लिये न्यूनतम शुद्धाशुद्ध काल, मास, पक्ष, तिथि, नक्षत्र, वार का विचार करना आवश्यक है। यदि इतना भी विचार न किया जाय तो फिर विवाह मुहूर्त कैसे माना जाय ये प्रश्न उत्पन्न होता है।
क्या न्यूनतम शोधन पर्याप्त है ?
हां विवाह मुहूर्त के लिये न्यूनतम शुद्धाशुद्ध काल, मास, पक्ष, तिथि, नक्षत्र, वार का विचार करना पर्याप्त है। विशेष विचार और लग्न शोधन की आवश्यकता तब होती है जब कन्या का विवाह किया जा रहा हो। परन्तु राजकीय विधान से कन्या विवाह बाधित हो जाता है अतः वयस्क विवाह हेतु लग्न-शोधन और अन्य विशेष विचार आवश्यक नहीं है।
मुख्यकाले व्यतिक्रान्ते गौणकाले तथाचरेत्॥ – मनुस्मृति में एक प्रमाण इस प्रकार प्राप्त होता है कि मुख्य काल व्यतीत हो जाने पर गौणकाल में भी किसी कर्म को संपन्न करे। पुनः अन्यत्र से यह वचन भी प्राप्त होता है – न मुख्यद्रव्यलाभेन गौणकालप्रतीक्षणम् । गौणेषु तेषु कालेषु कर्म चोदितमारभेत् ॥
कारिका में भी इसी प्रकार का वचन मिलता है – मुख्यकाले नरैः कर्म कर्तुं यदि न शक्यते । गौणकालेऽपि कर्तव्यं तदनादिष्टपूर्वकम् ॥ यदि मुख्यकाल में कोई कर्म संपन्न करना संभव न हो तो गौणकाल अर्थात (मुख्यकाल व्यतीत हो जाने पर प्राप्त होने वाला सामान्य शोधित काल) में भी व्यक्ति को उक्त कर्म कर लेना चाहिये। यहां मुख्यकाल व्यतीत हो जाने पर प्रायश्चित्त का भी विधान किया गया है।
उपरोक्त गौणकाल की मान्यता किसी कर्ममात्र के लिये सिद्ध नहीं होती अपितु सभी कर्मों के लिये सिद्ध होती है। तथापि विवाह संबंधी विशेष प्रमाण की भी यदि आवश्यकता हो तो ज्योतिःसागर में इस प्रकार प्राप्त होता है – दुर्भिक्षे राष्ट्रभङ्गे च पित्रोर्वा प्राणसंशये । प्रौढायामपि कन्यायां नानुकूल्यं प्रतीक्षते ॥ अर्थात् दुर्भिक्ष, राष्ट्रभंग की स्थिति में, पिता के प्राण का संशय हो तो अथवा यदि कन्या प्रौढ़ावस्था को प्राप्त हो तो अनुकूल मुहूर्तादि की प्रतीक्षा न करे।
इस कारण वर्त्तमान में कन्या के विवाह का मुख्यकाल चूँकि व्यतीत हो जाता है तो गौणकाल ही शेष बचता है अतः गौणकाल हेतु मुख्यकाल सबंधी सभी नियम यथा लगनशोधन, दशदोष विचार, तारा विचार आदि अपेक्षित नहीं रह जाता। तदपि गौणकाल निर्धारण हेतु कुछ तो नियम का पालन होना आवश्यक होगा। अतः न्यूनतम शुद्धाशुद्ध काल, मास, पक्ष, तिथि, नक्षत्र, वार का विचार तो अवश्य करे।
नीचे विवाह से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण आलेख दिये गये हैं जो विवाह के संबंध में आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं :
- विवाह क्या है, अर्थ, परिभाषा, प्रकार, उद्देश्य, बाल विवाह आदि की विस्तृत जानकारी – Vivah
- कैसे बनता है विवाह मुहूर्त ? विवाह संबंधी सभी महत्वपूर्ण जानकारी
- वर वरण विधि | सगुन – sagun | हस्त ग्रहण वाग्दान कैसे करें
- मंडप स्थापना – मंडप पूजन विधि
- कुलदेवता आमंत्रण पत्र
- विवाह पद्धति – विवाह की सम्पूर्ण विधि | वाजसनेयी
- कुम्भविवाह
यहां किस प्रकार का विवाह मुहूर्त या विवाह ग्रहण किया गया है शोधित लग्न से या गौणकाल विचार से ?
यहां जो विवाह मुहूर्त या विवाह दिन दिया गया है वह गौणकाल का विचार करके ही दिया गया है। गौणकाल से तात्पर्य है न्यूनतम शुद्धाशुद्ध काल, मास, पक्ष, तिथि, नक्षत्र, वार का विचार।
विवाह मुहूर्त 2024
आगे 2024 के विभिन्न महीनो में प्राप्त सभी शुद्ध विवाह मुहूर्त दिये गए हैं। जो विवाह मुहूर्त इसके अतिरिक्त प्राप्त होते हैं वो न्यूनतम नियम भी ग्रहण किये बिना बनाये जाते हैं। उसके सम्बन्ध में यही कहा जा सकता है कि यदि न्यूनतम विचार भी न करें तो विवाह मुहूर्त कहने की क्या आवश्यकता है किसी भी दिन करे। यदि विवाह मुहूर्त कहा जा रहा है तो न्यूनतम विचार अवश्य करे।