कुम्भ विवाह की विधि – कुम्भ विवाह पद्धति pdf सहित

कुम्भ विवाह की विधि – कुम्भ विवाह पद्धति pdf सहित

ज्योतिष शास्त्र में कन्या वैधव्य के योग प्राप्त होने पर कुम्भ विवाह अथवा विष्णु प्रतिमा विवाह का विधान शांति हेतु बताया गया है। किसी कन्या की कुण्डली में यदि मंगली, वैधव्य आदि दुर्योग हों तो उसके परिहार हेतु कुम्भ विवाह व विष्णु प्रतिमा विवाह का उपाय बताया गया है। इस आलेख में हम कुम्भ विवाह के बारे में जानेंगे साथ ही कुम्भ विवाह की विधि भी जानेंगे और इसके साथ ही कुम्भ विवाह पद्धति pdf फाइल भी दिया गया है जिसे डाउनलोड किया जा सकता है।

कुम्भ विवाह की विधि – कुम्भ विवाह पद्धति pdf सहित

विवाह से पूर्व सामर्थ्यानुसार स्वर्ण की अथवा पीपल लकड़ी की विष्णु प्रतिमा से कन्या का विवाह करने से वैधव्य दोष का निराकरण तो होता है किन्तु पुनर्भू दोष नहीं होता। कुम्भ विवाह विषयक कुछ शास्त्रोक्त प्रमाण :

और भी –
सावित्र्यादिव्रतं कृत्वा वैधव्यविनिवृत्तये । अश्वत्यादिभिरुद्वाह्या दद्यात्तां चिरजीविने ॥
बालवैधव्ययोगे तु कुम्भद्रुप्रतिमादिभिः । कृत्वा लग्नं ततः पश्चात्कन्योद्वाह्येति चापरे ॥

कुम्भ विवाह क्या होता है

किसी कन्या के जन्म कुंडली में यदि मंगली, वैधव्य आदि प्रकार के दुर्योग हों तो उसका निवारण करने के लिये शास्त्रों में जो उपाय बताये गये हैं उनमें से एक कुम्भ विवाह है।

  • कुम्भ विवाह में विधिपूर्वक कुम्भ स्थापन करके उसपर वरुण और विष्णु की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
  • कन्या का पिता या दानकर्ता उस कुम्भ (वरुणविष्णु) को कन्यादान करता है।
  • भगवान अमर हैं अतः उनके साथ कन्या का विवाह हो जाने से कन्या के वैधव्य दोष का निवारण होता है।
  • विवाह होम चूँकि वर के द्वारा ही किया जाता है इसलिये कुम्भ विवाह या विष्णु प्रतिमा विवाह में होम नहीं होता है।
  • प्रतिमा स्वर्ण की होनी चाहिये, लेकिन जो सक्षम न हों वो पीपल वृक्ष या पीपल लकड़ी की प्रतिमा भी बनवा सकते हैं।
कुम्भ विवाह क्या होता है
कुम्भ विवाह क्या होता है

कुम्भ विवाह विधि

कुम्भविवाह विधि के बारे में कर्मकाण्ड प्रदीप से लिया गया प्रमाण इस प्रकार है, सूर्यारुणसंवादे :

  • कुम्भ विवाह घर में भी किया जा सकता है व मंदिर आदि धार्मिक स्थल पर भी किया जा सकता है।
  • कुम्भ विवाह के लिये भी शुभ मुहूर्त की आवश्यकता होती है।
  • कुम्भ विवाह का मुहूर्त बनाते समय कन्या के ऋतुचक्र का भी ध्यान रखना चाहिये।
  • जब वाग्दान – वर वरण (हस्तग्रहण/सगुन/तिलक) हो जाता है तो कन्यादाता वर को कन्यादान करने के लिये वचनवद्ध हो जाता है फिर कुम्भविवाह में कन्यादान कैसे कर सकता है ?
  • किन्तु वर्तमान काल में अधिकांशतः कुम्भविवाह को भी महत्वपूर्ण न मानते हुये विवाह के दिन ही विवाह से पूर्व कुम्भ विवाह की खानापूरी की जाती है।
  • जो कुम्भविवाह को वैधव्यादि दोष निवारण के लिये महत्वपूर्ण मानते हैं उनको विधिपूर्वक ही करना चाहिये।
  • दानकर्ता व कन्या शुभ दिन से एक दिन पूर्व ही नियम ग्रहण कर ले।
  • कुम्भ विवाह के दिन नित्यकर्म संपन्न करके गणेशाम्बिका पूजन, कलश स्थापन, पुण्याहवाचन, मातृका पूजन, वसोर्धारा, नान्दीमुख श्राद्ध इत्यादि करे।
  • फिर अग्न्युत्तारण पूर्वक वरुण और विष्णु प्रतिमा को कलश पर स्थापित करके प्राण प्रतिष्ठा और पूजा करे।
  • कन्या मंत्रों को पढ़कर वैधव्यादि दोष निवारण के लिये भगवान से प्रार्थना करे।
  • फिर दानकर्ता मधुपर्क प्रदान करके वधू रूप में सुसज्जित कन्या वरुण-विष्णु को दान करे।
  • ब्राह्मण कन्या का कुम्भ जल से अभिषेक करे।
  • तत्पश्चात विसर्जन करके सभी सामग्री (कन्याधारित वस्त्राभूषण सहित) ब्राह्मण को दे, दक्षिणा देकर संतुष्ट करे और ब्राह्मण भोजन कराये।

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