कोई व्यक्ति जब नया घर बनाना चाहता है तो वह सर्वप्रथम गृह निर्माण कार्य का आरंभ करता है जिसे गृहारंभ कहा जाता है। गृहारंभ में वास्तु-भूमि आदि का पूजन करके शिलान्यास/नींव स्थापन किया जाता है जिसके लिये निर्माण भूमि में खात (गड्ढा) करने की भी आवश्यकता होती है। खात (गड्ढा) कहां करें इसका विधान किया गया है न कि मनमाने तरीके से कहीं भी किया जा सकता है। इस आलेख में गृहारंभ के समय किस स्थान पर खात (गड्ढा) करना चाहिये इसकी विस्तृत जानकारी दी गयी है।
भूमि पूजन किस दिशा में करें – खात की दिशा कैसे ज्ञात करें
- सनातन धर्म में कोई भी कार्य बिना भगवान की पूजा-पाठ किये नहीं किया जाता है।
- जब नया घर बनाने की बात हो तो उसका आरम्भ करने के लिये भी पूजा-पाठ किया जाता है।
- जब घर बन जाये तो उसमें रहने के लिये भी बिना पूजा-पाठ के नहीं जाते हैं।
- अलग-अलग कार्यों में अलग-अलग देवता की पूजा की जाती है, अलग-अलग विधि से की जाती है।
जब घर बनाना आरंभ करना हो तो उसमें मुख्य रूप से वास्तु और भूमि की पूजा की जाती है। भूमि पूजन की एक विशेष विधि है। जिसमें खात (गर्त या गड्ढा) किया जाता है। और उसी गड्ढे में भूमि की पूजा करके शिलान्यास पूर्वक गृहारंभ किया जाता है।
भूमि पूजन करने के लिए किस दिशा में खात करना चाहये इसके संबंध में पूरी जानकारी यहाँ दी गयी है।
भूमि पूजन का क्या तात्पर्य है ?
भूमि पूजन का तात्पर्य होता है गृहारम्भ अर्थात जब घर बनाना आरंभ करते हैं उस समय की जाने वाली पूजा। इसमें मुख्य पूजा वास्तु की ही होती है लेकिन फिर भी इसका दूसरा नाम भूमि पूजन ही है।
- भूमि पूजन के लिये विशेष दिशा का निर्धारण ज्योतिषियों द्वारा किया जाता है जिसे भूमि पूजन की दिशा कहते हैं।
- निर्धारित दिशा में खात (गड्ढा) करके भूमि पूजन और अन्य पूजा की जाती है।

भूमि पूजन के दिशा निर्धारण संबंधी तीन नियम हैं जो क्रमशः इस प्रकार हैं :
प्रथम नियम :
वास्तु चक्रानुसार भूमि को 81 खंडों (9*9) में बांटकर ईशानकोण से आठवां और अग्निकोण से दूसरा भाग आकाशपद कहलाता है। इस आकाशपद में ही खात करके भूमिपूजन किया जाना चाहिये। यह अग्निकोण में होता है।
द्वितीय नियम :
वास्तु के मुख-पुच्छ भाग का विचार करते हुये
- फाल्गुन, चैत्र, वैशाख – वायव्य कोण
- ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण – नैऋत्यकोण
- भाद्र, आश्विन, कार्तिक – अग्निकोण और
- मार्ग, पौष, माघ – ईशानकोण में खात को प्रशस्त बताया जाता है।
यह घर बनाने के लिये है देवालय हेतु अलग प्रकार होता है।
तृतीय नियम
ईशानकोण को देवपूजन के लिये सर्वोत्तम मन गया है और इस कारण कुछ विद्वान ईशानकोण में भी भूमिपूजन प्रशस्त बताते हैं।
इन तीनों में प्रथम नियम सर्वोत्तम, द्वितीय नियम उत्तम और तृतीय नियम सामान्य है।
इस संबंध में आपका क्या विचार है, आपके क्षेत्र में क्या परम्परा है या कोई भी प्रमाण यदि देना चाहें तो टिप्पणि करके अवश्य बतायें।
सारांश : नये घर को बनाने से पहले भूमिपूजन करके निर्माण का आरंभ किया जाता है। भूमि पूजन करने के लिये विशेष दिशा का भी महत्व होता है जो तीन अलग-अलग प्रकार से निर्धारित किये जाते हैं; जिसमें अग्निकोण के आकाशपद में पूजन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
F & Q
प्रश्न : मकान की नींव कौन सी दिशा में लगानी चाहिए?
उत्तर : मकान की नींव आकाशपद में देना। भूमि के 81 भाग (9*9) करने पर ईशानकोण से आठवां और अग्निकोण से दूसरा भाग आकाशपद होता है।
प्रश्न : भूमि पूजन कब नहीं करना चाहिए?
उत्तर : भूमि जब शयन कर रही हो तो भूमिपूजन नहीं करना चाहिये।
प्रश्न : भूमि पूजन का मंत्र क्या है?
उत्तर : भूमि आवाहन मंत्र : ॐ आगच्छ सर्वकल्याणि वसुधे लोकधारिणि । उद्धृतासि वराहेण सशैल वनकानने ॥ कूर्मपृष्ठोपरिस्थितां शुक्लवर्णां चतुर्भुजाम् । शंखपद्मधरां चक्र शूलयुक्तां धरां भजे ॥ भूमि पूजन मंत्र – ॐ भूर्भुवः स्वः भूम्यै नमः॥
प्रश्न : मकान की नींव में सर्प और कलश क्यों गाड़ा जाता है?
उत्तर : वास्तु सर्पाकार हैं और सर्परूप में वास्तु की पूजा की जाती है। सर्पाकार वास्तु को नीचे मुख करके कलश में रखकर नींव के गड्ढे में रखना चाहिये।
प्रश्न : कलश के नीचे क्या रखे?
उत्तर : कलश के नीचे सप्तधान्य देना चाहिये। सप्तधान्य न दे सकें तो कोई एक अन्न अथवा चावल देना चाहिये और पूजा के बाद वह अन्न ब्राह्मण को देना चाहिये न कि जहां-तहां छिड़क कर तिरस्कार करना चाहिये।
प्रश्न : मकान की नींव की गहराई कितनी होनी चाहिए?
उत्तर : गड्ढे की गहराई शास्त्र के प्रमाणानुसार करनी चाहिये। शास्त्रों में जानुमात्र (जंघा की लम्बाई के बराबर) गड्ढा करने के प्रमाण मिलता है।
प्रश्न : कलश के ऊपर रखे नारियल का क्या करना चाहिए?
उत्तर : भगवान को जो कुछ भी समर्पित कर दिया गया उसे पुनः वापस अपना नहीं समझना चाहिये। पूजा में प्रयुक्त होने वाली समस्त सामग्री पर ब्राह्मण का अधिकार होता है और ब्राह्मण जो कुछ भी प्रसाद स्वरूप यजमान को प्रदान करें यजमान को मात्र उतना ही लेना चाहिये।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।