तीन प्रकार के प्रवेश होते हैं : नृप प्रवेश, गृहप्रवेश और वधु प्रवेश। जब किसी नये वर-वधू का विवाह होता है तो विवाहोपरांत वधू विदा होती है और वर के घर जाती है। वर के घर में जब वधू प्रथम बार प्रवेश करती है तो उसे वधू प्रवेश कहा जाता है। वधू प्रवेश के लिये भी मुहूर्त का विधान है तथापि विवाह से 16 दिनों तक वधूप्रवेश हेतु मुहूर्त बनाने की आवश्यकता नहीं होती है। इस आलेख में वधूप्रवेश से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।
- विवाह के बाद वधू जब प्रथम बार ससुराल आती है तो उसे वधूप्रवेश कहा जाता है और जब दूसरी बार आती है तो उसे द्विरागमन कहा जाता है।
- विवाह के आरंभ से लेकर द्विरागमन तक शास्त्रसम्मत विधि के साथ ही लोकाचार का भी विशेष महत्व होता है। लोकाचार का विशेष महत्व ही नहीं होता अपितु कई बार शास्त्रीय विधि पर लोकाचार हावी भी हो जाता है।
- लोकाचार का निर्वहन हो यह आवश्यक है किन्तु लोकाचार का महत्व इतना अधिक न हो कि शास्त्रीय विधि का तिरस्कार हो जाये ।
वधूप्रवेश की शास्त्रसम्मत विधि
वधूप्रवेश ऐसा विषय है जिसका यह शुद्ध नाम तक जो नहीं जानते वह भी पंडित बनकर ज्ञान बघारते हुये कुछ अशास्त्रीय लोकाचार के पक्ष में भी कुतर्क रचते हैं, जैसे कि कुछ जगहों पर चावल भरे कलश में पैर से ठोकर मारकर प्रवेश करना। और दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि वहां के स्थानीय पंडित भी इसे उचित मानते हैं, टीवी पर आकर, फिल्मों में इसका और प्रचार-प्रसार करने का प्रयास करते हैं।
जो वर्ग शास्त्रोक्त विधि है के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं उन्हें आज तक यह अशास्त्रीय परम्परा क्यों नहीं दिखी ? अस्तु विषयांतर होना उचित नहीं होगा। इस लेख में हम वधूप्रवेश की शास्त्रसम्मत विधि के ऊपर चर्चा करेंगे।

वधूप्रवेश से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी:
जब वधू प्रथम बार ससुराल आती है तो उसे ही वधूप्रवेश कहा जाता है। वधूप्रवेश के लिये रात का समय ही प्रशस्त बताया गया है – ज्योतिःशास्त्रोक्तदिवसे शुभकाले तथैव च । रात्रौ वधूप्रवेशः स्याद्दिवा नैव कदाचन ॥
युग्माङ्कवाणाद्रिदिने विवाहाद्वध्वागमः षोडशवासरान्तः । शुभस्तदूर्द्ध विषमाब्दमासवर्षेषु यावन्नच पञ्चमाब्दम् ॥
- विवाह से 16 दिन के भीतर सम दिनों में वधूप्रवेश करना चाहिये।
- पांचवें, सातवें और नौवें विषम दिनों में भी वधूप्रवेश किया जा सकता है।
- द्वितीय, चतुर्थ, षष्ठ दिन सम होने पर भी निषिद्ध है।
- 16 दिन के बाद विषम दिन में ही वधूप्रवेश करना चाहिये।
- एक मास के बाद वर्ष पर्यन्त तृतीय, पंचम आदि विषम मास में करना चाहिये।
- मलमास, क्षयमास, खरमास, भाद्रपद आदि में वधूप्रवेश निषिद्ध है।
- यदि गांव या नगर पहुंचने तक सूर्योदय (दिन) हो जाये तो गांव या नगर के बाहर, अथवा टोला या मुहल्ला के बाहर ही रुक जाये । सायंकाल में ब्राह्मण की आज्ञा लेकर तब आगे बढे ।
नई दुल्हन को साथ लेकर ससुराल से प्रस्थान करना
- शुभ समय में दही आदि मंगलद्रव्य सहित वधू को साथ लेकर गणपति, इष्टदेवता आदि का स्मरण करते हुये वर वाहन में बैठे ।
- आचार्य वरवधू के ऊपर रक्षोघ्नद्रव्यादि ४ बार घुमाकर चारों दिशाओं में फेंके।
- ब्राह्मणगण स्वस्तिवाचन करें, स्त्रियां मंगलगान करें, मंगलवाद्य आदि बजाया जाय और अन्य लोकाचार का निर्वहन करते हुए (यदि लोकाचार शास्त्रीय मर्यादाओं का उल्लंघन न करे तो) वर-वधू को विदा करें ।
नववधू गृह प्रवेश – वधूप्रवेश
- वधू का गृहप्रवेश अर्थात् वधूप्रवेश – अपने घर आकर विविध लोकाचार; जो शास्त्रमर्यादा के विरुद्ध न हों ऐसे लोकाचारों का ही पालन करे (जैसे कलश में पैर से ठोकर मारना पूर्णतः शास्त्र विरुद्ध है, कलश को, देहली को प्रणाम करके प्रवेश करना चाहिये), द्वार देवता आदि को नमस्कार करे –
- ॐ धनंदेहि यशोदेहि सौभाग्यं शरदः शतम् । पुण्यं पुत्रांश्च मे देहि मातर्देहलि ते नमः ॥
- मंगलगान आदि पूर्वक वधू पहले बांयां पैर घर में रखे फिर दांया पैर ।
- प्रवेश काल में वधू आगे और वर पीछे रहे ।
- जहां पूजा की व्यवस्था की गई हो वहां सुंदर आसन पर पूर्वाभिमुख वर-वधू बैठे ।
- वधू वर के दांयी ओर बैठे । पवित्रीकरण करके संकल्प करें –

संकल्प मंत्र – तिल, जल, द्रव्य, पुष्पादि लेकर पढे ॐ अद्य (..इत्यादि) नववधू प्रवेशाङ्गभूतं स्वस्ति-पुण्याहवाचनं गणपति पूजन पूर्वकं महालक्ष्मीपूजनं च करिष्ये ॥
- फिर स्वस्तिवाचन, कलशपूजन, पुण्याहवाचन, गणपति पूजन करें।
- फिर एक धातु कलश में चावल भरकर उसपर लक्ष्मी का आवाहन पूजन करे।
- फिर ब्राह्मण की पूजा करे ।
- तत्पश्चात् वधू के गले में कोई आभूषण या मोती आदि की माला पहनाए ।
- फिर वरवधू दोनों दुग्धपान करे अथवा प्राशन करे।
- फिर आचमन करके वर पढे – लक्ष्मीपादावादाय गृहमागतोऽहं ॥
- वधू पढे – सौवर्णपादावादाय गृहमागताऽहं ॥
- तत्पश्चात् कुलदेवता का दर्शन, अभिवंदन (प्रणाम) आदि करके दक्षिणा करे ।
- फिर वर-वधू दोनों के हाथों में पान, सुपारी, द्रव्य, किसी पात्र में दही-हल्दी रखकर ब्राह्मणों, वृद्धजनों का आशीर्वाद ले ।
- फिर अन्य लोकाचार करे ।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।