आशावादी सोच
व्यक्ति को विभिन्न प्रकार से आशावादी सोच के विस्तार का प्रयास करना चाहिये। सोच-विचार संबधी दोष परिलक्षित होने पर भी चन्द्रमा का उपचार अपेक्षित होता है।
परिवार की एकता
आत्मशक्ति कमने का एक कारण विघटित परिवार भी है। व्यक्ति को परिवार से जुड़े रहने के लिये प्रेरित करना चाहिये न कि घर से भागकर लवमैरिज करने के लिये। आत्मनिर्भर होने के बाद भी परिवार से अलग होने की परम्परा चल पड़ी है। आत्मनिर्भर होने का अर्थ यह नहीं होता कि परिवार से टूटकर अलग हो जायें। आत्मनिर्भर होने के बाद पारिवारिक उत्तरदायित्व में और वृद्धि होती है।
आत्मशक्ति को बढ़ाने का प्रयास करना और सूर्य उपासना
ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है और आत्मशक्ति की वृद्धि के लिये सूर्य की उपासना सबसे विशेष महत्वपूर्ण है।
- कुण्डली में यदि सूर्य सबल हो तो भी नित्य जलदान और नमस्कार करना आवश्यक होता है।
- यदि कुण्डली में सूर्य निर्बल हो तो अन्य विशेष उपाय करने की भी आवश्यकता होती है – गायत्री मंत्र जप, आदित्यह्रदयस्तोत्र का पाठ, हवन, दान, छठ व्रत, रविव्रत या रविवार का व्रत , रत्नधारण करना आदि।
- सूर्य पूजा मंत्र : सूर्य को जलदान, नमस्कार करना ये सब एक वैदिक विधि है एवं इसका पूर्ण फल प्राप्त करने के लिये वैदिक विधि का पालन करते हुये निर्दिष्ट मंत्रों का भी प्रयोग करना चाहिये। सूर्य उपासना के लिये सबसे महत्वपूर्ण मंत्र गायत्री मंत्र है परन्तु गायत्री मंत्र में उपनीत का ही अधिकार होता है, अनुपनितों के अन्य पौराणिक मंत्र, तांत्रिक मंत्र बताये गये हैं। धर्म अधिकार की लड़ाई का नाम नहीं शास्त्रोक्त कर्तव्यों के पालन करने को कहा जाता है।
- सूर्य नमस्कार : सूर्य को नमस्कार प्रिय कहा गया है एवं नमस्कार का भी मंत्र है। जब सूर्य उपासना की बात हो तो नमस्कार को विशेष महत्व देना चाहिये।
- सूर्य के व्रत : छठ व्रत और रविव्रत सूर्य के मुख्य व्रत हैं और यदि सूर्य को सबल करने की आवश्यकता हो तो इन व्रतों को करना चाहिये। कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को छठ व्रत होता है एवं वृश्चिक राशि के सूर्य होने पर शुक्लपक्ष के रविवार से रविव्रत या रविवार व्रत का आरम्भ किया जाता है जो छः माह तक शुक्लपक्ष के रविवार को किया जाता है।
- आदित्यहृदय स्तोत्र पाठ करना : नीच के सूर्य के उपाय में आदित्यहृदय स्तोत्र पाठ करना भी लाभकारी होता है और आत्मशक्ति वृद्धि में, विजय प्राप्ति में, रोग निवारण में विशेष प्रभावशाली स्तोत्र है।
- विशेष प्रक्रिया – नीच के सूर्य के उपाय या सूर्य को उच्च करने के उपाय : जप, हवन, दान आदि कर्मकाण्ड एवं ज्योतिष की विशेष महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसके लिये कर्मकाण्डी ब्राह्मणों की भी आवश्यकता होती है एवं ज्योतिषी से कुण्डली अध्ययन कराकर निर्देश भी प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
- रत्नधारण करना : ग्रहों के रत्नधारण करके भी उपचार किया जाता है, परन्तु इसके लिये ज्योतिषीय परामर्श अनिवार्य होता है। नीच सूर्य के उपाय में रत्नधारण भी एक अंग है तथापि अन्य अंगों से गौण पक्ष है। अन्य प्रक्रिया जैसे – जलदान, नमस्कार, व्रत, हवन आदि विशेष कर्तव्य होते है रत्नधारण करना सहयोगी होता है। सके अतिरिक्त जड़ी धारण भी किया जाता है।
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