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विवाह पद्धति | विवाह विधि और मंत्र | जयमाला विधि सहित – वाजसनेयी – vivah vidhi

विवाह पद्धति | विवाह विधि और मंत्र | जयमाला विधि सहित – वाजसनेयी – vivah vidhi

द्वारपूजा (द्वारलगी – द्वरलगी – दुअरलग्गी)

  • द्वारोपस्थित वर को सुवासिनी स्त्रियां मङ्गलगान करते हुये दधि कुंकुम का तिलक लगाये।
  • सजाई हुई आरती थाली में घी का चौमुख दीप जलाकर वर की आरती करें।
  • फिर देशाचार की विधियां संपन्न करे।

तत्पश्चात मंच आदि पर ले जाकर पूजन हेतु आगे कि क्रियायें करे। ब्राह्मण स्वस्तिवाचन, मंगलाष्टक आदि का पाठ करें।

कुल परिचय (धूआ-पानी)

व्यवहार में विद्वान ब्राह्मणों को यदि आमंत्रित न किया गया हो तो यह विधि विकृत रूप में देखी जाती है। कुलीनता का परिचय तो दूर मंच पर जयमाला आदि करते हुये अमर्यादित और निंदित परम्परा का भी आरम्भ किया गया है।

ये अकुलीन, म्लेच्छान्नभक्षी नट-नर्तकों को आदर्श स्थापित करने के कारण मात्र नहीं, ससमय अर्थात बाल्यकाल से ही सदाचार, कुलीनता आदि की शिक्षा नहीं देने और उन स्कूलों में जहां सनातनद्रोही टीचर (गुरु/शिक्षक नहीं) होते हैं पढ़ने के लिये वहां भेजना है। अर्थात उस बच्चे का भी दोष नहीं है वास्तविक दोषी अभिभावक ही हैं जो उचित शिक्षा नहीं देते। और तत्पश्चात भुक्तभोगी भी बनते हैं जब वही बच्चा अमर्यादित आचरण करने वाला स्वेच्छाचार करने लगता है।

अभी भी समय है, जब जागो तभी सबेरा का आश्रय लेते हुये विवाह काल से पूर्व ही बच्चे को उचित सदाचार सिखाते हुये सविधि विवाह करने के लिये अर्थात संस्कारित होने के लिये प्रेरित करें।

धूआ-पानी
धूआ-पानी

जब तक कन्या का पिता परस्पर अवलोकन करने की आज्ञा न दे दे तब तक एक-दूसरे से कैसे मिल सकते हैं। जयमाला यदि करना भी हो तो विवाह काल में कन्यादान के समय जब परस्पर अवलोकन करने के लिये कहा जाता है उस समय करें। और मञ्च पर दोनों पक्ष स्वयं की कुलीनता प्रकट करें न कि …….

अविरलमदधाराधौतकुम्भः शरण्यः फणिवरवृतगात्रः सिद्धसाध्यादिवन्द्यः ।
त्रिभुवन जन विघ्न ध्वान्त विध्वंसदक्षो वितरतु गजवक्त्रः संततं मंगलं वः ॥

किम् गोत्रस्य किम् प्रवरस्य किम् शाखिनः किम् वेदाध्यायिनः किम् शर्मणः प्रपौत्राय, किम् शर्म्मणः पौत्राय, किम् शर्म्मणः पुत्राय आयुष्मते कन्यार्थिने विष्णुस्वरूपिणे वराय ॥

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