विवाह क्या है, अर्थ, परिभाषा, प्रकार, उद्देश्य, बाल विवाह आदि की विस्तृत जानकारी – Vivah

विवाह क्या है, अर्थ, परिभाषा, प्रकार, उद्देश्य, बाल विवाह आदि की विस्तृत जानकारी – Vivah

विवाह के पर्यायवाची

विवाह के लिये आंग्ल भाषा में भी मैरिज नहीं लिखा जाने का कारण है कि मैरिज शब्द से विवाह सम्बन्धी अर्थ या भाव प्रकट नहीं होता। विवाह को अन्य भाषा बोलते समय भी विवाह ही बोलना चाहिये। शादी, निकाह, मैरिज आदि भाषांतर का कोई भी शब्द विवाह का न ही पर्यायवाची हो सकता है न ही समानार्थी। बात आती ही भाषानुवाद की तो अनुवाद होने पर भी यही उचित अर्थ, भाव प्रकट न करे तो भाषानुवाद कहना भी न्यायसंगत नहीं हो सकता।

विवाह और शादी, निकाह, मैरिज आदि में अंतर

  • विवाह एक संस्कार है, एक पवित्र बंधन है, जबकि अन्य जो भी भाषांतर के शब्द हैं वो समझौता मात्र है।
  • विवाह में स्त्री-पुरुष दोनों को अर्द्ध मानकर योगपूर्वक 1 अर्थात सम्पूर्ण किया जाता है और विखण्डन की संभावना भी नहीं छोड़ते, 1 पूर्णांक है। अन्य भाषाओं के शब्द दो प्राणी को एक नहीं करते, दोनों पहले भी 2 रहते हैं एकत्रित होने पर भी 2 रहते हैं और विखण्डित होने पर भी 2 होते हैं जो सम्पूर्णता का अभाव व्यक्त करता है, 2 पूर्णांक नहीं है।
  • एक बार विवाह होने के बाद संबंधविच्छेद का कोई मार्ग नहीं होता। अन्य सभी भाषाओं के जो शब्द हैं वहां उसके विच्छेद का भी मार्ग रहता है तलाक।
  • विवाह में स्त्री को भोग की वस्तु नहीं अर्धांगिनी बनाया जाता है। अन्य भाषांतरीय शब्दों द्वारा स्त्री भोग की वस्तु मात्र सिद्ध होती है।
  • विवाह का उद्देश्य पुरुषार्थत्रय की सिद्धि और संतानप्राप्ति होता है। भाषांतर के जो शब्द हैं उसका उद्देश्य वासना की पूर्ति होता है।
  • विवाह जन्म-जन्मान्तर का अटूट संबंध होता है। भाषांतर के शब्दों से एक जन्म में ही टूटने और पुनः जुड़ने, पुनः टूटने का बोध होता है अटूट शब्द का अभाव होता है।
  • विवाह में कन्यादान किया जाता है और वर कन्या का प्रतिग्रह करता है, जिससे कन्यादाता स्वर्ग का भागी होता है। भाषांतर के शब्दों में कन्यादान नहीं होता, दोनों एक-दूसरे को सशर्त स्वीकार करते हैं; अतः दान और प्रतिग्रह कुछ नहीं होता जिससे किसी प्रकार से स्वर्ग की संभावना नहीं बनती।
  • विवाह के पश्चात 1/2 + 1/2 = 1 होता है अर्थात पति और पत्नी का मैं समाप्त हो जाता है, हम उत्पन्न होता है। भाषांतर के शब्दों में 1 + 1 = 2, 2 के 2 ही रहते हैं अतः मैं की समाप्ति और हम की प्राप्ति नहीं होती।

बाल विवाह

बाल विवाह की अनुमति शास्त्रों द्वारा दी गयी है अपितु इसे विशेष उचित माना गया है। तथापि राजनीति को ऐसे तत्व प्रभावित करते हैं जो धर्मसंगत विधान-नियम कम धर्म-विरुद्ध विधान अधिक बनाते रहे हैं। षड्यंत्रपूर्वक बाल विवाह पर दोष मढ़कर हमें ये समझा दिया गया है कि बाल-विवाह में दोष-ही-दोष हैं और वयस्क विवाह में गुण-ही-गुण है।

