दस महाविद्या में पांचवां क्रम माँ भैरवी का आता है जिन्हें त्रिपुर भैरवी के नाम से भी जाना जाता है। इस आलेख में त्रिपुर भैरवी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ~ Tripura Bhairavi Ashtottar shatnam stotra संस्कृत में दिया गया है।
यहां पढ़ें त्रिपुर भैरवी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र संस्कृत में – Tripura Bhairavi Ashtottar shatnam stotra
श्री देव्युवाच
कैलासवासिन् भगवन प्राणेश्वर कृपानिधे ।
भक्तवत्सल भैरव्या नाम्नामष्टोत्तरं शतं ॥
न शृतं देवदेवेश वदमां दीनवत्सल ॥
श्री शिव उवाच
शृणु प्रिये महागोप्यं नाम्नामष्टोत्तरं शतं ॥
भैरव्याः शब्दं संसेव्यं सर्वसंपत् प्रदायकम् ।
यस्यानुष्ठानमात्रेण किं न सिद्ध्यति भूतले ॥
ॐ भैरवी भैरवाराध्या भूतिदा भूतभावना ।
आर्या ब्राह्मी कामधेनुः सर्वसंपत् प्रदायिनी ॥
त्रैलोक्य वंदिता देवी महिषासुर नाशिनी ।
मोहघ्नी मालती माला महापातक नाशिनी ॥
क्रोधिनी क्रोधनिलया क्रोध रक्तेक्षणा कुहूः ।
त्रिपुरा त्रिपुराधारा त्रिनेत्रा भीम भैरवी ॥
देवकी वेदमाता च देव दुष्टविनाशिनी ।
दामोदर प्रिया दीर्घा दुर्गा दुर्गति नाशिनी ॥
लंबोदरी लंबकर्णा प्रलंबित पयोधरा ।
प्रत्यंगिरा प्रतिपदा प्रणतक्लेश नाशिनी ॥
प्रभावती गुणवती गुणमाता गुहेश्वरी ।
क्षीराब्धि तनया क्षेम्या जगत्त्राण विधायिनी ॥
महामारी महामोहा महोक्रोधा महानदी ।
महापातक संहर्त्री महामोह प्रदायिनी ॥
विकराला महाकाला कालरूपा कळावती ।
कपाल खट्वांगधरा खड्गखर्पर धारिणी ॥
कुमारी कुंकुम प्रीता कुंकुमारुण रंजिता ।
कौमोदकी कुमुदिनी कीर्त्या कीर्ति प्रदायिनी ॥
नवीना नीरदा नित्या नंदिकेश्वर पालिनी ।
घर्घरा घर्घरारावा घोरा घोर स्वरूपिणी ॥
कलिघ्नी कलिधर्मघ्नी कलिकौतुक नाशिनी ।
किशोरी केशवप्रीता क्लेशसंघ निवारिणी ॥
महोत्तमा महामत्ता महाविद्या महामयी ।
महायज्ञा महावाणी महामंदरधारिणी ॥
मोक्षदा मोहदा मोहा भुक्ति मुक्ति प्रदायिनी ।
अट्टाट्टहास निरता क्वणन्नूपुर धारिणी ॥
दीर्घदंष्ट्रा दीर्घमुखी दीर्घघोणा च दीर्घिका ।
दनुजांतकरी दुष्टा दुःखदारिद्र्य भंजिनी ॥
दुराचारा च दोषघ्नी दमपत्नी दयापरा ।
मनोभवा मनुमयी मनुवंश प्रवर्धिनी ॥
श्यामा श्यामतनुः शोभा सौम्या शंभुविलासिनी ।
इति ते कथितं दिव्यं नाम्नामष्टोत्तरं शतं ॥
भैरव्या देवदेवेशा स्तवप्रीत्यै सुरेश्वरी ।
अप्रकाश्य मिदं गोप्यं पठनीयं प्रयत्नतः ॥
देवींध्यात्वा सुरां पीत्वा मकार पंचकैः प्रिये ।
पूजयेत् सततं भक्त्या पठेत् स्तोत्रमिदं शुभं ॥
षण्मासाभ्यंतरे सोऽपि गणनाथ समोभवेत् ।
किमत्र बहुनोक्तेन त्वदग्रे प्राणवल्लभे ॥
सर्वं जानासि सर्वज्ञे पुनर्मां परिपृच्छसि ।
न देयं परशिष्येभ्यो निंदकेभ्यो विशेषतः ॥
॥ इति श्री त्रिपुर भैरवी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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