इस लेख में हम बाबरी विध्वंस कांड को नये दृष्टिकोण से समझेंगे और राम मदिर कब तोड़ा था एवं उससे जुड़ी कुछ विशेष चर्चा करेंगे जिस पर कभी चर्चा की नहीं जाती है।
बाबरी विध्वंस कांड – अयोध्या का राम मंदिर
सर्वप्रथम बाबरी विध्वंस का सही तात्पर्य समझना होगा। अभी तक जो तात्पर्य समझा-समझाया जाता है वह है बाबरी ढांचे का गिरना। लेकिन यह अर्थ सही नहीं लगता है।
बाबरी विध्वंस
बाबरी विध्वंस का सही तात्पर्य वह घटना है जो आक्रांता बाबर ने उत्पात मचाया था और राम मंदिर विध्वंस किया है अथवा वो सभी विध्वंस जो बाबर ने या तो स्वयं किया अथवा उसके अनुचरों ने किया। लेकिन पता नहीं क्यों जो तात्पर्य नहीं है लोगों को हमेशा वही बताया जाता है। वो ढांचा जिसे मस्जिद कहा जाने लगा बाबरी कैसे हो सकता है ?
क्या उस भूमि का स्वामित्व (विधिक रूप से) बाबर के पास था ?
- यदि भूमि का स्वामित्व बाबर के पास विधिक रूप से नहीं था तो उसे किसी प्रकार का निर्माण करने का अधिकार भी नहीं था।
- आज भी जहां कहीं जो सरकार कुछ निर्माण करती है उसका विधिक स्वामित्व अनिवार्य होता है।
- अब यदि कोई कंपनी वैध रूप से राम मंदिर निर्माण कर रही है तो क्या वह मंदिर उस कंपनी की हो जाएगी ? नहीं हो सकती वह श्री राम मंदिर ही कहलायेगा न कि कंपनी का मंदिर।
- बाबर के पास तो वैध रूप से निर्माण करने का भी अधिकार नहीं था।
- अतः जो ढांचा बनाया गया उसे भी बाबरी कहना सही नहीं है और न ही उस ढांचे को तोड़ना बाबरी विध्वंस है।
- बाबरी उसे कहा जायेगा जो बाबर ने विध्वंस किया और हड़पा।
- हड़पने से भी स्वामित्व सिद्ध नहीं होता है समयानुसार वैध स्वामी दावा करता ही है।
अब हम बाबरी विध्वंस कैसे हुआ उसको सही परिप्रेक्ष्य में समझेंगे और यह इतिहास भी छुपाया जाता रहा है क्योंकि, वही बात आती है कि अब तक पूर्वाग्रह ग्रसित सनातन द्रोही इतिहासकारों ने षड्यंत्र करके सत्य को छुपाने का कुप्रयास किया है।
अयोध्या का राम मंदिर
- अयोध्या का राम मंदिर कई बार तोड़ा-बनाया गया है। पूर्व में शकों ने भी विध्वंस किया था लेकिन उसने केवल विध्वंस किया था वहां किसी नए ढांचे का अवैध निर्माण नहीं।
- फिर ईसा पूर्व ही चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने उस राम मंदिर का निर्माण किया था। जिसे बाद में जयचंद ने अवैध रूप से अपनी कृति उद्घोषित करने का प्रयास किया। ईसा की ग्यारहवी शताब्दी में कन्नोज नरेश जयचंद आया तो उसने मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के प्रशस्ति को उखाड़कर अपना नाम लिखवा दिया।
- सम्राट विक्रमादित्य के द्वारा जो बनाया गया था बाबर ने उसी राम मंदिर का विध्वंस किया था और बाबरी विध्वंस कांड का यही तात्पर्य है।
बाबर ने राम मंदिर कब तोड़ा था
बाबर ने राम मंदिर कब तोड़ा था इसके संबंध में हम उस घटना को समझने का प्रयास करेंगे जिसे छुपाने का प्रयास किया गया अथवा कम महत्वपूर्ण समझा गया।
- कई बार आक्रांताओं ने घाट किया लेकिन राम मंदिर सब झेलता रहा। विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावतो को झेलते हुए श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या और राम मंदिर १४वीं शताब्दी तक बची रही।
- वास्तविक समस्या तब हुई जब म्लेछों को शिष्य बनाया गया। शास्त्रों में किसी भी मंत्र, विद्या देने के लिये शिष्य की भली भांति परीक्षा करनी चाहिये यह निर्देष किया गया है। भले ही पुत्र क्यों न हो यदि अयोग्य है तो उसे भी गुप्त विद्या नहीं देनी चाहिये।
- बाबर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ उस समय जन्मभूमि महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के अधिकार क्षेत्र में थी, जो उच्च कोटि के ख्याति प्राप्त सिद्ध महात्मा थे एवं इनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी।