हमें यह सोचने-विचार करने का भी अवसर प्रदान नहीं किया गया कि दोनों की तुलना कर सकें। अब वयस्क विवाह के दोष प्रकट हो रहे हैं और बाल-विवाह के जो दोष बताये गये वो प्रमाणों से सिद्ध नहीं हो पाते।

गृह प्रवेश मुहूर्त 2024
बाल विवाह

यहाँ बाल-विवाह और वयस्क विवाह का तुलनात्मक विवेचन किया गया है जिससे सहमत होना बाध्यकारी नहीं है अर्थात आप असहमत हो सकते हैं :

  • बाल विवाह का सबसे बड़ा दोष यह बताया जाता है कि इससे स्वास्थ्य और मानसिक समस्यायें उत्पन्न होती है। वयस्क विवाह में तो यह दोष अधिक पाया जाता है। वर्तमान में भी बाल-विवाहित जोड़े जीवित हैं और स्वस्थ हैं किन्तु वयस्क विवाहित जोड़े का शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ मिलना असंभव सा दिख रहा है। यदि लोगों के स्वास्थ्य की वास्तविक चिंता सरकारों को होती तो आज हमारे सभी खाद्य पदार्थ दूषित/विषाक्त नहीं होते। वर्तमान में सभी खाद्य पदार्थ दूषित/विषाक्त प्राप्त होते हैं इससे यही सिद्ध होता है कि सरकारों को जन-स्वास्थ्य सबंधी कोई चिंता नहीं रही है।
  • बाल-विवाह करने वाले उपलब्ध जोड़े आज वृद्धवस्था में भी मानसिक रूप से स्वस्थ हैं किन्तु वर्त्तमान में वयस्क विवाह करने वाले जोड़े अधिकतर मानसिक अवसाद के शिकार होते दिख रहे हैं।
  • बाल विवाह के द्वारा असमय गर्भधारण करना भी एक दोष बताया जाता है जबकि प्राकृतिक रूप से सिद्ध यही होता है कि प्रत्येक जीव में गर्भधारण का काल रजस्वला होने से ही आरम्भ होता है। रजस्वला होने के उपरांत गर्भधारण करने में बाधा करने से ही अधिक समस्यायें उत्पन्न होती है और प्राकृतिक नियम का उल्लंघन होता है।
  • बाल-विवाह को शिक्षा का बाधक बताया जाता है। राम और सीता का भी बाल-विवाह हुआ था। क्या वो शिक्षित नहीं थे ? मण्डन मिश्र निश्चित रूप से वृषलीपति नहीं थे, क्या शंकराचार्य से शास्त्रार्थ के समय निर्णेता की भूमिका में मूर्खा भारती को नियुक्त किया गया था ? क्या शंकराचार्य ने मूर्खा भारती से शास्त्रार्थ किया था। वास्तविकता ये है कि बाल-विवाह शिक्षा का बाधक हो न हो शिक्षा व्यवस्था ऐसी विकसित की गयी हो बाल-विवाह का बाधक हो। और तत्पश्चात बाल-विवाह को शिक्षा का बाधक सिद्ध किया गया। अपितु वयस्क विवाह होने पर ही अशिक्षित होना सिद्ध होता है। जो पत्नी अपने पति के परिवार को अपना परिवार स्वीकार नहीं कर पाती; अपना, पति का और दोनों परिवारों का जीवन नरक बना देती क्या वो शिक्षित मानी जा सकती है। बाल-विवाह होने पर ऐसा नहीं होता था।
  • बाल-विवाह होने से परिवार विखंडन कम होता था। वयस्क विवाह होने से परिवार विखंडन अत्यधिक होता है।
  • बाल-विवाह होने पर कन्या वर के परिवार को अपना परिवार मानती थी, वयस्क विवाह होने पर कन्या वर के परिवार को अपना परिवार स्वीकार नहीं कर पाती है। जिससे जिस हिन्दू समाज में तलाक का कोई स्थान नहीं था अब आरम्भ ही नहीं हुआ है अपितु बहुत संख्या में होने भी लगा है जो चिंता का विषय है।
