भगवान विष्णु भक्तों की रक्षा किस प्रकार करते हैं यह प्रह्लाद, ध्रुव, अम्बरीष, अर्जुन आदि की कथाओं से ज्ञात होता है। भगवान विष्णु जिसकी रक्षा करते हैं उसका कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता है। हम सभी जानते हैं कि भगवान विष्णु का विशेष मंत्र द्वादशाक्षर है और यदि श्री विष्णु रक्षा स्तोत्र (vishnu raksha stotram) की बात करें तो इसमें द्वादश नामों से रक्षा कामना की गयी है। यह विष्णु रक्षा स्तोत्र नारद पुराण में वर्णित है जो यहां संस्कृत में दिया गया है।
नारद पुराणोक्त श्री विष्णु रक्षा स्तोत्र – vishnu raksha stotram
अथवा केशवाद्यैस्तु रक्षां कुर्यात्प्रयत्नतः ।
केशवः पातु पादौ मे जङ्घे नारायणोऽवतु ॥
माधवो मे कटिं पातु गोविन्दो गुह्यमेव च ।
नाभिं विष्णुश्च मे पातु जठरं मधुसूदनः ॥
ऊरू त्रिविक्रमः पातु हृदयं पातु मे नरः ।
श्रीधरः पातु कण्ठं च हृषीकेशो मुखं मम ॥
पद्मनाभः स्तनौ पातु शीर्षं दामोदरोऽवतु ।
एवं विन्यस्य चाङ्गेषु जपकाले तु साधकः ॥
निर्भयो जायते भूतवेतालग्रहराक्षसात् ।
पुनर्न्यसेत्प्रयत्नेन ध्यानं कुर्वन्समाहितः ॥
पुरस्तात्केशवः पातु चक्री जाम्बूनदप्रभः ।
पश्चान्नारायणः शङ्खी नीलजीमूतसन्निभः ॥
ऊर्द्ध्वमिन्दीवरश्यामो माधवस्तु गदाधरः ।
गोविन्दो दक्षिणे पार्श्वे धन्वी चन्द्रप्रभो महान् ॥
उत्तरे हलधृग्विष्णुः पद्मकिञ्जल्कमसन्निभः ।
आग्नेय्यामरविन्दाक्षो मुसली मधुसूदनः ॥
त्रिविक्रमः खड्गपाणिर्नैरृत्यां ज्वलनप्रभः ।
वायव्यां माधवो वज्री तरुणादित्यसन्निभः ॥
ऐशान्यां पुण्डरीकाक्षः श्रीधरः पट्टिशायुधः ।
विद्युत्प्रभो हृषीकेश ऊर्द्ध्वे पातु समुद्गरः ॥
अधश्च पद्मनाभो मे सहस्रांशुसमप्रभः ।
सर्वायुधः सर्वशक्तिः सर्वाद्यःसर्वतोमुखः ॥
इन्द्रगोपप्रभः पायात्पाशहस्तोऽपराजितः ।
स बाह्याभ्यन्तरे देहमव्याद्दामोदरो हरिः ॥
एवं सर्वत्र निश्छिद्रं नामद्वादशपञ्जरम् ।
प्रविष्टोऽहं न मे किञ्चिद्भयमस्ति कदाचन ॥
एवं रक्षां विधायाथ दुर्द्धर्षो जायते नरः ।
सर्वेषु नृहरेर्मन्त्रवर्गेष्वेवं विधिर्मतः ॥
॥ इति नारदपुराणे पूर्वभागे एकसप्ततितमाध्यायान्तर्गतं सनत्कुमारप्रोक्तं विष्णुरक्षास्तोत्रंसमाप्तम् ॥
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