- ख्वाजा कजल अब्बास मूसा आशिकान अयोध्या आये और महात्मा श्यामनन्द के साधक शिष्य हो गए और उसे शिष्य बनाना ही पहली गलती थी। लेकिन जिस सहिष्णुता, भाईचारा, धर्मनिरपेक्षता (छद्म) हल्ला मचाया जाता है वो एकतरफा ही होता है दूसरा पक्ष केवल जिहाद करता है।
- महात्मा श्यामनन्द जी ने जब एक म्लेच्छ को सिद्धि प्राप्त करा दिया तो फिर दूसरा भी आया जिसका नाम था जलाल शाह जो कि ज्यादा ही उन्मादी था, कहने के लिये भले ही फक़ीर था।
- दोनों को महात्मा श्यामनन्द के सान्निध्य में सिद्धि मिली और उन दोनों की ख्याति भी फैलने लगी बल्कि उसके मन में तो राम मंदिर पर कब्जा करने का भाव भी था सो उसने छल-बल का भी प्रयोग किया।
- संग्रामसिंह को राणासाँगा के नाम से भी जाना जाता है । आगरे के पास फतेहपुर सीकरी में बाबर और राणासाँगा का भीषण युद्ध हुआ जिसमे बाबर घायल हो कर भाग निकला और अयोध्या आकर जलाल शाह की शरण ली।
- बाबर की मंशा पूरे देश पर राज करने की थी राम मंदिर तोड़ने की नहीं। राम मंदिर तोड़ने की मंशा उन दोनों जिहादियों की थी जिसे फकीर या सूफी संत भी कहा जाता है। जिहादियों और बाबर में मौखिक सहमति बनी बाबर को जीत चाहिये थी और उन दोनों को मंदिर पर आधिपत्य।
- पिछली बार पिटने वाला घायल बाबर ने राणासाँगा की ३० हजार सैनिकों की सेना के सामने अपने ६ लाख सैनिकों के साथ धावा बोल दिया और इस युद्ध में राणासाँगा की हार हुई । युद्ध के बाद राणासाँगा के ६०० और बाबर की सेना के ९०,००० सैनिक जीवित बचे ।
- बाबर जीतने के बाद वापस दिल्ली चला गया लेकिन जलाल शाह उसे आईने में उतार चुका था सो मीर बांकी को सेना के साथ उसका साथ देने के लिये लगा दिया। जलालशाह ने अयोध्या को खुर्द मक्का के रूप में स्थापित करने के अपने कुत्सित प्रयासों को आगे बढ़ाना शुरू किया। पहले तो उसने दूर-दूर से भी लाश मंगाकर अयोध्या को कब्र से पाटना शुरू किया।
- बाबा श्यामनन्द जी को अपनी गलती का आभास तो तब हुआ जब उन्हें पता चला की दोनों जिहादी और मीर बांकी मंदिर विध्वंस की योजना बना चुके हैं। लेकिन अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत। बचना संभव नहीं है ये सोचकर राम लला की प्रतिमा को उन्होंने सरयू में प्रवाहित कर दिया।
- मंदिर टूटता नहीं देख सकता इसलिये सामने डट गये और गर्दन कट गयी।
- उसके बाद भी भयंकर युद्ध हुआ था जिसमें से पंडित देवीदीन पाण्डे के युद्ध की चर्चा तो बाबर ने भी अपने तुज़ुक-ए-बाबरी में किया है।
इतिहासकार कनिंघम अपने लखनऊ गजेटियर के 66 वें अंकके पृष्ठ 3 पर लिखता है की एक लाख चौहतर हजार हिंदुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात मीर बाँकी अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान मे सफल हुआ और उसके बाद जन्मभूमि के चारों और तोप लगवाकर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया.. और वास्तविक बाबरी विध्वंस कांड यही है लेकिन …..
ज्ञातव्य रहे की मंदिर को बचने के लिए ये युद्ध भीटी के राजा महताब सिंह ने लड़ा था और वीर गति को प्राप्त हुए एवं विवादित ढांचे का निर्माण किस प्रकार हुआ (जिसे कुछ भाई बाबरी मस्जिद का नाम भी देते हैं)
बाबरी मस्जिद इतिहास
बाबरी मस्जिद नाम की कोई मस्जिद ही नहीं थी तो उसका इतिहास क्या होगा ? हाँ बाबर ने कई विध्वंस किया था जिसमें से एक अयोध्या का राम मंदिर भी है और वहां पर एक मस्जिदनुमा ढांचा बनावाया जिसे बाबरी मस्जिद घोषित करने का कुकृत्य उनके वंशजों ने किया।
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ सुशांतिर्भवतु ॥ सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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