  • बाल-विवाह को मातृ मृत्यु का कारण बताया गया। सभी जीवों में रजस्वला होने पर गर्भधारण करना प्राकृतिक नियम है और अन्य किसी भी जीव में मातृ मृत्युदर की अधिकता तो नहीं दिखती। इसका कारण समुचित चिकित्सा व्यवस्था का अभाव था। वयस्क विवाह होने से मातृ मृत्युदर में कमी नहीं आयी है चिकित्सा व्यवस्था की उपलब्धता से कमी आयी है। वयस्क विवाह होने पर तो शल्य की दर में वृद्धि ही हुई है। अधिकांश बच्चे शल्यक्रिया द्वारा ही संसार में आते हैं। शल्य क्रिया से क्या स्वास्थ्य उत्तम होता है या स्वास्थ्य संबंधी समस्यायें उत्पन्न होती है ?
  • प्रताड़ित होना भी एक दोष बताया जाता है कि बाल-विवाह होने पर कन्या को पताड़ित किया जाता था। यह तो एक व्यावहारिक विकृति है क्या वयस्क विवाह होने पर प्रताड़ना नहीं होती ? वयस्क विवाह होने से पति की भी तो प्रताड़ना होती है। प्रताड़ना तो विद्यमान ही है। यदि प्रताड़ना का कारण बाल-विवाह होता तो वयस्क विवाह में प्रताड़ना का अभाव होना चाहिये था।
  • बाल-विवाह होने से पति और पत्नी दोनों ससमय एक-दूसरे को समझ पाते थे एक-दूसरे से सामञ्जस्य स्थापित कर पाते थे जिससे जीवन पर्यन्त एक-दूसरे का साथ देते थे। वयस्क विवाह होने पर एक-दूसरे को समझने का अवसर तो प्राप्त होता है किन्तु एक-दूसरे के अनुकूल होकर सामञ्जस्य स्थापित करने अवसर प्राप्त नहीं होता और दाम्पत्य जीवन में व्यवधान उत्पन्न होता है। यह तो सर्वेक्षण करने का विषय है कि बाल-विवाह करने वाले उपलब्ध जोड़े कितना संतुष्ट रहे और वयस्क विवाह करने वाले वर्त्तमान जोड़े कितने संतुष्ट हो पा रहे हैं।
  • किसानों के लिये बाल-विवाह होने पर कन्या के पिता को भूमि विक्रय नहीं करना पड़ता था। आज जो व्यक्ति किसान (सामान्य किसान) मात्र है उसे वयस्क कन्या विवाह के लिये भूमि विक्रय करना ही पड़ता है।
  • बाल-विवाह में योग्य वर-कन्या ही नहीं योग्य परिवार का भी सम्बन्ध स्थापित होता था। वयस्क विवाह में परिवार का सम्बन्ध स्थापित नहीं होता अपितु वर-कन्या का सम्बन्ध भी क्षणभंगुर होता है।
  • बाल-विवाह व्यभिचार को रोकता था, वयस्क विवाह से व्यभिचार को प्रश्रय मिलता है और बात तो इतनी आगे बढ़ गयी कि वैधानिक प्रश्रय भी प्रदान किया गया है। लिव-इन रिलेशनशिप को व्यभिचार नहीं तो और क्या कहा जा सकता है ?

विषय का कितना विस्तार किया जाय सम्यक विचार करने पर तो यही प्रतीत होता है कि बाल विवाह से अत्यधिक दोष तो वयस्क में है। निष्कर्ष यही निकलता है कि इस पर पुनर्विचार करने की आवशयकता है। धार्मिक दृष्टिकोण से तो विचार किया ही नहीं गया है। यदि धार्मिक दृष्टि से विचार किया जाय तो बाल-विवाहावरोधक-विधि से धार्मिक नियम का अवरोध होता है व धार्मिक भावना आहत भी होती है।


Discover more from संपूर्ण कर्मकांड विधि

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply